महाभारत सभा पर्व अध्याय 11 श्लोक 20-48

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एकादश (11) अध्‍याय: सभा पर्व (लोकपालसभाख्यान पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: एकादश अध्याय: श्लोक 20-48 का हिन्दी अनुवाद

अथर्वांगिरस, सूर्य किरणों का पान करने वाले बालखिल्य, मन, अन्तरिक्ष, विद्या, वायु, तेज, जल, पृथ्वी, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, प्रकृति, विकृति तथा पृथ्वी की रचना के जो अन्य कारण हैं, इन सब के अभिमानी देवता,। महामेजस्वी अगस्त्य, शक्तिशाली मार्कण्डेय, जमदग्नि, भरद्वाज, संवर्त, च्यवन,। महाभाग दुर्वासा, धर्मात्मा ऋष्यश्रृंग, महातपस्वी योगाचार्य भगवान् सनत्कुमार, । असित, देवल, तत्त्वज्ञानी जैगीषव्य, शत्रुविजयी ऋषभ, महापराक्रमी मणि,। तथा आठ अंगों से युक्त मूर्तिमान् आयुर्वेद, नक्षत्रों सहित चन्द्रमा, अंशुमाली सूर्य,। वायु, क्रतु, संकल्प और प्राण- ये तथा और भी बहुत-से मूर्तिमान् महान् व्रतधारी महात्मा ब्रह्माजी की सेवा में उपस्थित होते हैं। अर्थ, धर्म, काम, हर्ष, द्वेष, तप और दम-ये भी मूर्ति मान् होकर ब्रह्माजी की उपासना करते हैं।
गन्धवों और अप्सराओं के बीस गण एक साथ उस सभा में आते हैं । सात अन्य गन्धर्व भी जो प्रधान हैं, वहाँ उपस्थित होते हैं। समस्त लोकपाल, शुक्र, बृहस्पति, बुध, मंगल, शनैश्वर, राहु तथा केतु- ये सभी ग्रह,। सामगान सम्बन्धी मन्त्र, रथन्तरसाम, हरिमान्, वसुमान्, अपने स्वामी इन्द्र सहित बारह आदित्य, अग्नि-सोम आदि युगल नामों से कहे जाने वाले देवता,। मरूद्गण, विश्वकर्मा, वसुगण, समस्त पितृगण, सभी हविष्य,। पाण्डु नन्दन ! ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद तथा सम्पूर्ण शास्त्र,। इतिहास, उपवेद,[१] सम्पूर्ण वेदांग, ग्रह, यज्ञ, सेम और समस्त देवता,। सावित्री, दुर्गम दुःख से उबारने वाली दुर्गा, सात प्रकार[२] की प्रणवरूपा वाणी, मेधा, धृति, श्रुति, प्रज्ञा, बुद्धि, यश और क्षमा,। साम, स्तुति, गति, विविध गाथा तथा तर्कयुक्त भाष्य- ये सभी देहधारी होकर एवं अनेक प्रकार के नाटक, काव्य, कथा, आख्यायिका तथा कारिका आदि उस सभा में मुर्तिमान् होकर रहते हैं । इसी प्रकार गुरूजनों की पूजा करने वाले जो दूसरे पुण्यात्मा पुरूष हैं, वे भी उस सभा में स्थित होते हैं।
युधिष्ठिर ! क्षण, लव, मुहूर्त, दिन, रात, पक्ष, मास, छहों ऋतुएँ,। साठ संवत्सर, पाँच संवत्सरों का युग, चार प्रकार के दिन-रात (मानव, पितर, देवता और ब्रह्मा जी के दिन-रात ), नित्य, दिव्य, अक्षय एवं अव्यय कालचक्र तथा धर्मचक्र भी देह धारण करके सदा ब्रह्मा जी की सभा में उपस्थित रहते हैं। अदिति, दिति, दनु, सुरसा, विनता, इरा, कालिका, सुरभीदेवी, सरभा, गौतमी, प्रभा और कद्रू- ये दो देवियाँ, देवमाताएँ, रूद्राणी, श्री, लक्ष्मी, भद्रा तथा अपरा, षष्ठी, पृथ्वी, भूतल पर उतरी हुई गंगादेवी, लज्जा, स्वाहा, कीर्ति, सुरादेवी, शची, पुष्टि, अरून्धती संवृत्ति, आशा, नियति, सृष्टि देवी, रति तथा अन्य देवियाँ भी उस सभा में प्रजापति ब्रह्मा जी की उपासना करती हैं। आदित्य, वसु, रूद्र, मरूद्गण, अश्विनी कुमार, विश्वे देव, साध्य तथा मन के समान वेगशली पितर भी उस सभा में उपस्थित होते हैं।
नरश्रेष्ठ ! तुम्हें मालूम होना चाहिये कि पितरों के सात ही गण होते हैं, जिन में चार तो मूर्तिमान् हैं और तीन अमूर्त। भारत ! सम्पूर्ण लोकों में विख्यात स्वर्ग लोक में विचरने वाले महाभाग वैराज, अग्निष्वात्त, सोमपा, गार्हपत्य (ये चार मूर्त हैं), एक श्रृंग, चतुर्वेद तथा कला (ये तीन अमूर्त हैं) । ये सातों पितर क्रमशः चारों वर्णों में पूजित होते हैं । राजन् ! पहले इन पितरों के तृप्त होने से फिर सोम देवता भी तृप्त हो जाते हैं। ये सभी पितर उक्त सभा में उपस्थित हो प्रसन्नता पूर्वक अमित तेजस्वी प्रजापति ब्रह्मा जी की उपासना करते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद और अर्थशास्त्र - ये चार उपवेद माने गये हैं।
  2. अकार, उकार, मकार, अर्थ मात्रा, नाद, बिन्दु और शक्ति- ये प्रणव के सात प्रकार हैं । अथवा संस्कृत, प्राकृत, पैशाची, अपभ्रंश, ललित, मागध और गद्य- ये वाणी के सात प्रकार जानने चाहिये।

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