"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 145 भाग-53": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) ('==पन्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्याय: अनुशासन पर्व (दा...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
== | ==पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)== | ||
<h4 style="text-align:center;">प्राणियों की शुभ और अशुभ गति का निश्च्य कराने वाले लक्षणों का वर्णन,मृत्यु के दो भेद और यत्रसाध्य मृत्यु के चार भेंदों का कथन,कर्तव्य-पालनपूर्वक शरीर त्याग का महान फल और काम,क्रोध आदि द्वारा देहत्याग करने से नरक की प्राप्ति</h4> | <h4 style="text-align:center;">प्राणियों की शुभ और अशुभ गति का निश्च्य कराने वाले लक्षणों का वर्णन,मृत्यु के दो भेद और यत्रसाध्य मृत्यु के चार भेंदों का कथन,कर्तव्य-पालनपूर्वक शरीर त्याग का महान फल और काम,क्रोध आदि द्वारा देहत्याग करने से नरक की प्राप्ति</h4> | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासन पर्व: | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-53 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
उमा ने पूछा- प्रभो! मनुष्यों के जीते-जी उनकी गति का ज्ञान होता है या नहीं? शुभगति वाले मनुष्य का जैसा जीवन है, वैसा ही अशुभ गतिवाले का नहीं हो सकता। इस विषय को मैं सुनना चाहती हूँ, आप मुझे बताइये। श्रीमहेश्वर ने कहा- देवि! प्राणियों का जीवन जैसा होता है, वह मैं तुम्हें बताऊँगा। संसार में दो प्रकार के प्राणी होते हैं- एक दैवभाव के आश्रित और दूसरे आसुरभाव के आश्रित। जो मनुष्य मन, वाणी और क्रिया द्वारा सदा सबके प्रतिकूल ही आचरण करते हैं, उनको आसुर समझो। उन्हें नरक में निवास करना पड़ता है। जो हिंसक, चोर, धूर्त, परस्त्रीगामी, नीचकर्म-परायण, शौच और मंगलाचार से रहित, पवित्रता से द्वेष रखने वाले, पापी और लोगों के चरित्र पर कलंक लगाने वाले हैं, ऐसे आचारवाले अर्थात् आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य जीते-जी ही नरक में पड़े हुए हैं। जो लोगों को उद्वेग में डालने वाले पशु, साँप-बिच्छू आदि जन्तु तथा रूखे और कँटीले वृ़क्ष हैं, वे सब पहले आसुर स्वभाव के मनुष्य ही थे, ऐसा समझो। देवि! अब तुम एकाग्रचित्त होकर दूसरे देवपक्षीय अर्थात् दैवी प्रकृतिवाले मनुष्यों का परिचय सुनो। जो मन, वाणी और क्रिया द्वारा सदा सबके अनुकूल होते हैं, ऐसे मनुष्यों को अमर (देवता) समझो। वे स्वर्गगामी होते हैं। जो शौच और सरलता में तत्पर तथा धीर हैं, जो दूसरों के धन का अपहरण नहीं करते हैं और समस्त प्राणियों के प्रति समानभाव रखते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो धार्मिक, शौचाचारसम्पन्न, शुद्ध और मधुरभाषी होकर कभी मन से भी न करने योग्य कार्य करना नहीं चाहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो कार्य दरिद्र होने पर भी किसी याचक के माँगने पर उसे प्रसन्तापूर्वक कुछ न कुछ देते ही हैं, वे मनुष्य स्वर्ग में जाते हैं। जो आस्तिक, मंगलपरायण, सदा बड़े-बूढ़ों की सेवा करने वाले और प्रतिदिन पुण्यकर्म में संलग्न रहने वाले हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो ममता और अहंकार से शून्य, अपने बन्धुजनों पर अनुग्रह रखने वाले और सदा दीनों पर दया करने वाले हैं, वे मनुष्य स्वर्गलाक में जाते हैं। जो दूसरों की दुख-वेदना को अपने दुख के समान ही मानते हैं, गुरूजनों की सेवा में तत्पर रहते हैं, देवताओं और ब्राह्मणों की पूजा करते हैं, कृतज्ञ तथा विद्वान हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं। जो जितेन्द्रिय, क्रोध पर विजय पाने वाले और मान तथा मद को परास्त करने वाले हैं तथा जिनमें लोभ और मात्सर्य का अभाव है, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं, जो यथाशक्ति परोपकार में तत्पर रहते हैं, वे मनुष्य भी स्वर्गलोक में जाते हैं। जो व्रती, दानशील, धर्मशील, सरल और सदा कोमलतापूर्ण बर्ताव करने वाले हैं, वे मनुष्य सदा स्वर्गलोक में जाते हैं। इस लोक के आचार से परलोक में प्राप्त होने वाली गति का अनुमान किया जाता है। जगत् में ऐसा जीवन बिताने वाले मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। लोक में और भी जो शुभ एवं प्रजा पर अनुग्रह करने वाला कर्म है, वह स्वर्ग की प्राप्ति का साधन है। शुभानने! जो प्रजा का हित करने वाले पशु एवं वृक्ष हैं, उन सबको देवपक्षीय जानो।जगत् में सारा चराचरसमुदाय शुभाशुभमय है। प्रिये! इनमें जो शुभ है, उसे दैव और जो अशुभ है, उसे आसुर समझो। | उमा ने पूछा- प्रभो! मनुष्यों के जीते-जी उनकी गति का ज्ञान होता है या नहीं? शुभगति वाले मनुष्य का जैसा जीवन है, वैसा ही अशुभ गतिवाले का नहीं हो सकता। इस विषय को मैं सुनना चाहती हूँ, आप मुझे बताइये। श्रीमहेश्वर ने कहा- देवि! प्राणियों का जीवन जैसा होता है, वह मैं तुम्हें बताऊँगा। संसार में दो प्रकार के प्राणी होते हैं- एक दैवभाव के आश्रित और दूसरे आसुरभाव के आश्रित। जो मनुष्य मन, वाणी और क्रिया द्वारा सदा सबके प्रतिकूल ही आचरण करते हैं, उनको आसुर समझो। उन्हें नरक में निवास करना पड़ता है। जो हिंसक, चोर, धूर्त, परस्त्रीगामी, नीचकर्म-परायण, शौच और मंगलाचार से रहित, पवित्रता से द्वेष रखने वाले, पापी और लोगों के चरित्र पर कलंक लगाने वाले हैं, ऐसे आचारवाले अर्थात् आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य जीते-जी ही नरक में पड़े हुए हैं। जो लोगों को उद्वेग में डालने वाले पशु, साँप-बिच्छू आदि जन्तु तथा रूखे और कँटीले वृ़क्ष हैं, वे सब पहले आसुर स्वभाव के मनुष्य ही थे, ऐसा समझो। देवि! अब तुम एकाग्रचित्त होकर दूसरे देवपक्षीय अर्थात् दैवी प्रकृतिवाले मनुष्यों का परिचय सुनो। जो मन, वाणी और क्रिया द्वारा सदा सबके अनुकूल होते हैं, ऐसे मनुष्यों को अमर (देवता) समझो। वे स्वर्गगामी होते हैं। जो शौच और सरलता में तत्पर तथा धीर हैं, जो दूसरों के धन का अपहरण नहीं करते हैं और समस्त प्राणियों के प्रति समानभाव रखते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो धार्मिक, शौचाचारसम्पन्न, शुद्ध और मधुरभाषी होकर कभी मन से भी न करने योग्य कार्य करना नहीं चाहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो कार्य दरिद्र होने पर भी किसी याचक के माँगने पर उसे प्रसन्तापूर्वक कुछ न कुछ देते ही हैं, वे मनुष्य स्वर्ग में जाते हैं। जो आस्तिक, मंगलपरायण, सदा बड़े-बूढ़ों की सेवा करने वाले और प्रतिदिन पुण्यकर्म में संलग्न रहने वाले हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो ममता और अहंकार से शून्य, अपने बन्धुजनों पर अनुग्रह रखने वाले और सदा दीनों पर दया करने वाले हैं, वे मनुष्य स्वर्गलाक में जाते हैं। जो दूसरों की दुख-वेदना को अपने दुख के समान ही मानते हैं, गुरूजनों की सेवा में तत्पर रहते हैं, देवताओं और ब्राह्मणों की पूजा करते हैं, कृतज्ञ तथा विद्वान हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं। जो जितेन्द्रिय, क्रोध पर विजय पाने वाले और मान तथा मद को परास्त करने वाले हैं तथा जिनमें लोभ और मात्सर्य का अभाव है, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं, जो यथाशक्ति परोपकार में तत्पर रहते हैं, वे मनुष्य भी स्वर्गलोक में जाते हैं। जो व्रती, दानशील, धर्मशील, सरल और सदा कोमलतापूर्ण बर्ताव करने वाले हैं, वे मनुष्य सदा स्वर्गलोक में जाते हैं। इस लोक के आचार से परलोक में प्राप्त होने वाली गति का अनुमान किया जाता है। जगत् में ऐसा जीवन बिताने वाले मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। लोक में और भी जो शुभ एवं प्रजा पर अनुग्रह करने वाला कर्म है, वह स्वर्ग की प्राप्ति का साधन है। शुभानने! जो प्रजा का हित करने वाले पशु एवं वृक्ष हैं, उन सबको देवपक्षीय जानो।जगत् में सारा चराचरसमुदाय शुभाशुभमय है। प्रिये! इनमें जो शुभ है, उसे दैव और जो अशुभ है, उसे आसुर समझो। |
०७:४३, २७ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
प्राणियों की शुभ और अशुभ गति का निश्च्य कराने वाले लक्षणों का वर्णन,मृत्यु के दो भेद और यत्रसाध्य मृत्यु के चार भेंदों का कथन,कर्तव्य-पालनपूर्वक शरीर त्याग का महान फल और काम,क्रोध आदि द्वारा देहत्याग करने से नरक की प्राप्ति
उमा ने पूछा- प्रभो! मनुष्यों के जीते-जी उनकी गति का ज्ञान होता है या नहीं? शुभगति वाले मनुष्य का जैसा जीवन है, वैसा ही अशुभ गतिवाले का नहीं हो सकता। इस विषय को मैं सुनना चाहती हूँ, आप मुझे बताइये। श्रीमहेश्वर ने कहा- देवि! प्राणियों का जीवन जैसा होता है, वह मैं तुम्हें बताऊँगा। संसार में दो प्रकार के प्राणी होते हैं- एक दैवभाव के आश्रित और दूसरे आसुरभाव के आश्रित। जो मनुष्य मन, वाणी और क्रिया द्वारा सदा सबके प्रतिकूल ही आचरण करते हैं, उनको आसुर समझो। उन्हें नरक में निवास करना पड़ता है। जो हिंसक, चोर, धूर्त, परस्त्रीगामी, नीचकर्म-परायण, शौच और मंगलाचार से रहित, पवित्रता से द्वेष रखने वाले, पापी और लोगों के चरित्र पर कलंक लगाने वाले हैं, ऐसे आचारवाले अर्थात् आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य जीते-जी ही नरक में पड़े हुए हैं। जो लोगों को उद्वेग में डालने वाले पशु, साँप-बिच्छू आदि जन्तु तथा रूखे और कँटीले वृ़क्ष हैं, वे सब पहले आसुर स्वभाव के मनुष्य ही थे, ऐसा समझो। देवि! अब तुम एकाग्रचित्त होकर दूसरे देवपक्षीय अर्थात् दैवी प्रकृतिवाले मनुष्यों का परिचय सुनो। जो मन, वाणी और क्रिया द्वारा सदा सबके अनुकूल होते हैं, ऐसे मनुष्यों को अमर (देवता) समझो। वे स्वर्गगामी होते हैं। जो शौच और सरलता में तत्पर तथा धीर हैं, जो दूसरों के धन का अपहरण नहीं करते हैं और समस्त प्राणियों के प्रति समानभाव रखते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो धार्मिक, शौचाचारसम्पन्न, शुद्ध और मधुरभाषी होकर कभी मन से भी न करने योग्य कार्य करना नहीं चाहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो कार्य दरिद्र होने पर भी किसी याचक के माँगने पर उसे प्रसन्तापूर्वक कुछ न कुछ देते ही हैं, वे मनुष्य स्वर्ग में जाते हैं। जो आस्तिक, मंगलपरायण, सदा बड़े-बूढ़ों की सेवा करने वाले और प्रतिदिन पुण्यकर्म में संलग्न रहने वाले हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो ममता और अहंकार से शून्य, अपने बन्धुजनों पर अनुग्रह रखने वाले और सदा दीनों पर दया करने वाले हैं, वे मनुष्य स्वर्गलाक में जाते हैं। जो दूसरों की दुख-वेदना को अपने दुख के समान ही मानते हैं, गुरूजनों की सेवा में तत्पर रहते हैं, देवताओं और ब्राह्मणों की पूजा करते हैं, कृतज्ञ तथा विद्वान हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं। जो जितेन्द्रिय, क्रोध पर विजय पाने वाले और मान तथा मद को परास्त करने वाले हैं तथा जिनमें लोभ और मात्सर्य का अभाव है, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं, जो यथाशक्ति परोपकार में तत्पर रहते हैं, वे मनुष्य भी स्वर्गलोक में जाते हैं। जो व्रती, दानशील, धर्मशील, सरल और सदा कोमलतापूर्ण बर्ताव करने वाले हैं, वे मनुष्य सदा स्वर्गलोक में जाते हैं। इस लोक के आचार से परलोक में प्राप्त होने वाली गति का अनुमान किया जाता है। जगत् में ऐसा जीवन बिताने वाले मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। लोक में और भी जो शुभ एवं प्रजा पर अनुग्रह करने वाला कर्म है, वह स्वर्ग की प्राप्ति का साधन है। शुभानने! जो प्रजा का हित करने वाले पशु एवं वृक्ष हैं, उन सबको देवपक्षीय जानो।जगत् में सारा चराचरसमुदाय शुभाशुभमय है। प्रिये! इनमें जो शुभ है, उसे दैव और जो अशुभ है, उसे आसुर समझो।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख