सर रिचर्ड स्टफर्ड क्रिप्स
सर रिचर्ड स्टफर्ड क्रिप्स
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 204 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
सर रिचर्ड स्टफर्ड क्रिप्स(1889-1952 ई.)। अंग्रेज राजनीतिज्ञ और वकील । लंदन में 24 अप्रैल, 1889 ई. को जन्म। विंचेस्टर तथा लंदन के यूनिवर्सिटी कालेज में शिक्षा। वहीं रसायन विषय में शोध कार्य किया। बाइस वर्ष की आयु में ही रायल सोसाइटी के सम्मुख रसायन विषयक एक निबंध का पाठ किया। विज्ञान के मेधावी विद्यार्थी होते हुए भी उन्होंने वकालत का पेशा चुना और 1913 ई. में वकील बने। प्रथम महायुद्ध के समय 1914 ई. में रेडक्रास के ट्रक ड्राइवर बनकर फ्रांस गए। 1915 ई. में लौटकर एक कारखाने में सहायक निरीक्षक बने।
1927 ई. में उन्होंने पुन: वकालत आरंभ की । 1929 में ही वे मजदूर दल में सम्मिलित हुए और 1930 ई. में वे सॉलीसीटर जनरल बने। उसी वर्ष उन्हें सर की उपाधि प्राप्त हुई। जब रामजे मेकडॉनेल्ड ने राष्ट्रीय सरकार बनाई तो उन्होंने उसमें सम्मिलित होने से इनकार किया और मजदूर दल के घोर वामपंथी पक्ष के समर्थक होने के नाते 1932 ई. में समाजवादी संघ की स्थापना में योग दिया। 1934 ई. में वे मजदूर दल की संचालक समिति के सदस्य चुने गए किंतु जब मजदूर दल ने राष्ट्रसंघ द्वारा इटली की निंदा का समर्थन किया तो वे उससे अलग हो गए और राष्ट्रीय सरकार को परास्त करने के लिये श्रमजीवी वर्ग का संयुक्त मोर्चा बनाने पर जोर देने लगे। मार्च, 1937 ई. में मजदूर दल ने यह निर्णय किया कि समाजवादी संघ की सदस्यता का मजदूर दल की सदस्यता के साथ सामंजस्य नहीं है। 1938 ई. में जब नाजी जर्मनी का खतरा सामने आया तब क्रिप्स की वैदेशिक नीति में कुछ परिवर्तन हुआ फिर भी वे लोकप्रिय मोर्चे का समर्थन करते रहे। फलत: वे मजदूर दल से निष्कासित कर दिए गए। 20 मई, 1940 ई. के विंस्टन चचिंल ने उन्हें राजदूत बनाकर रूस भेजा और वहाँ वह आंगल-सोवियत संधि कराने में सफल हुए।
जब फरवरी, 1942 ई. में वे लौटे तो लोकसभा के नेता और युद्ध मंत्रिमंडल के सदस्य बनाए गए। उसी वर्ष वे भारत की स्वतंत्रता की रूपरेखा निर्धारित करने के लिये भारत आए किंतु वे अपने मंतव्य में सफल न हो सके। फिर भी भारतीय नेताओं के दृष्टिकोण बदल पाने में समर्थ रहे ।
1942 ई. के नवंबर में वे वायुयाननिर्माण के मंत्री बनाए गए और 1945 ई. तक उस पद पर रहे। जुलाई, 1945 ई. में व्यापार संघटन (बोर्ड ऑव ट्रेड) के अध्यक्ष बने। 1946 ई. में वे भारतीय समस्याओं को सुलझाने के लिये भारत आए। किंतु कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच गहरे मतभदे के कारण वे कुछ न कर पाए।
1947 ई. के आर्थिक संकट के समय उन्होंने जो स्पष्ट वक्तव्य दिए उससे जनता के बीच उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी और वे आर्थिक मामलों के मंत्री बनाए गए। किंतु कुछ ही सप्ताह बाद उन्हें अर्थमंत्री का पद सम्हालना पड़ा। शीघ्र ही उनका स्वास्थ्य गिरने लगा फलत: 20 अक्तूबर, 1950 ई. को उन्होंने सार्वजनिक जीवन से संयास ले लिया। 21 अप्रैल, 1952 ई. को ज्यूरिच (स्वीज़रलैंड) में उनकी मृत्यु हुई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ