"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 159 श्लोक 61-82" के अवतरणों में अंतर

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एकोनषष्टयधिकशततम (159) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: एकोनषष्टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 61-82 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर महाधनुर्धर अर्जुन ने कर्ण का पराक्रम देखकर उसके धनुष को मुट्ठी पकड़ने की जगह से शीघ्रतापूर्वक काट दिया।। साथ ही उसके चारों घोड़ों को चार भल्लों द्वारा यमलोक पहुँचा दिया। फिर शत्रुसंतापी अर्जुन ने उसके सारथि का सिर धड़ से अलग कर दिया। धनुष कट जाने और घोड़ों तथा सारथि के मारे जाने पर कर्ण को पाण्डुनन्दन अर्जुन ने चार बाणों द्वारा घायल कर दिया।। जिसके घोड़े मारे गये थे, उस रथ से तुरंत ही उतरकर बाणपीड़ित कर्ण शीघ्रतापूर्वक कृपाचार्य के रथ पर चढ़ गया। अर्जुन के बाण-समूहों से पीडि़त और व्याप्त होकर वह काँटों से भरे हुए साही के समान जान पड़ता था। अपने प्राण बचाने के लिये कर्ण कृपाचार्य के रथ पर जा बैठा था। भरतश्रेष्ठ! राधा पुत्र कर्ण को पराजित हुआ देख आपके सैनिक अर्जुन के बाणों से पीडि़त हो दसों दिशाओं में भाग चले। नरेश्वर! उन्हें भागते देख राजा दुर्योधन ने लौटाया और उस समय उनसे यह बात कही-। ‘क्षत्रियशिरोमणि शूरवीरों! ठहरो, तुम्हारे भागने की काई आवश्यकता नहीं है। मैं स्वयं अभी अर्जुन का वध करने के लिये युद्धभूमि में चलता हूँ। मैं पान्चालों और सोमकों सहित कुन्तीकुमारों का वध करूँगा। ‘आज गाण्डीवधारी अर्जुन के साथ युद्ध करते समय कुन्ती के सभी पुत्र प्रलयकाल में काल के समान मेरा पराक्रम देखेंगे। ‘आज समरागंण में सहस्त्रों योद्धा मेरेछोड़े हुए हजारों बाणसमूहों को शलभों की पंक्तियों के समान देखेंगे। ‘जैसे वर्षाकाल में मेघ जल की वर्षा करता है, उसी प्रकार धनुष हाथ में लेकर मेरे द्वारा की हुई बाणमयी वर्षा को आज युद्धस्थल में समस्त सैनिक देखेंगे। ‘आज रणभूमि में झुकी हुई गाँठवाले बाणों द्वारा मैं अर्जुन को जीत लूँगा। शूरवीरों! तुम समरभूमि में डटे रहो और अर्जुन से भय छोड़ दो। ‘जैसे समुद्र तटभूमि तक पहुँचकर शान्त हो जाता है, उसी प्रकार अर्जुन मेरे समीप आकर मेरा पराक्रम नहीं सह सकेंगे’। ऐसा कहकर दुर्धर्ष राजा दुर्योधन ने क्रोध से लाल आँखें करके विशाल सेना के साथ अर्जुन पर आक्रमण किया। महाबाहु दुर्योधन को अर्जुन के सामने जाते देख शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य ने उस समय अश्वत्थामा के पास जाकर यह बात कही-।‘यह अमर्षशील महाबाहु राजा दुर्योधन क्रोध से अपनी सुधबुध खो बैठा है और पतंगों की वृत्तिका आश्रय ले अर्जुन के साथ युद्ध करना चाहता है। ‘यह पुरूषसिंह नरेश अर्जुन ने भिड़कर हमारे देखते-देखते जब तक अपने प्राणों को त्याग न दे, उसके पहले ही तुम हाकर उस कुरूवंशी राजा को रोको। ‘यह कौरववंश का वीर भूपाल आज जब तक अर्जुन के बाणों की पहुँच के भीतर नहीं जाता है, तभी तक इसे रोक दो।। ‘केंचुल से छूटे हुए सर्पों के समान अर्जुन के भयंकर बाणों द्वारा जब तक राजा दुर्योधन भस्म नहीं कर दिया जाता है, तब तक ही उसे युद्ध से रोक दो। ‘मानद! यह मुझे अनुचित सा दिखायी देता है कि हम लोगों के रहते हुए स्वयं राजा दुर्योधन बिना किसी सहायक के अर्जुन के साथ युद्ध के लिये जाये। ‘जैसे सिंह के साथ हाथी युद्ध करे तो उसका जीवित रहना असम्भव हो जाता है, उसी प्रकार किरीटधारी कुन्ती कुमार अर्जुन के साथ युद्ध में प्रवृत्त होने पर कुरूवंशी दुर्योधन के जीवन को मैं दुर्लभ ही मानता हूँ’।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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