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*इस बोली में तान के चढ़ाव-उतार से किसी-किसी शब्द में आठ अर्थों तक का बोध होता है। | *इस बोली में तान के चढ़ाव-उतार से किसी-किसी शब्द में आठ अर्थों तक का बोध होता है। | ||
*अब इसे रोमन लिपि में भी लिखा जाने लगा है। | *अब इसे रोमन लिपि में भी लिखा जाने लगा है। | ||
*नागरी लिपि में भी इस भाषा और इसके साहित्य को लिखित रूप देने का प्रयास हो रहा है। | *नागरी लिपि में भी इस भाषा और इसके साहित्य को लिखित रूप देने का प्रयास हो रहा है। | ||
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१२:००, २८ जनवरी २०१४ के समय का अवतरण
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अंगामी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 12 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. मोहन लाल तिवारी |
अंगामी नागालैंड राज्य की सोलह बोलियों में से एक प्रमुख बोली तथा राज्य की प्रमुख भाषा है। नागालैंड के निवासियों के बीच यह संपर्क भाषा के रूप में विकसित हो चुकी हैं।
- अंगामी भारत की 1652 भाषाओं एवं बोलियों में से एक है।
- देश में इसके बोलने वालों की संख्या लगभग एक लाख के क़रीब है।
- यह चीनी परिवार की असमी-बर्मी-शाखा की एक तानिम प्रधान भाषा है।
- इस बोली में तान के चढ़ाव-उतार से किसी-किसी शब्द में आठ अर्थों तक का बोध होता है।
- अब इसे रोमन लिपि में भी लिखा जाने लगा है।
- नागरी लिपि में भी इस भाषा और इसके साहित्य को लिखित रूप देने का प्रयास हो रहा है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ