"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 178 श्लोक 22-40": अवतरणों में अंतर

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१२:५२, १९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

अष्टसप्तत्यधिकशततम (178) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: अष्टसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 22-40 का हिन्दी अनुवाद

भारत! तत्पश्चात् वे एक दूसरे पर नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करने लगे। लोहे के परिघ, शूल, गदा, मुसल, मुद्रर, पिनाक, खडग, तोमर, प्रास, कम्पन, तीखे नाराच, भल्ल, बाण, चक्र, फरसे, लोहे की गोली, मिन्दिपाल, गोशीर्ष, उलूखल, बड़ी-बड़ी शाखाओं वाले उखाड़े हुए नाना प्रकार के वृक्ष- शमी, पीलु, कदम्ब, चम्पा, इडगुद, बेर, विकसित कोविदार, पलाश, अरिमेद, बड़े-बड़े पाकड़, बरगद और पीपल- इन सबके द्वारा उस महासमर में वे एक दूसरे पर चोट करने लगे। नाना प्रकार की धातुओं से व्याप्त विशाल पर्वतशिखरों द्वारा भी वे परस्पर आघात करते थे। उस पर्वत-शिखरों के टकराने से ऐसा महान् शब्द होता था, मानो वज्र फट पड़े हों। नरेश्वर! घटोत्कच और अलायुध का वह भयंकर युद्ध वैसा ही हो रहा था, जैसे पहले त्रेतायुग में वानरराज बाली और सुग्रीव का युद्ध सुना गया गया है। नाना प्रकार के भयंकर आयुधों और बाणों से युद्ध करके वे दोनों राक्षस तीखी तलवारें लेकर एक दूसरे पर टूट पड़े। उन दोनों महाबली और विशालकाय राक्षसों ने परस्पर आक्रमण करके दोनों हाथों से दोनों के केश पकड़ लिये। नरेश्वर! अत्यन्त वर्षा करने वालें दो मेघों के समान उन विशालकाय राक्षसों के शरीर पसीने से तर हो रहे थे। वे अपने अंगों से पसीनों के साथ-साथ खून भी बहा रहे थे।। तदनन्तर बड़े वेग से झपटकर हिडिम्बाकुमार घटोत्कच ने उस राक्षस को पकड़ लिया और उसे घुमाकर बलपूर्वक पटक दिया। फिर उसके विशाल मस्तक को उसने काट डाला।। इस प्रकार महाबली घटोत्कच ने उसके कुण्डलमण्डित मस्तक को काटकर उस समय बड़ी भयानक गर्जना की।। बकासुर के विशालकाय भ्राता शत्रुदमन अलायुध को मारा गया देख पान्चाल और पाण्डव सिंहनाद करने लगे।। युद्धस्थल में उस राक्षस के मारे जाने पर पाण्डवदल के सैनिकों ने सहस्त्रों नगाड़े और हजारों शंख बजाये। चारों ओर से दीपावलियों द्वारा प्रकाशित होने वाली वह रात्रि उनके लिये विजयदायिनी होकर अत्यन्त शोभा पाने लगी। उस समय दुर्योधन अचेतसा हो रहा था। महाबली घटोत्कच ने अलायुध का वह मस्तक दुर्योधन के सामने फेंक दिया। भारत! अलायुध को मारा गया देख सेनासहित राजा दुर्योधन अत्यन्त उद्विग्न हो उठा। अलायुध ने अपने भारी बैरी को याद करते हुए स्वयं आकर दुर्योधन के सामने यह प्रतिज्ञा की थी कि मैं युद्ध में भीमसेन को मार डालूँगा। इससे राजा दुर्योधन यह मान बैठा था कि अलायुध निश्चय ही भीमसेन को मार डालेगा और यही सोचकर उसने यह भी समझ लिया था कि अभी मेरे भाइयों का जीवन चिरस्थायी है।। परंतु भीमसेन पुत्र घटोत्कच के द्वारा अलायुध को मारा गया देख उसने यह निश्चित रूप से मान लिया कि अब भीमसेन की प्रतिज्ञा पूरी होकर ही रहेगी। ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गतघटोत्‍कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के समय अलायुध का वधविषयक एक सौ अठहत्‍तरवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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