"हकीम अजमल ख़ाँ": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (हकीम अजमल खाँ का नाम बदलकर हकीम अजमल ख़ाँ कर दिया गया है)
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति १: पंक्ति १:
{{भारतकोश पर बने लेख}}
{{लेख सूचना
{{लेख सूचना
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पंक्ति २२: पंक्ति २३:
|अद्यतन सूचना=
|अद्यतन सूचना=
}}
}}
'''अजमल खाँ, हकीम''' राष्ट्रीय मुस्लिम विचारधारा के समर्थक थे तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये सन्‌ 1863 ई. में दिल्ली में पैदा हुए। फारसी अरबी के बाद हकीमी पढ़ी। 1892 ई. में रामपुर राज्य में खास हकीम नियुक्त हुए। यहाँ दस साल तक रहने और हकीमी करने से इनकी प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई। सन्‌ 1902 ई. में वहाँ से नौकरी छोड़कर ये इराक गए। वापसी पर दिल्ली में रहकर मदरसे तिब्बिया की नींव डाली जो अब तिब्बिया कालेज हो गया है। फिर कांग्रेस में शामिल हुए। सन्‌ 1920 में जामिया मिल्लिया नामक संस्था स्थापित करने में हिस्सा लिया। कांग्रेस के 33वें अधिवेशन (1918 ई.) की स्वागतकारिणी के वे अध्यक्ष थे। 1921 ई. में कांग्रेस के अहमदाबाद वाले अधिवेशन के सभापति हुए। इसी साल खिलाफत कान्फ्रसें की भी अध्यक्षता की। 1924 ई. में वे अरब गए। 1927 ई. में यूरोप से दिल्ली वापस आए। 29 दिसंबर, 1927 को इनकी मृत्यु हुई। हकीम साहब का आजीवन प्रयत्न यह रहा कि हिंदू मुसलमानों में मेल रहे।  
'''हकीम अजमल खाँ''' राष्ट्रीय मुस्लिम विचारधारा के समर्थक थे तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये सन्‌ 1863 ई. में दिल्ली में पैदा हुए। फारसी अरबी के बाद हकीमी पढ़ी। 1892 ई. में रामपुर राज्य में खास हकीम नियुक्त हुए। यहाँ दस साल तक रहने और हकीमी करने से इनकी प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई। सन्‌ 1902 ई. में वहाँ से नौकरी छोड़कर ये इराक गए। वापसी पर दिल्ली में रहकर मदरसे तिब्बिया की नींव डाली जो अब तिब्बिया कालेज हो गया है। फिर कांग्रेस में शामिल हुए। सन्‌ 1920 में जामिया मिल्लिया नामक संस्था स्थापित करने में हिस्सा लिया। कांग्रेस के 33वें अधिवेशन (1918 ई.) की स्वागतकारिणी के वे अध्यक्ष थे। 1921 ई. में कांग्रेस के अहमदाबाद वाले अधिवेशन के सभापति हुए। इसी साल खिलाफत कान्फ्रसें की भी अध्यक्षता की। 1924 ई. में वे अरब गए। 1927 ई. में यूरोप से दिल्ली वापस आए। 29 दिसंबर, 1927 को इनकी मृत्यु हुई। हकीम साहब का आजीवन प्रयत्न यह रहा कि हिंदू मुसलमानों में मेल रहे।  
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}




<!-- कृपया इस संदेश से ऊपर की ओर ही सम्पादन कार्य करें। ऊपर आप अपनी इच्छानुसार शीर्षक और सामग्री डाल सकते हैं -->
<!-- यदि आप सम्पादन में नये हैं तो कृपया इस संदेश से नीचे सम्पादन कार्य न करें -->


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

१३:०९, ११ मार्च २०१३ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
हकीम अजमल ख़ाँ
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 82
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक रजिया सज्जाद जहीर ।

हकीम अजमल खाँ राष्ट्रीय मुस्लिम विचारधारा के समर्थक थे तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये सन्‌ 1863 ई. में दिल्ली में पैदा हुए। फारसी अरबी के बाद हकीमी पढ़ी। 1892 ई. में रामपुर राज्य में खास हकीम नियुक्त हुए। यहाँ दस साल तक रहने और हकीमी करने से इनकी प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई। सन्‌ 1902 ई. में वहाँ से नौकरी छोड़कर ये इराक गए। वापसी पर दिल्ली में रहकर मदरसे तिब्बिया की नींव डाली जो अब तिब्बिया कालेज हो गया है। फिर कांग्रेस में शामिल हुए। सन्‌ 1920 में जामिया मिल्लिया नामक संस्था स्थापित करने में हिस्सा लिया। कांग्रेस के 33वें अधिवेशन (1918 ई.) की स्वागतकारिणी के वे अध्यक्ष थे। 1921 ई. में कांग्रेस के अहमदाबाद वाले अधिवेशन के सभापति हुए। इसी साल खिलाफत कान्फ्रसें की भी अध्यक्षता की। 1924 ई. में वे अरब गए। 1927 ई. में यूरोप से दिल्ली वापस आए। 29 दिसंबर, 1927 को इनकी मृत्यु हुई। हकीम साहब का आजीवन प्रयत्न यह रहा कि हिंदू मुसलमानों में मेल रहे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ