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गोस्वामी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 43 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्याम तिवारी |
गोस्वामी संस्कृत मूल गोस्वामिन् से व्युत्पन्न, अन्य तद्भवरूप गुसाईं गोसाईं, गोसामी आदि; अर्थ है जितेंद्रिय अथवा गौओं [१] का स्वामी। हिंदू साधुओं तथा भिक्षुओं का एक संप्रदाय और जातिर्सज्ञक उपाधिविशेष। ये लोग उत्तरप्रदेश, बंगाल, बंबई, राजस्थान, मध्यप्रदेश और दक्षिण भारत में पाए जाते हैं। संप्रदायविशेष की दृष्टि से इसके दो वर्ग है- शैव गोस्वामी तथा वैष्णव गोस्वामी।
शैव मतावलंबी गोस्वामी शंकराचार्य के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बताए जाते हैं। उनके चार मुख्य शिष्यों से दसवर्गो अथवा दशनामियों की उत्पत्ति हुई। इसके दो प्रधान विभाग मठधारी अथवा संन्यासी और घरबारी अथवा गृहस्थ हैं। मठधारी शैव गोस्वामी वाराणसी, हरद्वार आदि तीथस्थानों में स्थित अपने अखाड़ों या मठों में निवास करते हैं। इनसे संबंधित एवं दीक्षित गृहस्थ व्यवसायी हैं जो व्यापार के साथ अन्य धंधे भी करते और पारिवारिक जीवन व्यतीत करते हैं। इस संप्रदाय में निम्नतम वर्ग को छोड़ अन्य सभी वर्णों के बालक प्रवेश पाते हैं। वाराणसी आदि स्थानों में संप्रदाय की दीक्षा के लिये शिवरात्रि के दिन विशेष पर्व और आयोजन होते हैं।
वैष्णव गोस्वामी पद पूर्वी बंगाल तथा आसाम के वैष्णव प्रधानों के लिये भी प्रयुक्त होता है। इनमें भी मठधारी और घरबारी होते है। बंबई, उतरप्रदेश तथा बंगाल के गुसाई अपनी रक्त की शुद्धता, प्रतिष्ठा और संप्रदाय की मूलधारा से अविच्छिन्नता के कारण उल्लेख्य हैं। किंतु घुमक्कड़ जाति अथवा भिक्षुक रूप में निर्देशित गुसाईं,पथ भ्रष्ट भी हो गये थे। मध्ययुग तथा परवर्ती काल में भी इन कृत्रिम गुसाइयों का आंतक देश के कई भागों में व्याप्त था। बाद में ये मराठों की सेना में भरती हुए। महादजी सिंधिया की सेवा में गुसाइयों की एक बड़ी संख्या नियुक्त थी।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इंद्रियों, गोपियों