श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर
श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 180 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भीमराव गोपाल देश्पांडे |
श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर (1871-1934) मराठी के स्वच्छंदतावादी नाटकों के जनक। आपकी प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा विदर्भ में हुई। विद्यार्थी अवस्था में ही इनकी नाट्य एवं काव्य प्रतिभा उमड़ पड़ी। हाई स्कूल में पढ़ते समय इन्होंने श्री चिपलूणकर की निबंधमाला तथा अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया। वकील होने के बाद आप खामगाँव तथा जलगाँव में वकालत करने लगे। ज्योतिर्गणित में भी आप निपुण थे। 1893 ई. के लगभग आपका पहला नाटक अभिनीत हुआ जिसने स्वच्छंदतावाद एवं सौंदर्यपूर्ण नाटकों का श्रीगणेश किया। इन्होंने नाट्यरचना में बहुत कुछ सुधार किया और नाट्य को विनोद से अत्यधिक रंजक बनाया। उर्दू और फारसी गज़लों को नाटकों में स्थान दिया। लगभग दस वर्षो तक ये कालेज के विद्यार्थियों के प्रिय नाटककार थे जिनके नाटकों के अभिनय के लिये विद्यार्थी नाटकमंडली के संचालक को प्रार्थनापत्र भेजते थे और नाटकों के प्रयोग शनिवार और रविवार के दिन होते थे। दर्शकों का रंजन करते हुए सौम्य सामाजिक सुधारों का कलापूर्ण उद्घाटन करने में ये सफल रहे। इनके नाटकों की ख्याति का आधार नवशिक्षित युवक युवतियों के चटपटे, आकर्षण एवं तीव्र व्यंग्ययुक्त और बौद्धिक तड़क भड़क से ओतप्रोत कथोपकथन प्रेमविद्ध युवक और युवतियों के तरल, स्निग्ध व्यंग्योक्ति पूर्ण और परस्पर निरुत्तर करने वाले संवाद थे जिनसे इनके नाटक खूब लोकप्रिय हुए। इनके नाटकों का वातावरण प्राय: विनोदपूर्ण होता है। अपने मोलियर की रचनाशैली के अनुकरण पर 12 रंजन प्रधान नाटकों की रचना की जिनमें वधूपरीक्षा, मतिविकार, मूक नायक, बीरतनय अधिक लोकप्रिय हैं।
कोल्हटकर मराठी के आद्य विनोदाचार्य हैं। इन्होंने जेरोमी, मार्क ट्वेन, मैक्स ऑरेल, मोलिअर, स्टर्न, फील्डिंग इत्यादि साहित्यिकों की अमर कृतियों से स्फूर्ति प्राप्त कर सामयिक सामाजिक परिस्थितियों को सुधारने के अभिप्राय से 1901 में विनोद-व्यंग्य पूर्ण लेख लिखना प्रारंभ किया जो ‘सुदामा के चाउर’ या ‘साहित्य बत्तीसी’ नामक पुस्तक में संगृहीत हैं। यह पुस्तक आधुनिक मराठी हास्यरस का उद्गम है, जिसका अनुसरण कर परवर्ती लेखकों ने विनोदधारा को पुष्ट किया। इनका विनोद अधिकतर बुद्धिनिष्ठ, कल्पनानिष्ठ हैं। इन्होंने विनोदनिर्मिति का शास्त्र भी लिखा जो अध्ययन करने योग्य है।
कोल्हटकर प्रौढ़ समीक्षक भी थे। इन्होंने साहित्यसम्राट् नरसिंहचिंतामणि केलकर के तोतयाचे बंड नामक सफल नाट्यकृति की लगभग 120 पृष्ठों में आधुनिक ढंग की समीक्षा लिखी जिसमें नाट्यशास्त्र का उद्बोधक विवेचन है। इसी प्रकार इन्होंने तत्वजिज्ञासु उपन्यासकार वामन मल्हार जोशी के दो उपन्यासों की गंभीर एवं विस्तृत आलोचना की जो पठनीय है।
कोल्हटकर उपन्यासकार, गल्पकार, कवि और आत्मकथा लेखक भी थे। आपकी बहुमुखी प्रतिभा के कारण विद्वत्समाज ने आपको साहित्य सम्राट् की उपाधि से संमानित किया था।
टीका टिप्पणी और संदर्भ