"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 90 श्लोक 42-58": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: भीष्म पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: भीष्म पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 42-58 का हिन्दी अनुवाद </div> | ||
इरावान भी बल के अभिमान में उन्मत्तहो अपने हाथों की फुर्ती दिखाता हुआ खड़ग के द्वारा उन समस्त सुबल पुत्रों का सामना करने लगा। वह अकेला बड़ी फुर्ती से पैतरे बदल रहा था और वे सभी सुबल पुत्र शीघ्रगामी घोड़ाद्वारा विचर रहे थे, तो भी वे अपने में उसकी अपेक्षा कोई विशेषता न ला सके। तदनन्तर इरावान को भूमि पर स्थित देख वे सभी सुबल पुत्र युद्ध में उसे पुनः भलीभाँति घेरकर बन्दी बनाने की तैयारी करने लगे। तब शत्रुसूदन इरावान ने निकट आने पर कभी दाहिने और कभी बायें हाथ से तलवार घुमाकर उसके द्वारा शत्रुओं के अंगोंको छिन्न-भिन्न कर दिया। उन सबके आयुधों और भूषणभूषित भुजाओं को भी उसने काट डाला। इस प्रकार अंग-अंग कट जाने से वे प्राणशून्य हो मरकर धरती पर गिर पड़े। महाराज ! वृषभ बहुत घायल हो गया था तो भी वीरों का उच्छेद करने वाले उस महाभयंकर संग्राम से उसने अपने आपको किसी प्रकार मुक्त कर लिया। उन सबको मार गिराया देख दुर्योधन भयभीत हो उठा और वह अत्यन्त क्रोध में भरकर दीखने वाले राक्षस ऋष्यश्रृंगपुत्र (अलम्बुष) के पास दौड़ा गया। वह राक्षस शत्रुओं का दमन करने में समर्थ, मायावी और महान धनुर्धर था। पूर्वकाल में किये गये वकासुर वध के कारण वह भीमसेन का वैरी बन बैठा था। उसके पास जाकर दुर्योधन ने कहा- वीर ! देखो, अर्जुन का यह बलवान पुत्र बड़ा मायावी है। इसने मेरा अप्रिय करने के लिए मेरी सेना का संहार कर डाला है। तात ! तुम इच्छानुसार चलने वाले तथा मायामय अस्त्रों के प्रयोग में कुशल हो। कुन्तीकुमार भीम ने तुम्हारे साथ वैर भी किया है। अतः तुम युद्ध में इस इरावान् को अवश्य मार डालों। ‘बहुत अच्छा’ ऐसा कहकर वह भयानक दिखायी देने वाला राक्षस सिंहनाद करके जहाँ नवयुवक अर्जुन कुमार इरावान था, उस स्थान पर गया। उसके साथ निर्मल प्राप्त नामक अस्त्र से युद्ध करने वाले संग्राम कुशल तथा प्रहार करने में समर्थ वीरों से युक्त बहुत सी सेनाएँ थीं। उसके सभी सैनिक सवारियों पर बैठ हुए थे। उन सबसे घिरा हुआ वह समरभूमि में महाबली इरावान् को मार डालने की इच्छा से युद्ध स्थल में गया। महाराज ! मरने से बचे हुए दो हजार उत्तम घोड़े उसके साथ थे। शत्रुओं का नाश करने वाला पराक्रमी इरावान् भी क्रोध में भरा हुआ था। उसने उसे मारने की इच्छा रखने वाले उस राक्षस का बड़ी उतावली के साथ निवारण किया। इरावान् को आते देख उस महाबली राक्षस ने शीघ्रतापूर्वक माया का प्रयोग आरम्भ किया। उसने मायामय दो हजार घोडे़ उत्पन्न किये, जिनपर शूल औश्र पटिटश धारण करने वाले भयंकर राक्षस सवार थे। वे दो हजार प्रहार कुशल योद्धा क्रोध में भरे हुए आकर इरावान के सैनिकों के साथ युद्ध करने लगे। इस प्रकार दोनों ओर के योद्धाओं ने परस्पर प्रहार करके शीघ्र ही एक दूसरे को यमलोक पहुँचा दिया। | इरावान भी बल के अभिमान में उन्मत्तहो अपने हाथों की फुर्ती दिखाता हुआ खड़ग के द्वारा उन समस्त सुबल पुत्रों का सामना करने लगा। वह अकेला बड़ी फुर्ती से पैतरे बदल रहा था और वे सभी सुबल पुत्र शीघ्रगामी घोड़ाद्वारा विचर रहे थे, तो भी वे अपने में उसकी अपेक्षा कोई विशेषता न ला सके। तदनन्तर इरावान को भूमि पर स्थित देख वे सभी सुबल पुत्र युद्ध में उसे पुनः भलीभाँति घेरकर बन्दी बनाने की तैयारी करने लगे। तब शत्रुसूदन इरावान ने निकट आने पर कभी दाहिने और कभी बायें हाथ से तलवार घुमाकर उसके द्वारा शत्रुओं के अंगोंको छिन्न-भिन्न कर दिया। उन सबके आयुधों और भूषणभूषित भुजाओं को भी उसने काट डाला। इस प्रकार अंग-अंग कट जाने से वे प्राणशून्य हो मरकर धरती पर गिर पड़े। महाराज ! वृषभ बहुत घायल हो गया था तो भी वीरों का उच्छेद करने वाले उस महाभयंकर संग्राम से उसने अपने आपको किसी प्रकार मुक्त कर लिया। उन सबको मार गिराया देख दुर्योधन भयभीत हो उठा और वह अत्यन्त क्रोध में भरकर दीखने वाले राक्षस ऋष्यश्रृंगपुत्र (अलम्बुष) के पास दौड़ा गया। वह राक्षस शत्रुओं का दमन करने में समर्थ, मायावी और महान धनुर्धर था। पूर्वकाल में किये गये वकासुर वध के कारण वह भीमसेन का वैरी बन बैठा था। उसके पास जाकर दुर्योधन ने कहा- वीर ! देखो, अर्जुन का यह बलवान पुत्र बड़ा मायावी है। इसने मेरा अप्रिय करने के लिए मेरी सेना का संहार कर डाला है। तात ! तुम इच्छानुसार चलने वाले तथा मायामय अस्त्रों के प्रयोग में कुशल हो। कुन्तीकुमार भीम ने तुम्हारे साथ वैर भी किया है। अतः तुम युद्ध में इस इरावान् को अवश्य मार डालों। ‘बहुत अच्छा’ ऐसा कहकर वह भयानक दिखायी देने वाला राक्षस सिंहनाद करके जहाँ नवयुवक अर्जुन कुमार इरावान था, उस स्थान पर गया। उसके साथ निर्मल प्राप्त नामक अस्त्र से युद्ध करने वाले संग्राम कुशल तथा प्रहार करने में समर्थ वीरों से युक्त बहुत सी सेनाएँ थीं। उसके सभी सैनिक सवारियों पर बैठ हुए थे। उन सबसे घिरा हुआ वह समरभूमि में महाबली इरावान् को मार डालने की इच्छा से युद्ध स्थल में गया। महाराज ! मरने से बचे हुए दो हजार उत्तम घोड़े उसके साथ थे। शत्रुओं का नाश करने वाला पराक्रमी इरावान् भी क्रोध में भरा हुआ था। उसने उसे मारने की इच्छा रखने वाले उस राक्षस का बड़ी उतावली के साथ निवारण किया। इरावान् को आते देख उस महाबली राक्षस ने शीघ्रतापूर्वक माया का प्रयोग आरम्भ किया। उसने मायामय दो हजार घोडे़ उत्पन्न किये, जिनपर शूल औश्र पटिटश धारण करने वाले भयंकर राक्षस सवार थे। वे दो हजार प्रहार कुशल योद्धा क्रोध में भरे हुए आकर इरावान के सैनिकों के साथ युद्ध करने लगे। इस प्रकार दोनों ओर के योद्धाओं ने परस्पर प्रहार करके शीघ्र ही एक दूसरे को यमलोक पहुँचा दिया। | ||
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१२:३२, २६ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
नवतितम (90) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
इरावान भी बल के अभिमान में उन्मत्तहो अपने हाथों की फुर्ती दिखाता हुआ खड़ग के द्वारा उन समस्त सुबल पुत्रों का सामना करने लगा। वह अकेला बड़ी फुर्ती से पैतरे बदल रहा था और वे सभी सुबल पुत्र शीघ्रगामी घोड़ाद्वारा विचर रहे थे, तो भी वे अपने में उसकी अपेक्षा कोई विशेषता न ला सके। तदनन्तर इरावान को भूमि पर स्थित देख वे सभी सुबल पुत्र युद्ध में उसे पुनः भलीभाँति घेरकर बन्दी बनाने की तैयारी करने लगे। तब शत्रुसूदन इरावान ने निकट आने पर कभी दाहिने और कभी बायें हाथ से तलवार घुमाकर उसके द्वारा शत्रुओं के अंगोंको छिन्न-भिन्न कर दिया। उन सबके आयुधों और भूषणभूषित भुजाओं को भी उसने काट डाला। इस प्रकार अंग-अंग कट जाने से वे प्राणशून्य हो मरकर धरती पर गिर पड़े। महाराज ! वृषभ बहुत घायल हो गया था तो भी वीरों का उच्छेद करने वाले उस महाभयंकर संग्राम से उसने अपने आपको किसी प्रकार मुक्त कर लिया। उन सबको मार गिराया देख दुर्योधन भयभीत हो उठा और वह अत्यन्त क्रोध में भरकर दीखने वाले राक्षस ऋष्यश्रृंगपुत्र (अलम्बुष) के पास दौड़ा गया। वह राक्षस शत्रुओं का दमन करने में समर्थ, मायावी और महान धनुर्धर था। पूर्वकाल में किये गये वकासुर वध के कारण वह भीमसेन का वैरी बन बैठा था। उसके पास जाकर दुर्योधन ने कहा- वीर ! देखो, अर्जुन का यह बलवान पुत्र बड़ा मायावी है। इसने मेरा अप्रिय करने के लिए मेरी सेना का संहार कर डाला है। तात ! तुम इच्छानुसार चलने वाले तथा मायामय अस्त्रों के प्रयोग में कुशल हो। कुन्तीकुमार भीम ने तुम्हारे साथ वैर भी किया है। अतः तुम युद्ध में इस इरावान् को अवश्य मार डालों। ‘बहुत अच्छा’ ऐसा कहकर वह भयानक दिखायी देने वाला राक्षस सिंहनाद करके जहाँ नवयुवक अर्जुन कुमार इरावान था, उस स्थान पर गया। उसके साथ निर्मल प्राप्त नामक अस्त्र से युद्ध करने वाले संग्राम कुशल तथा प्रहार करने में समर्थ वीरों से युक्त बहुत सी सेनाएँ थीं। उसके सभी सैनिक सवारियों पर बैठ हुए थे। उन सबसे घिरा हुआ वह समरभूमि में महाबली इरावान् को मार डालने की इच्छा से युद्ध स्थल में गया। महाराज ! मरने से बचे हुए दो हजार उत्तम घोड़े उसके साथ थे। शत्रुओं का नाश करने वाला पराक्रमी इरावान् भी क्रोध में भरा हुआ था। उसने उसे मारने की इच्छा रखने वाले उस राक्षस का बड़ी उतावली के साथ निवारण किया। इरावान् को आते देख उस महाबली राक्षस ने शीघ्रतापूर्वक माया का प्रयोग आरम्भ किया। उसने मायामय दो हजार घोडे़ उत्पन्न किये, जिनपर शूल औश्र पटिटश धारण करने वाले भयंकर राक्षस सवार थे। वे दो हजार प्रहार कुशल योद्धा क्रोध में भरे हुए आकर इरावान के सैनिकों के साथ युद्ध करने लगे। इस प्रकार दोनों ओर के योद्धाओं ने परस्पर प्रहार करके शीघ्र ही एक दूसरे को यमलोक पहुँचा दिया।
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