"महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 61 श्लोक 37-42" के अवतरणों में अंतर
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१५:३६, २४ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
एकषष्टितम (61) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
‘यदुकुलभूषण पिताजी! इस प्रकार सुभद्रा को समझा-बुझाकर दुस्तर शोक को त्यागकर कुन्ती ने उसके श्राद की तैयारी करायी। ‘धर्मज्ञ राजा युधिष्ठर और भीमसेन को आदेश देकर तथा यम के समान पराक्रमी नकुल-सहदेव को भी आज्ञा देकर कुन्तीदेवी ने अभिमन्यु के उद्देश्य से अनेक प्रकार के दान दिलाये। ‘यदुकुलभूषण! तत्पश्चात् ब्राह्मणों को बहुत सी गौएँ दान देकर कुन्ती ने विराटकुमारी उत्तरा से कहा- ‘अनिन्द्य गुणों वाली विराटकुमारी! अब तुम्हें यहाँ पति के लिये संताप नहीं करना चाहिए। सुन्दरि! तुम्हारे गर्भ में जो अभिमन्यु का बालक है, उसकी रक्षा करो। ‘महाद्युते! ऐसा कहकर कुन्तीदेवी चुप हो गयीं। उन्हीं की आज्ञा से मैं इस सुभद्रा देवी को साथ लाया हूँ। ‘मानद! इस प्रकार आप का दौहित्र अभिमन्यु मृत्यु को प्राप्त हुआ है। दुर्धर्ष वीर! आप संताप छोड़ दें और मन को शोकमग्न न करें।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में वसुदेव को सांत्वनाविषयक इकसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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