"श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 1 श्लोक 62-69": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध:  प्रथम अध्याय: श्लोक 62-69 का हिन्दी अनुवाद </div>
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{{लेख क्रम |पिछला=श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 1 श्लोक 50-61|अगला=श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 2 श्लोक 1-16}}


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

०९:४६, ७ जुलाई २०१५ का अवतरण

दशम स्कन्ध: प्रथम अध्याय (पूर्वाध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: प्रथम अध्याय: श्लोक 62-69 का हिन्दी अनुवाद

परीक्षित्! इधर भगवान् नारद कंस के पास आये और उससे बोले कि ‘कंस! व्रज में रह्वाले नन्द आदि गोप, उसकी स्त्रियाँ, वसुदेव आदि वृष्णिवंशी यादव, देवकी आदि यदुवंश की स्त्रियाँ और नन्द, वसुदेव दोनों के सजातीय बन्धु-बान्धव और सगे-सम्बन्धी-सब-के-सब देवता हैं; जो इस समय तुम्हारी सेवा कर रहे हैं, वे भी देवता ही हैं।’ उन्होंने यह भी बतलाया कि ‘दैत्यों के कारण पृथ्वी का भर बढ़ गया है, इसलिए देवताओं की ओर से अब उनके वध की तैयारी की जा रही है’ ॥ ६२-६४ ॥ जब देवर्षि नारद इतना कहकर चले गये, तब कंस को यह निश्चय हो गया कि यदुवंशी देवता हैं और देवकी के गर्भ से विष्णुभगवान् ही मुझे मारने के लिए पैदा होने वाले हैं। इसलिय उसने देवकी और वसुदेव को हथकड़ी-बेड़ी से जकड़कर कैद में डाल दिया और उन दोनों से जो-जो पुत्र होते गए, उन्हें मारता गया।उसे हर बार यह शंका बनी रहती कि कहीं विष्णु ही उस बालक के रूप में न आ गया हो ॥ ६५-६६ ॥ परीक्षित्! पृथ्वी में यह बात प्रायः देखी जाती है कि अपने प्राणों का ही पोषण करने वाले लोभी राजा अपने स्वार्थ के लिए माता-पिता भाई-बन्धु और अपने अत्यन्त हितैषी इष्ट-मित्रों की भी हत्या कर डालते हैं ॥६७ ॥ कंस जानता था कि मैं पहले कालनेमि असुर था और विष्णु ने मुझे मार डाला था। इससे उसने यदुवंशियों से घोर विरोध ठान लिया ॥ ६८ ॥ कंस बड़ा बलवान् था। उसने यदु, भोज और अन्धक वंश के अधिनायक अपने पिता उग्रसेन को कैद कर लिया औ शूरसेन-देश का राज्य वह स्वयं करने लगा।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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