"कबड्डी" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति १: पंक्ति १:
 +
{{भारतकोश पर बने लेख}}
 
{{लेख सूचना
 
{{लेख सूचना
 
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
 
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पंक्ति ४४: पंक्ति ४५:
 
<references/>
 
<references/>
  
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]] [[Category:खेल]] [[Category:खेलकूद कोश]]
+
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]] [[Category:खेल]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

१३:२८, ४ सितम्बर २०१४ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
कबड्डी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 402-404
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1975 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक नवरत्न कपूर


कबड्डी भारत का प्रसिद्ध एवं प्राचीन जन खेल है, जिसे ग्रामों और नगरों में आबालवृद्ध प्राय: अपनी अवस्था के लोगों की टोलियाँ बनाकर खेलते हैं। किसी मुहल्ले के चौक में, खुले मैदान में, उद्यान में अथवा किसी खाली खेत में जली लकड़ी के बुझे कोयले, खड़िया के टुकड़े अथवा कंकड़ी से समान आकारवाले (आयताकार अथवा वृत्ताकार) पाले खींच लिए जाते हैं। दोनों के ठीक बीच में एक रेखा चौड़ाई की ओर खींचकर इन्हें दो भागों में बाँट लेते हैं। साधारणत: चौड़ाई इतनी रहती है कि प्रत्येक खिलाड़ी की बीच आधे हाथ का अंतर छूटा रहे। आधी लंबाई से चौड़ाई सवा या डेढ़ गुना अधिक रखी जाती है। फटने के भय से कमील आदि उतारकर, जाँघिया, लँगोट या नेकर पहले और कई बार धोती या पाजामें को ही ऊपर खोंसकर खिलाड़ी पाले में उतर पड़ते हैं।

खेल प्रांरभ होने से पूर्व किसी सिक्के या सपाट कंकड़ी को उछालकर 'टॉस' कर लिया जाता है। टॉस जीतनेवाली टोली का एक सिर का पहला आदमी एक ही साँस में जोर से 'कबड्डी', 'कबड्डी' बोलता हुआ, उछलता कूदता दूसरी टोली के पाले में जाकर और विपक्षी दल के अधिकाधिक व्यक्तियों को छूकर, उनकी पकड़ में आने से पूर्व ही, 'कबड्डी', 'कबड्डी' कहता हुआ मध्यरेखा तक पहुँचने का प्रयत्न करता है। अभियान में सफल होनेवाले खिलाड़ी द्वारा छुए हुए विरोधी पक्ष के व्यक्ति पाले से बाहर बैठा दिए जाते हैं। इन्हें 'मरे हुए खिलाड़ी' (मरे हुए से हारने का अभिप्राय है) कहा जाता है। किंतु यदि 'कड्डी', 'कड्डी' का स्वर अलापनेवाला स्वयं ही दूसरे दलवालों के द्वारा पकड़ा जाए और मध्यरेखा तक पहुँचने के पहले उसकी साँस टूट जाए, या किसी प्रतिपक्षी को छूकर मध्यरेखा तक पहुँचने से पहले साँस टूट जाए, तो वह 'मर' जाता है। उसे अब खेलने का अधिकार नहीं रहता।

चित्र:उदाहरण.jpg
कबड्डी का पाला

इस प्रकार बारी-बारी से दोनों ओर के एक-एक खिलाड़ी विपक्षी दल में पहुँचकर अपना शौर्य दिखाते हैं। खिलाड़ी कभी स्वयं मरता है, कभी दूसरों को मारता है, कभी खाली हाथ अपने पाले में लौट आता है। मरने जीने (जागने) की यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक एक दल सभी व्यक्ति 'मर' कर पाले से बाहर नहीं बैठ जाते। जो टोली हार जाती है उसके जिम्मे एक पाला हो जाता है। 'मरे' हुए खिलाड़ी उसी क्रम से 'जीते' हैं (जीने से अभिप्राय है पाले से बाहर निकाले हुए व्यक्तियों का पाले में आकर पुन: खेलने लगना) जिस क्रम में वे मरे रहते हैं। जीनेवालों की संख्या विरोधी पक्ष के मरे खिलाड़ियों की संख्या के अनुसार होती है। पराजित टोली के जिम्मे पाला होने पर जब खेल दोबारा प्रारंभ होता है तब दोनों ओर के मृत खिलाड़ी पुन: जी उठते हैं। प्राय: दो बार के खेल में तब हार जीत का निर्णय हो जाता है, परंतु चार छह पालों तक भी, अथवा जब तक खिलाड़ी पूर्णतया थक न जाएँ तब यह खेल चलता रहता है।

क्रिकेट, फुटबाल, हाकी के सदृश कबड्डी प्रतियोगिता भी स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों में होने लगी है। खेल को वैज्ञानिक बनाने के लिए कुछ नियम भी बन गए हैं, जो प्राय: इस प्रकार हैं :

दोनों वर्गों में सात-सात खिलाड़ी रहते हैं। बड़े पाले में दोनों दलों का अलग-अलग पाला रहता है। प्रत्येक ओर का पाला ११ गज लंबा और सात गज चौड़ा होता है। चौड़ाई की ओर दोनों पार्श्वों में एक-एक गज स्थान छोड़ दिया जाता है। इसे प्रकोष्ठ कहते हैं। चौड़ाई के सात गज के अर्थात्‌ २१ फुट के स्थान को इस प्रकार बाँटा जाता है। मध्यरेखा (Middle अथवा March line) से ८ फुट की दूरी पर, मध्यरेखा के समांतर व्यत्यास रेखा (बॉक लाइन, Baulk line) खींची रहती है। इस प्रकार व्यत्यास रेखा से सीमारेखा १३ फुट की दूरी पर रह जाती है। ९० पाउंड से ११० पाउंड तक के कनिष्ठ खिलाड़ियों (Junior Players) तथा महिलाओं की कबड्डी प्रतियोगिता में पाला थोड़ा छोटा होता है। इस पाले की लंबाई प्रत्येक आर ९ गज और चौड़ाई ६ गज होती है। लंबाई की माप में से एक-एक गज प्रकोष्ठ दोनों ओर छूटा रहता है। मध्यरेखा अथवा प्रस्थानरेखा से व्यत्यास रेखा ७ फुट की दूरी पर होती है।

टॉस जीतनेवाले दल पर निर्भर है कि स्वयं अपने पाले से कबड्डी खेलनेवाले को दूसरे पाले में भेजकर खेल का प्रारंभ करे या विरोधी पक्ष के खिलाड़ी को अपनी ओर बुलाकर। पुराने खेल के समान ही एक पक्ष का खिलाड़ी (आक्रमणकारी : Raider) प्रस्थान (मध्य) रेखा से दूसरे पक्ष की ओर जाने और पुन: लौटने तक, बिना दूसरा साँस लिए, 'कबड्डी', 'कबड्डी' लाक्षणिक शब्द (Count) का निरंतर उच्चारण करता रहता है। नए नियमों के अनुसार प्रत्येक खिलाड़ी को विपक्षी दल के पाले की व्यत्यास रखा अवश्य पार करनी पड़ती है। खिलाड़ियों को छूने और पकड़ने के वही नियम हैं। संघर्ष (पकड़ धकड़, Struggle) प्रारंभ होने पर यदि खिलाड़ी 'कबड्डी' आदि लाक्षणिक शब्द का प्रयोग नहीं कर पाता, उसे अधिनिर्णायक (Referee) वापस लौटा देता है और प्रतिरक्षक वर्ग के खिलाड़ी (Anti-raider) को खेलने के लिए भेजता है। बारी-बारी से प्रत्येक दल प्रतिरक्षक का कार्य करता है। यदि अधिनिर्णयक के चेतावनी पर भी आक्रमणकारी नियम का पालन नहीं करता तो दूसरी वर्ग को एक अंश (Point) दे दियश जाता है। पकड़े गए आक्रमणकारी का श्वासावरोध करने का प्रयास प्रतिरक्षकों द्वारा नहीं होना चाहिए, न उसे सीमारेखा से बाहर ढकेलना ही चाहिए। ऐसी स्थिति में आक्रमणकारी को जीवित माना जाता हे। बाहर निकाला हुआ मृत प्रतिरक्षक भी आक्रमणकारी को नहीं पकड़ सकता। यदि ऐसा हो तब भी आक्रमणकारी जीवित रहता है। प्रत्येक आक्रमणकारी अपनी बारी से ही जाता है। अधिनिर्णायक के विचार में यदि इस नियम का बार-बार भंग हुआ हो तो प्रतिपक्ष को एक पाइंट दे दिया जाता है। यदि कोई दल संपूर्ण विरोधी दल को पराजित करने में सफल हो जाता है तो विजयी पक्ष को क्रीड़ावधि में प्राप्त अंशों के अतिरिक्त पाले (लोना) के दो अधिक अंश और मिल जाते हैं। पराजयासन्न दल के एक दो खिलाड़ी शेष रहने पर विजय की आशावाले दल का अग्रणी (Captain) बाहर बैठे हुए विरोधी दल के खिलाड़ियों को पुन: पाले में बुला सकता है। ऐसी दशा में भी विजयाशावाले दल को पहले से उपलब्ध अंशों के अतिरिक्त पाले के दो और अंश मिल जाते हैं।

यह खेल २० मिनट की अवधि में दो बार खेला जाता है१ महिलाओं और कनष्ठों के लिए खेल के बीच में पाँच मिनट का अंतराल (interval) रहता है। एक खेल के बाद पाले बदल दिए जाते हैं। खेल के अंत में जिस दल के अंशों की संख्या सर्वाधिक होती है वही विजयी घोषित किया जाता है। ग्रंथि (Tie) पड़ने पर प्रत्येक खेल के लिए पाँच-पाँच मिनट का अतिरिक्त समय दिया जाता है। इस अतिरिक्त समय में उभय पक्षों में उतने ही खिलाड़ी विद्यमान रहते हैं, जितने ग्रंथि पड़ने पर के समय थे। यदि किसी कारणवश कोई खेल पूरा नहीं होता तो खेल दोबारा होता है। किसी खिलाड़ी की चोट लगने पर उस दल का अग्रणी 'खेल स्थगित' (Time out) घोषणा कर देता है। यह स्थगन दो मिनट से अधिक नहीं होना चाहिए। यदि अधिनिर्णायक यह समझे कि खिलाड़ी को गहरी चोट आई है तो आहत खिलाड़ी के स्थान पर अतिरिक्त (extra) खिलाड़ी रखा जा सकता है।

किसी दल में एक दो खिलाड़ियों की कमी होने पर भी कबड्डी का खेल प्रारंभ हो सकता है, किंतु खेल पूरा होने पर ये अनुपस्थित खिलाड़ी भी 'मृत' गिने जाएँगे और इनके अंश विजयी वर्ग को मिलेंगे। अनुपस्थित खिलाड़ी खेल प्रांरभ होने पर अधिनिर्णायक की अनुमति से ही खेल में भाग ले सकते हैं। अनुपस्थित खिलाड़ियों के स्थानापन्न (Substitute) कभी भी रखे जा सकते हैं, किंतु खेल की समाप्ति तक (आहत खिलाड़ी को छोड़कर) इन स्थानापन्नों का परविर्तन नहीं हो कसता। यदि खेल दोबारा खेला जाए तो यह आवश्यक नहीं है कि पहलेवाले खिलाड़ी ही रहें।

खिलाड़ियों का न्यूनतम परिधान बनियान और नेकर है। नेकर के नीचे जाँघिया या लँगोट होना चाहिए। खिलाड़ी आवश्यकतानुसार सीधे तल्लेवाले कैनवेस के जूते और मोजे धारण कर सकता है। प्रत्येक खिलाड़ी के कपड़े पर संख्या लगी रहनी चाहिए। वह किसी प्रकार की धातु नहीं पहन सकता। शरीर पर तैल या कोई मृदु पदार्थ भी नहीं मल सकता। खिलाड़ियों के नाखून भी भली-भाँति कटे रहने चाहिए। खेल के समय अग्रणी या नेता के अतिरिक्त अन्य कोई अनुदेश भी नहीं दे सकता। उसका अनुदेश भी केवल अपने दलवालों के लिए होता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ