"महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 50 श्लोक 52-56": अवतरणों में अंतर

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१५:३३, २४ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

पंचाशत्तम (50) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 52-56 का हिन्दी अनुवाद


षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम्, निषाद, धैवत, इष्ट (प्रिय), अनिष्ट (अप्रिय) और सहंत (श्लिष्ट)- इस प्रकार विभाग वाले आकाशजनित शब्द के दस भेद हैं। आकाश सब भूतों में श्रेष्ठ हैं। उससे श्रेष्ठ अहंकार, अहंकार से श्रेष्ठ बुद्धि, उस बुद्धि से श्रेष्ठ आत्मा, उससे श्रेष्ठ अव्यक्त प्रकृति और प्रकृति से श्रेष्ठ पुरुष है। जो मनुष्य सम्पूर्ण भूतों की श्रेष्ठता और न्यूनता का ज्ञाता, समस्त कर्मों की विधि का जानकार और सब प्राणियों को आत्मभाव से देखने वाला है, वह अविनाशी परमात्मा को प्राप्त करता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में गुर-शिष्यसंवादविषयक पचासवाँ अध्याय पूरा हुआ।






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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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