"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 95 श्लोक 21-43": अवतरणों में अंतर

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१३:१६, १९ जुलाई २०१५ का अवतरण

पञ्चनवतितम (95) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: पञ्चनवतितम अध्याय: श्लोक 21-43 का हिन्दी अनुवाद

सेनापति भीष्म का यह वचन सुनकर राजा भगदत्त सिंहनाद करते हुए तुरंत ही शत्रुओं का सामना करने के लिये चल दिए। भारत ! गर्जते हुए मेघ के समान राजा भगदत्त को धावा करते देख भीमसेन, अभिमन्यु, राक्षस घटोत्कच, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, सत्यधृति, क्षत्रदेव, चेदिराज धृष्टकेतु, वसुदान और दशार्णराज- ये सभी पाण्डवपक्षीय महारथी क्रोध में भरकर उनका सामना करने के लिये आये। भगदत्त ने भी सुप्रतीक नामक हाथी पर आरूढ़ होकर उन पर धावा किया। फिर तो पाण्डवों का भगदत्त के साथ घोर एवं भयानक युद्ध होने लगा, जो यमराज के राष्ट्र की वृद्धि करने वाला था। महाराज ! रथियों द्वारा प्रयुक्त हुए भयंकर वेगशाली तेज बाण हाथियों और रथों पर गिरने लगे। जिनके मस्तक से मद की धारा बहती थी, ऐसे बड़े-बड़े गजराज गजारोहियों द्वारा प्रेरित हो एक दूसरे के पास पहुँचकर निर्भीक होकर परस्पर भिड़ जाते थे। उस महायुद्ध में रोषपूर्ण मदान्ध हाथी अपने दाँतों के अग्रभाग से अथवा दाँतरूपी मूसलों से परस्पर भिड़कर एक दूसरे को विदीर्ण करने लगे। चामरभूषित अश्व प्रासधारी सवारों से संचालित हो तुरंत ही एक दूसरे पर टूट पड़ते थे। उस समय पैदल सिपाही पैदलों द्वारा ही शक्ति और तोमरों से घायल हो सैकड़ों और हजारों की संख्या में धराशायी हो रहे थे। राजन ! रथी लोग रथों पर आरूढ़ हो कर्णी, नालीक और सायकों द्वारा समर में वीरों का वध करके सिंहनाद कर रहे थे। जब इस प्रकार रोंगटे खड़े कर देने वाला भयंकर संग्राम चल रहा था, उसी समय महाधनुर्धर भगदत्त ने भीमसेन पर धावा किया। वे जिस हाथी पर आरूढ़ थे, उसके कुम्भस्थल से मद की सात धाराएँ गिर रही थी। वह सब ओर से जल के झरने बहाने वाले पर्वत के समान जान पड़ता था। निष्पाप नरेश ! भगदत्त सुप्रतीक की पीठ पर बैठकर सहस्त्रों बाणों की वर्षा करने लगे, मानो देवराज इन्द्र ऐरावत पर आरूढ़ हो जल की धारा गिरा रहे हो। जैसे वर्षा ऋतु में बादल पर्वत के शिखर पर जल की धारा गिराता है, उसी प्रकार राजा भगदत्त भीमसेन पर बाणों की वर्षा करते हुए उन्हें पीड़ितकरने लगे। तब महाधनुर्धर भीमसेन ने अत्यन्त कुपित हो अपने बाणों की बौछार से हाथी के पैरों की रक्षा करने वाले सैकड़ों योद्धाओं को मार गिराया। उन सबको मारा गया देख प्रतापी भगदत्त ने कुपित हो उस गजराज को भीमसेन के रथ की ओर बढ़ाया। उनके द्वारा प्रेरित होकर वह गजराज धनुष की प्रत्यन्चा से छोड़े हुए बाण की भाँति शत्रुदमन भीमसेन की ओर बड़े वेग से दौड़ा। उस हाथी को आते देख भीमसेन आदि पाण्डव महारथी शीघ्रतापूर्वक उसके चारों और खड़े हो गये। आर्य ! केकयराजकुमार, अभिमन्यु, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, शूरवीर दशार्णराज, क्षत्रदेव, चेदिराज धृष्टकेतु तथा चित्रकेतु- ये सभी महाबली वीर रोषावेष में भरकर अपने उत्तम दिव्यास्त्रों का प्रदर्शन करते हुए उस एकमात्र हाथी को क्रोधपूर्वक चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये। अनेक बाणों से घायल हुआ वह महान गज रक्तरंजित होकर गेरू आदि धातुओं से विचित्र दिखायी देने वाले गिरिराज के समान सुशोभित हुआ। तदनन्तर दशार्ण देश के राजा भी एक पर्वताकार हाथी पर आरूढ़ हो भगदत्त के हाथी की ओर बढ़े।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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