"गोनंद": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "१" to "1") |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के ३ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
{{भारतकोश पर बने लेख}} | |||
{{लेख सूचना | {{लेख सूचना | ||
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 | |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 | ||
पंक्ति २२: | पंक्ति २३: | ||
|अद्यतन सूचना= | |अद्यतन सूचना= | ||
}} | }} | ||
गोनंद कार्तिकेय के एक गण का नाम था। गोनंद अथवा गोनर्द सारस पक्षी को भी कहते हैं जो अपने ही शब्दों से प्रसन्न होता है और पानी में रहकर ही आनंद प्राप्त करता है। गोनंद को कभी कभी गोनदं देश से भी मिलाया जाता है, जिसे हेमचंद्र ने पतंजलि मुनि<ref>पातंजलि 'योगसूत्र' और 'महाभाष्य' के रचयिता</ref>का निवासस्थान बताया है। गोनर्द उत्तर प्रदेश के गोंडा का प्राचीन नाम है। | गोनंद कार्तिकेय के एक गण का नाम था। गोनंद अथवा गोनर्द सारस पक्षी को भी कहते हैं जो अपने ही शब्दों से प्रसन्न होता है और पानी में रहकर ही आनंद प्राप्त करता है। गोनंद को कभी कभी गोनदं देश से भी मिलाया जाता है, जिसे हेमचंद्र ने पतंजलि मुनि<ref>पातंजलि 'योगसूत्र' और 'महाभाष्य' के रचयिता</ref>का निवासस्थान बताया है। गोनर्द उत्तर प्रदेश के गोंडा का प्राचीन नाम है। | ||
गोनंद नाम के तीन राजा भी हुए जो प्राचीन काश्मीर के शासक थे। उन्हीं के लिये इस नाम का विशेष प्रयोग हुआ और कल्हण ने अपने काश्मीर के इतिहास राजतंरगिणी में उनका यथास्थान काफी वर्णन किया है। प्रथम गोनंद तो प्रागैतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है और कल्हण ने उसे कलियुग के प्रारंभ होने के पूर्व का एक प्रतापी शासक माना है। उसके राज्य का विस्तार गंगा के उद्गमस्थान कैलाश पर्वत तक बताया गया है। <ref>काश्मीरेंद्र से गोनदो वेल्लगंगादुकूलया। दिशा कैलासहासिन्या प्रतापी पर्य्युपासत-राज., 1. | गोनंद नाम के तीन राजा भी हुए जो प्राचीन काश्मीर के शासक थे। उन्हीं के लिये इस नाम का विशेष प्रयोग हुआ और कल्हण ने अपने काश्मीर के इतिहास राजतंरगिणी में उनका यथास्थान काफी वर्णन किया है। प्रथम गोनंद तो प्रागैतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है और कल्हण ने उसे कलियुग के प्रारंभ होने के पूर्व का एक प्रतापी शासक माना है। उसके राज्य का विस्तार गंगा के उद्गमस्थान कैलाश पर्वत तक बताया गया है। <ref>काश्मीरेंद्र से गोनदो वेल्लगंगादुकूलया। दिशा कैलासहासिन्या प्रतापी पर्य्युपासत-राज., 1.57</ref> यह गोनंद मगध के राजा जरासंघ का संबंधी (भाई) था ओर वृष्णियों के विरुद्ध मथुरानगरी के पश्चिमी द्वार पर अवरोध किया था ताकि कृष्ण आदि उधर से भाग न निकलें। परंतु अंत में वह बलराम के हाथों संभवत: युद्ध करते मारा गया। द्वितीय गोनंद उसके थोड़े दिन बाद शासक हुआ और कल्हण का कथन है कि उसी के समय महाभारत का युद्ध लड़ा गया। किंतु उस समय वह अभी बालक ही था और कौरवों पांडवों में किसी ने भी उससे महाभारत युद्ध में भाग लेने को नहीं कहा। उसकी माता का नाम यशोमति था, जिसकी कल्हण ने प्रशंसापूर्ण चर्चा की है। तृतीय गोनंद काश्मीर के ऐतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है, परंतु उसका ठीक ठीक समय निश्चित कर सकना कठिन कार्य है। इतना निश्चित है कि व मौर्यवंशी अशोक और जालौक- जो दोनों ही काश्मीर पर अधिकार बनाए रखने में सफल रहे- के बाद हुआ था। लगता है, वह परंपरागत वैदिक धर्म का माननेवाला था, क्योंकि उसके द्वारा बौद्धधर्मावलंबियों की कुरीतियों की समाप्ति, वैदिक आचरों की पुन: प्रतिष्ठा और दुष्ट बौद्धों के अत्याचारों की समाप्ति की बात राजतंरगिणी में कल्हण ने कही है। यह भी वर्णन मिलता है कि उसके राज्य में सुखशांति की कमी नहीं थी और प्रजा धनधान्य से पूर्ण थी। स्पष्ट है कि वह शक्तिशाली और सुशासक था और प्रजा के हित की चिंता करता था। राजतंरगिणी के अनुसार उसने 35 वर्षों तक राज्य किया। इतिहास की आधुनिक कृतियों में गोनंद नामधारी राजाओं की काश्मीर में बहुतायत के कारण उस प्रदेश के विशिष्ट राजवंश का नाम ही गोनंद वंश से अभिहित होता है। | ||
१०:०२, १९ जुलाई २०१४ के समय का अवतरण
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
गोनंद
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 22 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | विशुद्धानंद पाठक |
गोनंद कार्तिकेय के एक गण का नाम था। गोनंद अथवा गोनर्द सारस पक्षी को भी कहते हैं जो अपने ही शब्दों से प्रसन्न होता है और पानी में रहकर ही आनंद प्राप्त करता है। गोनंद को कभी कभी गोनदं देश से भी मिलाया जाता है, जिसे हेमचंद्र ने पतंजलि मुनि[१]का निवासस्थान बताया है। गोनर्द उत्तर प्रदेश के गोंडा का प्राचीन नाम है।
गोनंद नाम के तीन राजा भी हुए जो प्राचीन काश्मीर के शासक थे। उन्हीं के लिये इस नाम का विशेष प्रयोग हुआ और कल्हण ने अपने काश्मीर के इतिहास राजतंरगिणी में उनका यथास्थान काफी वर्णन किया है। प्रथम गोनंद तो प्रागैतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है और कल्हण ने उसे कलियुग के प्रारंभ होने के पूर्व का एक प्रतापी शासक माना है। उसके राज्य का विस्तार गंगा के उद्गमस्थान कैलाश पर्वत तक बताया गया है। [२] यह गोनंद मगध के राजा जरासंघ का संबंधी (भाई) था ओर वृष्णियों के विरुद्ध मथुरानगरी के पश्चिमी द्वार पर अवरोध किया था ताकि कृष्ण आदि उधर से भाग न निकलें। परंतु अंत में वह बलराम के हाथों संभवत: युद्ध करते मारा गया। द्वितीय गोनंद उसके थोड़े दिन बाद शासक हुआ और कल्हण का कथन है कि उसी के समय महाभारत का युद्ध लड़ा गया। किंतु उस समय वह अभी बालक ही था और कौरवों पांडवों में किसी ने भी उससे महाभारत युद्ध में भाग लेने को नहीं कहा। उसकी माता का नाम यशोमति था, जिसकी कल्हण ने प्रशंसापूर्ण चर्चा की है। तृतीय गोनंद काश्मीर के ऐतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है, परंतु उसका ठीक ठीक समय निश्चित कर सकना कठिन कार्य है। इतना निश्चित है कि व मौर्यवंशी अशोक और जालौक- जो दोनों ही काश्मीर पर अधिकार बनाए रखने में सफल रहे- के बाद हुआ था। लगता है, वह परंपरागत वैदिक धर्म का माननेवाला था, क्योंकि उसके द्वारा बौद्धधर्मावलंबियों की कुरीतियों की समाप्ति, वैदिक आचरों की पुन: प्रतिष्ठा और दुष्ट बौद्धों के अत्याचारों की समाप्ति की बात राजतंरगिणी में कल्हण ने कही है। यह भी वर्णन मिलता है कि उसके राज्य में सुखशांति की कमी नहीं थी और प्रजा धनधान्य से पूर्ण थी। स्पष्ट है कि वह शक्तिशाली और सुशासक था और प्रजा के हित की चिंता करता था। राजतंरगिणी के अनुसार उसने 35 वर्षों तक राज्य किया। इतिहास की आधुनिक कृतियों में गोनंद नामधारी राजाओं की काश्मीर में बहुतायत के कारण उस प्रदेश के विशिष्ट राजवंश का नाम ही गोनंद वंश से अभिहित होता है।