"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 130 श्लोक 1-18": अवतरणों में अंतर
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त्रिशदधिकशततम (130) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
- अरूनधती, धर्मराज और चित्रगुप्त धर्मसम्बन्धी रहस्य का वर्णन
भीष्मजी कहतें हैं– राजन! तदनन्तर सभी ॠषियों, पितरों और देवताओं ने तपस्या में बढी़-चढी़ हुई अरून्धती देवी से, जो शील और शक्ति में महात्मा वसिष्ठ के ही समान थी, एकाग्रचित होकर पूछा– ‘भद्रे! हम आपके मुंह से धर्म का रहस्य सुनना चाहते हैं । आपकी दृष्टि में जो गुहमतम धर्म हो, उसे बताने की कृपा करें । अरून्धती बोली- देवगण आप लोगो ने मुझे स्मरण किया, इससे मेरे तपकी वृद्धि हुई है। अब मैं आप ही लोगों की गोंपनीय रहस्यसहित सनातन धर्मों का वर्णन करती हूं, आप लोग वह सब सुनें। जिसका मन शुद्ध हो, उस श्रद्धालू पुरूषो को ही इन धर्मों का उपदेश करना चाहिए । जो श्रद्धा से रहित, अभिमानी, ब्रह्महत्यारे ओर गुरूस्त्रगामी हैं, इन चार प्रकार के मनुष्यों से बात भी नहीं करनी चाहिए । इनकें सामने धर्म के रहस्य को प्रकाशित न करें । जो मनुष्य बारह वर्षों तक प्रतिदिन एक एक कपिला गौका दान करता है, हर महीने में निरन्तर सत्रयोंगचलाता और ज्येष्ठपुष्कर तीर्थ में जाकर एक लाख गोदान करता है, उसके घर्म का फल उस मनुष्य के बराबर नहीं हो सकता, जिसके द्वारा की हुई सेवा से अतिथि संतुष्ट हो जाता है । अब मनुष्यों के लिये सुखदायक तथा महान् फल देने वाले दूसरे धर्मका रहस्य सहित वर्णन सुनो। श्रद्धापूर्वक इसका पालन करना चाहिये । सबेरे उठकर कुश और जल हाथ में ले गौओं के बीच में जाय। वहां गौओं के सींग पर जल छिड़के और सींग से गिरे हुए जल को अपनेमस्तक पर धारण करे । साथ ही उस दिन निराहार रहे। ऐसे पुरूषो को जो धर्म का फल मिलता है, उसे सुनो । तीनों लोकों में सिद्ध, चारण और महर्षियों से सेवित जो कोई भी तीर्थ सुने जाते हैं, उन सब में स्नान करनें से जो फल मिलता है वही गायों के सींग के जल से अपने मस्तक को सीचने से प्राप्त होता है । यह सुनकर देवता, पितर और समस्त प्राणी बहुत प्रसन्न हुए। उन सबने उन्हें साधुवाद दिया और अरून्धती देवी की भूरी–भूरी प्रशंसा की । महाभागे तुम धन्य हो, तुमने रहस्यसहित अद्भुत धर्म का वर्णन किया हैं। मैं तुम्हे वरदान देता हूं, तुम्हारी तपस्या सदा बढ़ती रहे । यमराजने कहा- देवताओ और महर्षियों मैंने आप लोंगो के मुख से दिव्य मनोरम कथा सुनी है, अब आप लोग चित्रगुप्त का तथा मेरा भी प्रिय भाषण सुनिये । इस धर्मयुक्त रहस्य को महर्षि भी सुन सकते हैं। अपना हित चाहने वाले श्रद्धालु मनुष्य को भी इसे श्रवण करना चाहिये । मनुष्य किया हुआ कोई भी पुण्य तथा भोग के बिना नष्ट नहीं होता। पूर्वकाल मे कुछ भी दान किया जाता है, वह सब सूर्यदेव के पास पहुंचता है । जब मनुष्य प्रेतलोक को जाता है, उस समय सूर्यदेव वे सारी वस्तुएं उसे अर्पित कर देते हैं और पुण्यात्मा पुरूष परलोक में उन वस्तुओं का उपभोग करता है । अब मैं चित्रगुप्त के मत के अनुसार कुछ कल्याण्कारी धर्म का वर्णन करता हूं। मनुष्य को जलदान और दीप दानसदा ही करने चाहिए।
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