"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 147 श्लोक 84-92": अवतरणों में अंतर

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१२:४६, १९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

सप्तचत्वारिंशदधिकशततम (147) अध्याय: द्रोणपर्व (जयद्रथवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: सप्तचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 84-92का हिन्दी अनुवाद

प्रजानाथ ! उन घोडों को विचित्र स्वर्णमय कवचों से सुसज्जित किया गया था। वे सभी अब अच्छी श्रेणी के थे। उनसे जुते हुए उस रथ में क्षुद्र घंटिकाओं के समूह से निकलती हुई मधुर ध्वनि व्याप्त हो रही थीं। वहां रक्खे हुए शक्ति और तोमर शस्त्र विद्युत के समान प्रकाशित होते थे। उसमें बहुत-से अस्त्र शस्त्र आदि युद्धोपयोगी आवश्‍यक सामान एवं द्रव्य यथास्थान रखे गये थे। उस रथ के चलने पर मेघों की गर्जनाके समान गम्भीर शब्द होता था। दारूक का छोटा भाई उस रथ को सात्यकि के पास ले आया। सात्यकि ने उसी पर आरूढ़ होकर आपकी सेना पर आक्रमण किया। दारूक भी इच्छानुसार भगवान श्रीकृष्ण के निकट चला गया। राजन ! कर्ण के लिये भी एक सुन्दर रथ लाया गया, जिसमें शंख और गोदुग्ध के समान श्वेतवर्ण वाले, विचित्र सुवर्णमय कवच से सुसज्जित और अत्यन्त वेगशाली श्रेष्ठ अश्‍व जुते हुए थे। उसमें सुवर्णमयी रज्जु से आवेष्टित ध्वजा फहरा रही थी। वह रथ यन्त्र और पताकाओं से सुशोभित था। उसके भीतर बहुत से अस्त्र-शस्त्र आदि आवश्‍यक सामान रखे गये थे। उस श्रेष्ठ रथ का सारथि भी सुयोग्य था। दुर्योधन के सेवक वह रथ लेकर आये और कर्ण ने उसके ऊपर आरूढ़ होकर शत्रुओं पर धावा किया। राजन ! आप मुझसे जो कुछ पूछ रहे थे, वह सब मैंने आपको बता दिया। अब पुनः आपके ही अन्याय से होने वाले इस महान जनंसहार का वृतान्त सुनिये। भीमसेन ने अब तक सदा विचित्र युद्ध करने वाले दुमुर्ख आदि आपके इकतीस पुत्रों को मार गिराया है। भारत ! इसी प्रकार सात्यकि और अर्जुन ने भी भीष्म और भगदत आदि सैकड़ों शूरवीरों संहार कर डाला है। राजन ! इस प्रकार आपकी कुमन्त्रणा के फलस्वरूप यह विनाशकार्य सम्पन्न हुआ है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत जयद्रथवध पर्व में कर्ण और सात्यकि का युद्धविषयक एक सौ सैतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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