महाभारत स्‍त्री पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-17

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पन्चर्विंष (25) अध्याय: स्‍त्रीपर्व (जलप्रदानिक पर्व )

महाभारत: स्‍त्रीपर्व: पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


गान्धारी बोलीं- माधव। जो काबुल के बने हुए मुलायम बिछौनों पर सोने के योग्य हैं, वह बैल के समान हष्ट-पुष्ट कन्धों वाला दुर्जय वीर काम्बोज राज सुदक्षिण मरकर धूल में पड़ा हुआ है। उसकी चंदन चर्चित भुजाओं को रक्त में सनी हुई देख उसकी पत्नि अत्यन्त दुखी हो करूणा जनक विलाप कर रही है। वह कहती है- प्राणनाथ। सुन्दर हथेली और अंगुलियों से युक्त तथा परिघ के समान मोटी ये वे ही दोनो भुजाऐं हैं, जिनके भीतर आप मुझे अंग में भर लेते थे और उस अवस्था में मुझे जो प्रसन्नता होती थी, उसने पहले कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा था। जनेष्वर। अब आपके बिना मेरी क्या गति होगी। श्रीकृष्ण। अपने जीवन बन्धु के मारे जाने से अनाथ हुई यह रानी कांपती हुई मधुर स्वर से विलाप कर रही है। घाम से मुर्झाती हुई नाना प्रकार की पुष्प मालाओं के समान यह राज रानियां धूप से तप गयी हैं, तो भी इनके शरीरों को सौन्दर्य श्री छोड़ नहीं रही हैं । मधुसूदन। देखो, पास ही वह शूरवीर कलिंगराज सो रहा है, जिसकी दोनों विशाल भुजाओं में चमकीले अंगद (बाजूबन्द) बंधे हुए हैं। जनार्दन। उधर मगध राज जयत्सेन पड़ा है, जिसे चारों ओर से घेरकर उसकी पत्नियां अत्यन्त व्याकुल हो फूट-फूट कर रो ही हैं। श्रीकृष्ण। मधुर स्वर वाली इन विशाल लोचना रानियों का मन और कानों को माह लेने वाला आर्तनाद मेरे मन को मूर्छित सा किये देता है। इनके वस्त्र और आभूषण अस्त व्यस्त हो रहे हैं। सुन्दन विछौनों से युक्त शैयाओं पर सयन करने के योग्य ये मगध देष की रानियां शोक से व्याकुल हो रोती हुई भूमि पर लोट रही हैं। अपने पति कौषल नरेष राजकुमार बृहदल को भी चारों ओर से घेरकर उनकी रानियां अलग-अलग रो रही हैं। अभिमन्यु के बाहुबल से प्रेरित होकर कौषल नरेष के अंगों में धंसे हुए बाणों को ये रानियां अत्यन्त दुखी होकर निकालती हैं और बार-बार मूर्छित हो जाती हैं। माधव। इन सर्वांग सुन्दरी राज महिलाओं के सुन्दर मुख धूप और परिश्रम के कारण मुर्झाये हुए कमलों के समान प्रतीत होते हैं। ये द्रोर्णाचार्य के मारे हुए धृष्टद्युम्न के सभी छोटे-छोटे शूरवीर बालक सो रहे हैं। इनकी भुजाओं में सुन्दर अंगद और गले में सोने के हार शोभा पाते हैं। द्रोणार्चाय प्रज्वलित अग्नि के समान थे, उनका रथ ही अग्निषाला था, धनुष ही उस अग्नि की लपट था, बाण, शक्ति और गधाऐं समिधा का काम दे रही थीं, धृष्टद्युम्न के पुत्र पतंगों के समान उस द्रोण रूपी अग्नि में जलकर भष्म हो गये। इसी प्रकार सुन्दर अंगदों से विभूषित पांचो शूरवीर भाई कैकय राजकुमार समरांगन में सम्मुख होकर जूझ रहे थे। वे सब के सब आचार्य द्रोण के हाथ से मारे जाकर सो रहे हैं। इन सबके कवच तपाये हुए स्वर्ण के बने हुए हैं और इनके रथ समूहेें ताल चिन्हित ध्वाजाओं से सुशोभित हैं। ये राजकुमार अपनी प्रभा से प्रज्वलित अग्नि के समान भू-तल को प्रकाषित कर रहे हैं। माधव। देखो, युद्धस्थल में द्रोणाचार्य ने जिन्हें मार गिराया था वे राजा द्रुपद सो रहे हैं, मानो किसी वन में विशाल सिंह के द्वारा कोई महान गजराज मारा गया हो।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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