"महाभारत आदि पर्व अध्याय 52 श्लोक 1-10" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के ५ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
== द्विपंचाशत्तमो अध्‍याय: आदिपर्व (आस्तीकपर्व)==
+
==द्विपञ्चाशत्तम (52) अध्‍याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)==
 +
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: द्विपञ्चाशत्तम अध्‍याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदिपर्व: द्विपंचाशत्तमो अध्‍याय: श्लोक 1- 10 का हिन्दी अनुवाद</div>
+
उग्रश्रवाजी कहते हैं—शौनक ! तदनन्तर सर्पयज्ञ की विधि से कार्य प्रारम्भ हुआ। सब याजक विधिपूर्वक अपने-अपने कर्म में संलग्न हो गये। सबकी आँखें धूएँ से लाल हो रही थीं। वे सभी ऋत्विज काले वस्त्र पहनकर मन्त्रोच्चारण पूर्वक प्रज्वलित अग्नि में होम करने लगे। वे समस्त सर्पो के हृदय में कँपकँपी पैदा करते हुए उनके नाम ले लेकर उन सबका वहाँ आग के मुख में होम करने लगे। तत्पश्चात सर्पगण तड़फड़ाते और दीन स्वर में एक-दूसरे को पुकारते हुए प्रज्वलित अग्नि में टपाटप गिरने लगे। वे उछलते, लम्बी साँसें लेते, पूँछ और फनों से एक-दूसरे को लपेटते हुए धधकती आग के भीतर अधिकाधिक संख्या में गिरने लगे। सफेद, काले, नीले, बूढ़े और बच्चे सभी प्रकार के सर्प विविध प्रकार से चीत्कार करते हुए जलती आग में विवश होकर गिर रहे थे। कोई एक कोस लम्बे थे, तो कोई चार कोस और किन्हीं-किन्हीं की लम्बाई तो केवल गाय के कान के बराबर थी। अग्निहोत्रियों में श्रेष्ठ शौनक ! वे छोटे-बड़े सभी सर्प बड़े वेग से आग की ज्वाला में निरन्तर आहुति बन रहे थे। इस प्रकार लाखों, करोड़ों तथा अरबों सर्प वहाँ विवश होकर नष्ट हो गये। कुछ सर्पों की आकृति घोड़ों के समान थी और कुछ की हाथी की सूँड के सदृश्य। कितने ही विशालकाय महाबली नाग मतवाले गजराजों को मात कर रहे थे। भयंकर विष वाले छोटे-बड़े अनेक रंग के बहुसंख्यक सर्प, जो देखने में भयानक, परिघ के समान मोटे, अकारण ही डँस लेने वाले और अत्यन्त शक्तिशाली थे, अपनी माता के शाप से पीड़ित होकर स्वयं ही आग में पड़ रहे थे।
  
उग्रश्रवाजी कहते हैं—शौनक ! तदनन्तर सर्पयज्ञ की विधि से कार्य प्रारम्भ हुआ। सब याजक विधिपूर्वक अपने-अपने कर्म में संलग्न हो गये। सब की आँखें धूएँ से लाल हो रही थी। वे सभी ऋत्विज काले वस्त्र पहनकर मन्त्रोच्चारण पूर्वक प्रज्वलित अग्नि में होम करने लगे। वे समस्त सर्पो के हृदय मे कँपकँपी पैदा करते हुए उनके नाम ले लेकर उन सबका वहाँ आग के मुख में होम करने लगे। तत्पश्चात् सर्पगण तड़फड़ाते और दीन स्वर में एक-दूसरे को पुकारते हुए प्रज्वलित अग्नि में टपाटप गिरने लगे। वे उछलते’लम्बी साँसें लेते, पूँछ और फनों से एक-दूसरे को लपेटते हुए धधकती आग के भीतर अधिकाधिक संख्या में गिरने लगे। सफेद, काले, नीले, बूढ़े और बच्चे सभी प्रकार के सर्प विविध प्रकार से चीत्कार करते हुए जलती आग में विवश होकर गिर रहे थे। कोई एक कोस लम्बे थे, तो कोई चार कोस और किन्हीं-किन्हीं की लम्बाई तो केवल गाय के कान के बराबर थी। अग्नि होत्रियों में श्रेष्ठ शौनक ! वे छोटे-बड़े सभी सर्प बड़े वेग से आग की ज्वाला में निरन्तर आहुति बन रहे थे। इस प्रकार लाखों, करोड़ो तथा अरबों सर्प वहाँ विवश होकर नष्ट हो गये। कुछ सर्पो की आकृति घोड़ों के समान थी और कुछ की हाथी की सूँड के सदृश। कितने ही विशालकाय महाबली नाग मतवाले गजराजों को मात कर रहे थे। भयंकर विष वाले छोटे-बड़े अनेक रंग के बहुसंख्यक सर्प, जो देखने में भयानक, परिघ के समान मोटे, अकारण ही डँस लेने वाले और अत्यन्त शक्तिशाली थे, अपनी माता के शाप से पीडि़त होकर स्वयं ही आग में पड़ रहे थे।
+
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 51 श्लोक 1-17|अगला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 53 श्लोक 1-26}}
 
 
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत आदिपर्व अध्याय 51 श्लोक 1- 17|अगला=महाभारत आदिपर्व अध्याय 53 श्लोक 1- 26}}
 
  
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{महाभारत}}
+
{{सम्पूर्ण महाभारत}}
  
 
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत अादिपर्व]]
 
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत अादिपर्व]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

०६:२४, २४ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

द्विपञ्चाशत्तम (52) अध्‍याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: द्विपञ्चाशत्तम अध्‍याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद

उग्रश्रवाजी कहते हैं—शौनक ! तदनन्तर सर्पयज्ञ की विधि से कार्य प्रारम्भ हुआ। सब याजक विधिपूर्वक अपने-अपने कर्म में संलग्न हो गये। सबकी आँखें धूएँ से लाल हो रही थीं। वे सभी ऋत्विज काले वस्त्र पहनकर मन्त्रोच्चारण पूर्वक प्रज्वलित अग्नि में होम करने लगे। वे समस्त सर्पो के हृदय में कँपकँपी पैदा करते हुए उनके नाम ले लेकर उन सबका वहाँ आग के मुख में होम करने लगे। तत्पश्चात सर्पगण तड़फड़ाते और दीन स्वर में एक-दूसरे को पुकारते हुए प्रज्वलित अग्नि में टपाटप गिरने लगे। वे उछलते, लम्बी साँसें लेते, पूँछ और फनों से एक-दूसरे को लपेटते हुए धधकती आग के भीतर अधिकाधिक संख्या में गिरने लगे। सफेद, काले, नीले, बूढ़े और बच्चे सभी प्रकार के सर्प विविध प्रकार से चीत्कार करते हुए जलती आग में विवश होकर गिर रहे थे। कोई एक कोस लम्बे थे, तो कोई चार कोस और किन्हीं-किन्हीं की लम्बाई तो केवल गाय के कान के बराबर थी। अग्निहोत्रियों में श्रेष्ठ शौनक ! वे छोटे-बड़े सभी सर्प बड़े वेग से आग की ज्वाला में निरन्तर आहुति बन रहे थे। इस प्रकार लाखों, करोड़ों तथा अरबों सर्प वहाँ विवश होकर नष्ट हो गये। कुछ सर्पों की आकृति घोड़ों के समान थी और कुछ की हाथी की सूँड के सदृश्य। कितने ही विशालकाय महाबली नाग मतवाले गजराजों को मात कर रहे थे। भयंकर विष वाले छोटे-बड़े अनेक रंग के बहुसंख्यक सर्प, जो देखने में भयानक, परिघ के समान मोटे, अकारण ही डँस लेने वाले और अत्यन्त शक्तिशाली थे, अपनी माता के शाप से पीड़ित होकर स्वयं ही आग में पड़ रहे थे।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।