"महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 168 श्लोक 24-37": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) ('==अष्टषष्ट्यधिकशततम (168) अध्याय: अनुशासनपर्व (भीष्मस...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "Category:महाभारत अनुशासनपर्व" to "Category:महाभारत अनुशासन पर्व") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति १०: | पंक्ति १०: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{महाभारत}} | {{सम्पूर्ण महाभारत}} | ||
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत | [[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत अनुशासन पर्व]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
१३:२४, २० जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
अष्टषष्ट्यधिकशततम (168) अध्याय: अनुशासनपर्व (भीष्मस्वर्गारोहण पर्व)
‘महान व्रतधारी भीष्म कुरुकुल वृद्ध पुरुषों के सत्कार करने वाले और अपने पिता के बड़े भक्त थे। हाय! पूर्वकाल में जमदग्रिनन्दन परशुराम भी अपने दिव्य अस्त्रों द्वारा जिस मेरे महापराक्रमी पुत्र को पराजित न कर सके, वह इस समय शिखण्डी के हाथ से मारा गया। यह कितने कष्ट की बात है। ‘राजाओ! अवश्य ही मेरा हृदय पत्थर और लोहे का बना हुआ है, तभी तो अपने प्रिय पुत्र को जीवित न देखकर भी आज यह फट नहीं जाता है। ‘काशीपुरी के स्वयंवर में समस्त भूमण्डल के क्षत्रिय एकत्र हुए थे, किंतु भीष्म ने एकमात्र रथ की ही सहायता से उन सबको जीतकर काशिराज की तीनों कन्याओं का अपहरण किया था। ‘हाय! इस पृथ्वी पर बल में जिसकी समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है, उसी को शिखण्डी के हाथ से मारा गया सुनकर आज मेरी छाती क्यों नहीं फट जाती। ‘जिस महामना वीर ने जमदग्रिनन्दन परशुराम को कुरुक्षेत्र के युद्ध में अनायास ही पीड़ित कर दिया था, वही शिखण्डी के हाथ से मारा गया, यह कितने दु:ख की बात है’। ऐसी बातें कहकर जब महानदी गंगाजी बहुत विलाप करने लगीं, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें आश्वसन देते हुए कहा-‘भद्रे! धैर्य धारण करो। शुभदर्शने! शोक न करो। तुम्हारे पुत्र भीष्म अत्यन्त उत्तम लोक में गये हैं, इसमें संशय नहीं है। ‘शोभने! ये महातेजस्वी वसु थे, वसिष्ठजी के शाप-दोष से इन्हें मनुष्य-योनी में आना पड़ा था। अत: इनके लिये शोक नहीं करना चाहिये। ‘देवी! इन्होंने समरांगण में क्षत्रियर्ध के अनुसार युद्ध किया था। ये अर्जुन के हाथ से मारे गये हैं, शिखण्डी के हाथ से नहीं। ‘शुभानने! तुम्हारे पुत्र कुरुश्रेष्ठ भीष्म जब हाथ में धनुष-बाण लिये रहते, उस समय साक्षात इन्द्र भी उन्हें युद्ध में मार नहीं सकते थे। ये तो अपनी इच्छा से ही शरीर त्यागकर स्वर्गलोक में गये हैं। ‘सरिताओं में श्रेष्ठ देवि! सम्पूर्ण देवता मिलकर भी युद्ध में उन्हें मारने की शक्ति नहीं रखते थे। इसलिये तुम कुरुनन्दन भीष्म के लिये शोक मत करो। ये तुम्हारे पुत्र भीष्म वसुओं के स्वरूप को प्राप्त हुए हैं। अत: इनके लिये चिन्तारहित हो जाओ’। वैशम्पायनजी कहते हैं- महाराज! जब भगवान श्रीकृष्ण और व्यासजी ने इस प्रकार समझाया, तब नदियों में श्रेष्ठ गंगा जी शोक त्यागकर अपने जल में उतर गयीं। नरेश्वर! श्रीकृष्ण आदि सब नरेश गंगाजी का सत्कार करके उनकी आज्ञा ले वहाँ से लौट आये।
« पीछे | आगे » |