"सगर": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो (श्रेणी:गंगा; Adding category Category:गंगा नदी (को हटा दिया गया हैं।))
No edit summary
 
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के ३ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
सगर अयोध्या के एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा जो बड़े धर्मात्मा तथा प्रजारंजक थे। इनका विवाह विदंर्भ राजकन्या केशिनी से हुआ था। इनकी दूसरी स्त्री का सुमति था। इन स्त्रियों सहित सगर ने हिमालय पर कठोर तपस्या की। इससे संतुष्ट होकर महर्षि भृगु ने इन्हें वर दिया की तुम्हारी पहली स्त्री से तुम्हारा वंश चलानेवाला पुत्र होगा। और दूसरी स्त्री से ६० हजार पुत्र होंगे। सगर की पहली स्त्री से असमंजस नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो बड़ा उद्धत था। उसे सगर ने अपने राज्य से निकाल दिया। इसके पुत्र का नाम अंशुमान था। सगर की दूसरी स्त्री से ६० हजार पुत्र हुए। एक बार सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करना चाहा। अश्वमेघ का घोड़ा इंद्र ने चुरा लिया और उसे पाताल में जा छिपाया। सगर के पुत्र उसे ढूँढ़ते ढँूढ़ते पाताल पहुँचे। वहाँ महर्षि कपिल के समीप अश्व को बँधा पाकर उन्होंने उनका अपमान किया। मुनि ने क्रुद्ध होकर उन्हें शाप देकर भस्म कर डाला। सगर ने अपने पुत्रों के न आने पर अंशुमान को उन्हें ढूँढ़ने के लिए भेजा। अंशुमान ने पाताल में पहुँचकर मुनि को प्रसन्न किया और वहाँ से घोड़ा लेकर अयोध्या पहुँचा। अश्वमेध यज्ञ समाप्त करके सगर ने तीन सहस्र वर्ष राज्य किया। राजा भगीरथ उन्हीं के वंश के थे जो गंगा को पृथिवी पर लाए थे। इसी कारण गंगा का एक नाम भागीरथी है।
{{भारतकोश पर बने लेख}}
सगर अयोध्या के एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा जो बड़े धर्मात्मा तथा प्रजारंजक थे। इनका विवाह विदंर्भ राजकन्या केशिनी से हुआ था। इनकी दूसरी स्त्री का सुमति था। इन स्त्रियों सहित सगर ने हिमालय पर कठोर तपस्या की। इससे संतुष्ट होकर महर्षि भृगु ने इन्हें वर दिया की तुम्हारी पहली स्त्री से तुम्हारा वंश चलानेवाला पुत्र होगा। और दूसरी स्त्री से 60 हजार पुत्र होंगे। सगर की पहली स्त्री से असमंजस नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो बड़ा उद्धत था। उसे सगर ने अपने राज्य से निकाल दिया। इसके पुत्र का नाम अंशुमान था। सगर की दूसरी स्त्री से 60 हजार पुत्र हुए। एक बार सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करना चाहा। अश्वमेघ का घोड़ा इंद्र ने चुरा लिया और उसे पाताल में जा छिपाया। सगर के पुत्र उसे ढूँढ़ते ढँूढ़ते पाताल पहुँचे। वहाँ महर्षि कपिल के समीप अश्व को बँधा पाकर उन्होंने उनका अपमान किया। मुनि ने क्रुद्ध होकर उन्हें शाप देकर भस्म कर डाला। सगर ने अपने पुत्रों के न आने पर अंशुमान को उन्हें ढूँढ़ने के लिए भेजा। अंशुमान ने पाताल में पहुँचकर मुनि को प्रसन्न किया और वहाँ से घोड़ा लेकर अयोध्या पहुँचा। अश्वमेध यज्ञ समाप्त करके सगर ने तीन सहस्र वर्ष राज्य किया। राजा भगीरथ उन्हीं के वंश के थे जो गंगा को पृथिवी पर लाए थे। इसी कारण गंगा का एक नाम भागीरथी है।


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
पंक्ति ७: पंक्ति ८:
__INDEX__
__INDEX__
[[Category:पौराणिक_चरित्र]][[Category:महाभारत]][[Category:हिन्दी_विश्वकोश]]
[[Category:पौराणिक_चरित्र]][[Category:महाभारत]][[Category:हिन्दी_विश्वकोश]]
[[Category:गंगा नदी]]
[[Category:गंगा]]

११:३६, २४ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

सगर अयोध्या के एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा जो बड़े धर्मात्मा तथा प्रजारंजक थे। इनका विवाह विदंर्भ राजकन्या केशिनी से हुआ था। इनकी दूसरी स्त्री का सुमति था। इन स्त्रियों सहित सगर ने हिमालय पर कठोर तपस्या की। इससे संतुष्ट होकर महर्षि भृगु ने इन्हें वर दिया की तुम्हारी पहली स्त्री से तुम्हारा वंश चलानेवाला पुत्र होगा। और दूसरी स्त्री से 60 हजार पुत्र होंगे। सगर की पहली स्त्री से असमंजस नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो बड़ा उद्धत था। उसे सगर ने अपने राज्य से निकाल दिया। इसके पुत्र का नाम अंशुमान था। सगर की दूसरी स्त्री से 60 हजार पुत्र हुए। एक बार सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करना चाहा। अश्वमेघ का घोड़ा इंद्र ने चुरा लिया और उसे पाताल में जा छिपाया। सगर के पुत्र उसे ढूँढ़ते ढँूढ़ते पाताल पहुँचे। वहाँ महर्षि कपिल के समीप अश्व को बँधा पाकर उन्होंने उनका अपमान किया। मुनि ने क्रुद्ध होकर उन्हें शाप देकर भस्म कर डाला। सगर ने अपने पुत्रों के न आने पर अंशुमान को उन्हें ढूँढ़ने के लिए भेजा। अंशुमान ने पाताल में पहुँचकर मुनि को प्रसन्न किया और वहाँ से घोड़ा लेकर अयोध्या पहुँचा। अश्वमेध यज्ञ समाप्त करके सगर ने तीन सहस्र वर्ष राज्य किया। राजा भगीरथ उन्हीं के वंश के थे जो गंगा को पृथिवी पर लाए थे। इसी कारण गंगा का एक नाम भागीरथी है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ