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एडवर्ड जेनर (सन् 1749-1823) अंग्रेज कायचिकित्सक तथा चेचक के टीके के आविष्कारक थे। इनका जन्म 17 मई, सन् 1749 को बर्कले में हुआ। उट्टन में प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के उपरांत ये सन् 1770 में लंदन गए और सन् 1792 में ऐंड्रय्ज कालेज से एमo डीदृ की उपाधि प्राप्त की। | |||
अपने अध्ययन काल में ही इन्होंने कैप्टेन कुक की समुद्री यात्रा से प्राप्त प्राणिशास्त्रीय नमूनों को व्यवस्थित किया। सन् 1775 में इन्होंने सिद्ध किया कि गोमसूरी (cowpox) में दो विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ सम्मिलित है, जिनमें से केवल एक चेचक से रक्षा करती है। इन्होंने यह भी निश्चित किया कि गोमसूरी, चेचक और घोड़े के पैर की ग्रीज़ (grease) नामक बीमारियाँ अनुषंगी हैं। सन् | अपने अध्ययन काल में ही इन्होंने कैप्टेन कुक की समुद्री यात्रा से प्राप्त प्राणिशास्त्रीय नमूनों को व्यवस्थित किया। सन् 1775 में इन्होंने सिद्ध किया कि गोमसूरी (cowpox) में दो विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ सम्मिलित है, जिनमें से केवल एक चेचक से रक्षा करती है। इन्होंने यह भी निश्चित किया कि गोमसूरी, चेचक और घोड़े के पैर की ग्रीज़ (grease) नामक बीमारियाँ अनुषंगी हैं। सन् 1798 में इन्होंने 'चेचक के टीके के कारणों और प्रभावों' पर एक निबंध प्रकाशित किया। | ||
सन् | सन् 1803 में चेचक के टीके के प्रसार के लिये रॉयल जेनेरियन संस्था स्थापित हुई। इनके कार्यों के उलक्ष्य में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने इन्हें एम. डी. की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया। सन् 1822 में 'कुछ रोगों में कृत्रिम विस्फोटन का प्रभाव' पर निबंध प्रकाशित किया और दूसरे वर्ष रॉयल सोसाइटी में 'पक्षी प्र्व्राजन' पर निबंध लिखा। 26 जनवरी, 1823 को बर्कले में इनका देहावसान हो गया। | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
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एडवर्ड जेनर (सन् 1749-1823) अंग्रेज कायचिकित्सक तथा चेचक के टीके के आविष्कारक थे। इनका जन्म 17 मई, सन् 1749 को बर्कले में हुआ। उट्टन में प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के उपरांत ये सन् 1770 में लंदन गए और सन् 1792 में ऐंड्रय्ज कालेज से एमo डीदृ की उपाधि प्राप्त की।
अपने अध्ययन काल में ही इन्होंने कैप्टेन कुक की समुद्री यात्रा से प्राप्त प्राणिशास्त्रीय नमूनों को व्यवस्थित किया। सन् 1775 में इन्होंने सिद्ध किया कि गोमसूरी (cowpox) में दो विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ सम्मिलित है, जिनमें से केवल एक चेचक से रक्षा करती है। इन्होंने यह भी निश्चित किया कि गोमसूरी, चेचक और घोड़े के पैर की ग्रीज़ (grease) नामक बीमारियाँ अनुषंगी हैं। सन् 1798 में इन्होंने 'चेचक के टीके के कारणों और प्रभावों' पर एक निबंध प्रकाशित किया।
सन् 1803 में चेचक के टीके के प्रसार के लिये रॉयल जेनेरियन संस्था स्थापित हुई। इनके कार्यों के उलक्ष्य में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने इन्हें एम. डी. की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया। सन् 1822 में 'कुछ रोगों में कृत्रिम विस्फोटन का प्रभाव' पर निबंध प्रकाशित किया और दूसरे वर्ष रॉयल सोसाइटी में 'पक्षी प्र्व्राजन' पर निबंध लिखा। 26 जनवरी, 1823 को बर्कले में इनका देहावसान हो गया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ