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०८:१५, १२ जून २०१५ के समय का अवतरण
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अंबर (वर्तमान आमेर)
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 60 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्रीमती विभा मुखर्जी। |
अंबर (वर्तमान आमेर) राजस्थान की एक प्राचीन विध्वस्त नगरी है जो 1728 ई. तक अंबर राज्य की राजधानी थी। यह राजस्थान की वर्तमान राजधानी जयपुर के उत्तर लगभग पाँच मील की दूरी पर स्थित है। इसके पुराने इतिहास का ठीक-ठीक पता नहीं चलता। कहा जाता है, इस नगरी की स्थापना मीनाओं द्वारा हुई थी। 967 ई. में यह बहुत समृद्धिशाली थी। मीनाओं ने सुरक्षा की दृष्टि से इस स्थान को उन विपत्तियों के दिनों में बड़ी बुद्धिमानी से चुना था। यह नगरी अरावली की एक घाटी में बसी है जो लगभग चारो ओर से पर्वतों द्वारा घिरी हुई है। कई दिनों की लड़ाई के पश्चात् राजपूतों ने इसे 1037 ई. में मीनाओं के राजा से जीत लिया और अपनी शक्ति को यहीं केंद्रित किया। तभी से यह राजपूतों की राजधानी बनी और राज्य का नाम भी अंबर राज्य पड़ा। 1728 में जब इस राज्य की सत्ता सवाई जयसिंह द्वितीय के हाथ में गई, तो उन्होंने राजधानी को जयपुर में स्थानांतरित किया और इस कारण तब से अंबर की प्रसिद्धि घटती गई।
अंबर का प्राकृतिक सौंदर्य बहुत ही उच्च कोटि का है। दर्शनीय स्थानों में राजपूतों का प्रासाद सुविख्यात है। इस प्रासाद को 1600 ई. में राजा मानसिंह ने बनवाया था। इसकी ऊँची मंजिल से चारों ओर का दृश्य अवर्णनीय रम्य चित्र उपस्थित करता है। यहाँ का दीवानेआम भी दर्शनीय भवन है। इसे मिर्जा राजा जयसिंह ने बनवाया था। इसके खंभों की शिल्पकला इतिहास प्रसिद्ध है।
वर्तमान अंबर नगरी में कुछ पुराने आकर्षक ऐतिहासिक खंडहरों के अतिरिक्त और कुछ उल्लेखनीय नहीं है। यह नगरी इस समय लगभग उजाड़ हो चुकी है। बड़ी-बड़ी इमारतें ध्वंसोन्मुख हैं और काल के कराल ग्रास में इतिहास प्रसिद्ध अंबर अब प्राय एक स्मृति मात्र रह गई है। अंबर में नगरपालिका है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ