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|संस्करण=सन्‌ 1976 ईसवी
 
|संस्करण=सन्‌ 1976 ईसवी
|स्रोत=टी. एस. इलियट : ए च्वॉयस ऑव किप्लिग्ज़ वर्स 1९४1; एडवर्ड शैक्स : आर. किपलिंग, ए स्टडी इन लिटरेचर ऐंड पोलिटिकल आइडियाज़, 1९४०; सिरिल फाल्स : आरऋ किप्लिंग : ए क्रिटिकल स्टडी, 1९1५, डब्ल्यू. एम. हार्ट: किप्लिंग- दि स्टोरी राइटर, 1९1८।
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|स्रोत=टी. एस. इलियट : ए च्वॉयस ऑव किप्लिग्ज़ वर्स 1९41; एडवर्ड शैक्स : आर. किपलिंग, ए स्टडी इन लिटरेचर ऐंड पोलिटिकल आइडियाज़, 1९4०; सिरिल फाल्स : आरऋ किप्लिंग : ए क्रिटिकल स्टडी, 1९1५, डब्ल्यू. एम. हार्ट: किप्लिंग- दि स्टोरी राइटर, 1९1८।
 
|उपलब्ध=भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
 
|उपलब्ध=भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
 
|कॉपीराइट सूचना=नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
 
|कॉपीराइट सूचना=नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी

०७:३०, १८ अगस्त २०११ का अवतरण

लेख सूचना
किपलिंग रुडयार्ड
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 9
भाषा हिन्दी देवनागरी
लेखक टी. एस. इलियट, एडवर्ड शैक्स, सिरिल फाल्स, आरऋ किप्लिंग, डब्ल्यू. एम. हार्ट
संपादक सुधाकर पांडेय, आर. किपलिंग,
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
स्रोत टी. एस. इलियट : ए च्वॉयस ऑव किप्लिग्ज़ वर्स 1९41; एडवर्ड शैक्स : आर. किपलिंग, ए स्टडी इन लिटरेचर ऐंड पोलिटिकल आइडियाज़, 1९4०; सिरिल फाल्स : आरऋ किप्लिंग : ए क्रिटिकल स्टडी, 1९1५, डब्ल्यू. एम. हार्ट: किप्लिंग- दि स्टोरी राइटर, 1९1८।
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक विक्रमादित्य राय

किपलिंग, रुडयार्ड (1८६५-1९3६)। सुप्रसिद्ध अंगरेजी साहित्यकार। बंबई में जन्म। छह वर्ष की अवस्था में इंग्लैंड गए और वहां पर वह स्थल तथा नौसेना के सैनिकों के पुत्रों के लिए र्निदिष्ट स्कूल में भर्ती हुए। वहां के अनुभवों का सजीव चित्रण उन्होंने स्टाकी ऐंड को में किया है। स्कूली दिनों में उन्होंने कुछ कविताएँ भी लिखी थीं जिन्हें उनके पिता ने स्कूल ब्वाय लिरिक्स के नाम से 1८८1 में प्रकाशित करवाया। 1७ वर्ष की अवस्था में भारतवर्ष लौटकर वे सिविल ऐंड मिलिटरी गजेट के सहायक संपादक नियुक्त हुए। इसी पत्र के स्तंभो में उनकी कविताएँ तथा कहानियाँ प्रकाशित हुई थी जो बाद में ‘डिपार्टमेंटल डिटीज़’ तथा ‘प्लेन टेल्स फ्रॉम हिल्स’ के नाम से पुस्तकाकार प्रकाशित होकर प्रसिद्ध हुई : इनमें उन्होंने ऐंग्लो इंडियन समाज के सजीव चित्र के साथ-साथ साधारण सैनिकों की कठिनाइयों तथा साहस्‌ सिविलियन अफसरों की कार्य पटुता तथा हिंदुस्तानी प्रजा के संकट तथा रहस्यमय व्यवहारों को विशद वर्णन किया है। उनके चीन, जापान तथा संयुक्त राज्य अमरीका के भ्रमण का वृतांत ‘फ्रॉम सी टु सी’ (1८९९) के नाम से प्रकाशित हुआ है।

किपलिंग के प्रथम उपन्यास, ‘दि लाइट दैट फ़ेल्ड’ का प्रकाशन 1८९1 में हुआ और एक वर्ष बाद ही उनका प्रसिद्ध बैरक रूम बैलड्स नामक पद्यसंग्रह पाठकों के सामने आया। 1८९3 में ‘मेनी इन्वेंशंस’ के नाम से उनका द्वितीय कहानीसंग्रह प्रकाशित हुआ। इसके बाद क्रमश: ‘दि जंगल बुक’ और ‘दि सेकंड जंगल बुक’ का प्रकाशन हुआ। तत्पश्चात ‘दि सेविन सीज़’, ‘कैप्टेन करेजियस’ तथा ‘दि डेज़ वर्क’ का प्रकाशन हुआ। जुलाई, सन्‌ 1८९७ ई. में महारानी विक्टोरिया के शासन की हीरक जयंती के अवसर पर ‘दि सेशनल’ नामक प्रसिद्ध कविता की रचना की। बोअर युद्ध के समय उनके प्रसिद्ध उपन्यास किम (1९०1) का प्रकाशन हुआ। बोअर युद्ध की समाप्ति के साथ ही उनकी ख्याति घटने लगी और उनके विचारों में भी परिवर्तन हुआ। वे ससेक्स प्रांत में जा बसे। वहाँ के संस्मरणों का समावेश उनकी कृतियों, जैसे ‘पक अॅव पुक्स हिल’ और ‘रिवार्डस ऐंड फेयरीज़’ में हुआ है। सन्‌ 1९०७ में उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।

किपलिंग की लोकप्रियता का रहस्य उनकी साहित्यिक कृतियों की नवीनता थी। उस नवीनता का लोप होते ही उनकी ख्याति भी कम होती गई। उन्होंने हिंदुस्तान में रहने वाले सभी सैनिकों के जीवन का चित्रण किया। उन्होंने काकनी भाषा को काव्य का माध्यम बनाकर तथा उसे लोकप्रिय स्वरलहरी में अनेकानेक छंदों में बाँध कर अनूठे लोकगीतों का निर्माण किया। इसी प्रकार उन्होंने यंत्रयुग के अनेक आविष्कारों को अपने साहित्य का अंग बनाकर तत्संबंधी पारिभाषिक शब्दों का असाधारण ज्ञान प्रदर्शित किया। इसी कारण उनकी कविताएँ अप्रत्याशित नवीनता से ओतप्रोत दिखलाई पड़ीं। परंतु यह नवीनता कृत्रिम कलई के समान ही क्षणिक सिद्ध हुई और उसके घिसते ही उनकी कला की रुक्षता नग्न रूप में प्रकट हुई। इसी तरह उनका साम्राज्यवाद भी तत्कालीन विचारधारा के अनुकूल होने से तुरंत लोकप्रिय हुआ। उन्होंने श्वेत जातियों के प्रभुत्व का समर्थन किया और अंग्रेजों को भगवान के विशेष अनुग्रह का पात्र मानकर उन्हें अनुन्नत काले लोगों को सभ्य तथा अनुशासित करने के पुनीत कर्तव्य के लिए प्रेरित किया। परंतु कालांतर में साम्राज्यवाद के अवसान के साथ ही उनका संदेश भी सारहीन तथा खोखला सिद्ध हुआ।

किपलिंग गद्य तथा पद्य दोनों प्रकार की रचनाओं में पत्रकार की प्रतिभा से ही प्रेरित रहे। उनका अनुभव विस्तृत था, शब्दज्ञान भी असाधारण था और हिंदुस्तान तथा अन्य देशों के बाह्य दृश्यों का-चाहे वे प्राकृतिक हों अथवा मानवसमूह के दैनिक व्यवहार से संबंधित उन्होंने सजीव चित्रण किया है। परंतु उनकी भाषा में न तो साहित्य का स्थायी सौष्ठव है और न क वि की पैनी दृष्टि जो वस्तुओं की आत्मा तक पहुँचने में समर्थ होती है। फिर भी उनकी कृतियों में कुछ ऐसी बातें अवश्य हैं जो उच्च साहित्य के तत्वों से अनुप्राणित है और उनके यश को जीवित रखने के लिए पर्याप्त हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ