"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 155 श्लोक 1-20": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: पञ्चपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: पञ्चपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
द्रोणाचार्य द्वारा शिविका वध तथा भीमसेन द्वारा घुस्से और थप्पढ से कलिंगराजकुमार का एवं ध्रुव, जयरात तथा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | द्रोणाचार्य द्वारा शिविका वध तथा भीमसेन द्वारा घुस्से और थप्पढ से कलिंगराजकुमार का एवं ध्रुव, जयरात तथा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | ||
धृतराष्ट्र ने पूछा-संजय ! अमित तेजस्वी दुर्धर्ष वीर आचार्य द्रोण ने जब रोष और अमर्ष में भरकर संजयों की सेना में प्रवेश किया, उस समय तुम लोगों की मनोवृति कैसी हुई ? | धृतराष्ट्र ने पूछा-संजय ! अमित तेजस्वी दुर्धर्ष वीर आचार्य द्रोण ने जब रोष और अमर्ष में भरकर संजयों की सेना में प्रवेश किया, उस समय तुम लोगों की मनोवृति कैसी हुई ? गुरूजनों की आज्ञा का उल्लंघन करनेवाले मेरे पुत्र दुर्योधन से पूर्वोक्त बातें कहकर जब अमेय आत्मबल से सम्पन्न द्रोणाचार्य ने शत्रुसेना में पदार्पण किया, तब कुन्तीकुमार अर्जुन ने क्या किया ? सिंधुराज जयद्रथ तथा वीर भूरिश्रवा के मारे जानेपर अपराजित वीर महातेजस्वी द्रोणाचार्य जब पाण्जालों की सेना में घुसे, उस समय शत्रुओं को संताप देनेवाले उन दुर्धर्ष वीर के प्रवेश कर लेने पर दुर्योधन ने उस अवसर के अनुरूप किस कार्य को मान्यता प्रदान की। उन वरदायक वीर विप्रवर द्रोणाचार्य के पीछे-पीछे कौन गये तथा युद्धपरायण शूरवीर आचार्य के पृष्ठभाग में कौन-कौन-से वीर गये ? रणभूमि में शत्रुओं का संहार करते हुए कौन-कौन-से वीर आचार्य के आगे खडे थे। प्रभो ! मैं तो समझता हूं, द्रोणाचार्य के बाणों से पीडित होकर समस्त पाण्डव शिशिर ऋतु में दुबली-पतली गायों के समान थर-थर कांपने लगे होंगे ।। शत्रुओं का मर्दन करनेवाले महाधनुर्धर पुरूषसिंह द्रोणाचार्य पाण्जालो की सेना में प्रवेश करके कैसे मृत्यु को प्राप्त हुए ? रात्रि के समय जब समस्त योद्धा और महारथी एकत्र होकर परस्पर जूझ रहे थे और पृथक-पृथक सेनाओं का मन्थन हो रहा था, उस समय तुम लोगों में से किन-किन बुद्धिमानों की बुद्धि ठिकाने रह सकी ? तुम प्रत्येक युद्ध में मेरे रथियों को हताहत, पराजित तथा रथहीन हुआ बताते हो। जब पाण्डवों ने उन सबको मथकर अचेत कर दिया और वे घोर अन्धकार में डूब गये, तब मेरे उन सैनिकों ने क्या विचार किया ? संजय ! तुम पाण्डवों को तो हर्ष और उत्साह से युक्त, आगे बढनेवाले और संतुष्ट बताते हो और मेरे सैनिकों को दुखी एवं युद्धसे विमुख बताया करते हो। सूत ! युद्ध से पीछे न हटने वाले इन कुन्तीकुमारों के दल में रात के समय कैसे प्रकाश हुआ और कौरवदल में भी किस प्रकार उजाला सम्भव हुआ ? | ||
संजन ने कहा- राजन् ! जब यह अत्यन्त दारूण रात्रियुद्ध चलने लगा, उस समय सोमकों सहित समस्त पाण्डवों ने द्रोणाचार्य पर धावा किया। तदनन्तर द्रोणाचार्य ने केकयों और धृष्टद्युम्न के समस्त पुत्रों को अपने शीघ्रगामी बाणों द्वारा यमलोक भेज दिया। भरतवंशी नरेश ! जो-जो महारथी उनके सामने आये, उन सबको आचार्य ने पितृलोक में भेज दिया। इस प्रकार शत्रुवीरों का संहार करते हुए महारथी द्रोणाचार्य-का सामना करने के लिये प्रतापी शिवि क्रोधपूर्वक आये। पाण्डवपक्ष के उन महारथी वीर को आते देख आचार्य ने सम्पूर्णतः लोहे के बने हुए दस पैने बाणों से उन्हें घायल कर दिया। तब शिवि ने तीस तीखे सायको से बेधकर बदला चुकाया और मुस्कुराते हुए उन्होंने एक भल्ल से उनके सारथि को मार गिराया। यह देख द्रोणाचार्य ने भी महामना शिवि के घोडों को मारकर सारथि का भी वध कर दिया। फिर उनके शिरस्त्राण-सहित मस्तक को धडसे काट लिया। तत्पश्चात् दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को शीघ्र ही दूसरा सारथि दे दिया। जब उस नये सारथि ने उनके घोडों की बागडोर संभाली, तब उन्होंने पुनः शत्रुओं पर धावा किया। | |||
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०६:४६, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
पञ्चपञ्चाशदधिकशततम (155) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
द्रोणाचार्य द्वारा शिविका वध तथा भीमसेन द्वारा घुस्से और थप्पढ से कलिंगराजकुमार का एवं ध्रुव, जयरात तथा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध
धृतराष्ट्र ने पूछा-संजय ! अमित तेजस्वी दुर्धर्ष वीर आचार्य द्रोण ने जब रोष और अमर्ष में भरकर संजयों की सेना में प्रवेश किया, उस समय तुम लोगों की मनोवृति कैसी हुई ? गुरूजनों की आज्ञा का उल्लंघन करनेवाले मेरे पुत्र दुर्योधन से पूर्वोक्त बातें कहकर जब अमेय आत्मबल से सम्पन्न द्रोणाचार्य ने शत्रुसेना में पदार्पण किया, तब कुन्तीकुमार अर्जुन ने क्या किया ? सिंधुराज जयद्रथ तथा वीर भूरिश्रवा के मारे जानेपर अपराजित वीर महातेजस्वी द्रोणाचार्य जब पाण्जालों की सेना में घुसे, उस समय शत्रुओं को संताप देनेवाले उन दुर्धर्ष वीर के प्रवेश कर लेने पर दुर्योधन ने उस अवसर के अनुरूप किस कार्य को मान्यता प्रदान की। उन वरदायक वीर विप्रवर द्रोणाचार्य के पीछे-पीछे कौन गये तथा युद्धपरायण शूरवीर आचार्य के पृष्ठभाग में कौन-कौन-से वीर गये ? रणभूमि में शत्रुओं का संहार करते हुए कौन-कौन-से वीर आचार्य के आगे खडे थे। प्रभो ! मैं तो समझता हूं, द्रोणाचार्य के बाणों से पीडित होकर समस्त पाण्डव शिशिर ऋतु में दुबली-पतली गायों के समान थर-थर कांपने लगे होंगे ।। शत्रुओं का मर्दन करनेवाले महाधनुर्धर पुरूषसिंह द्रोणाचार्य पाण्जालो की सेना में प्रवेश करके कैसे मृत्यु को प्राप्त हुए ? रात्रि के समय जब समस्त योद्धा और महारथी एकत्र होकर परस्पर जूझ रहे थे और पृथक-पृथक सेनाओं का मन्थन हो रहा था, उस समय तुम लोगों में से किन-किन बुद्धिमानों की बुद्धि ठिकाने रह सकी ? तुम प्रत्येक युद्ध में मेरे रथियों को हताहत, पराजित तथा रथहीन हुआ बताते हो। जब पाण्डवों ने उन सबको मथकर अचेत कर दिया और वे घोर अन्धकार में डूब गये, तब मेरे उन सैनिकों ने क्या विचार किया ? संजय ! तुम पाण्डवों को तो हर्ष और उत्साह से युक्त, आगे बढनेवाले और संतुष्ट बताते हो और मेरे सैनिकों को दुखी एवं युद्धसे विमुख बताया करते हो। सूत ! युद्ध से पीछे न हटने वाले इन कुन्तीकुमारों के दल में रात के समय कैसे प्रकाश हुआ और कौरवदल में भी किस प्रकार उजाला सम्भव हुआ ?
संजन ने कहा- राजन् ! जब यह अत्यन्त दारूण रात्रियुद्ध चलने लगा, उस समय सोमकों सहित समस्त पाण्डवों ने द्रोणाचार्य पर धावा किया। तदनन्तर द्रोणाचार्य ने केकयों और धृष्टद्युम्न के समस्त पुत्रों को अपने शीघ्रगामी बाणों द्वारा यमलोक भेज दिया। भरतवंशी नरेश ! जो-जो महारथी उनके सामने आये, उन सबको आचार्य ने पितृलोक में भेज दिया। इस प्रकार शत्रुवीरों का संहार करते हुए महारथी द्रोणाचार्य-का सामना करने के लिये प्रतापी शिवि क्रोधपूर्वक आये। पाण्डवपक्ष के उन महारथी वीर को आते देख आचार्य ने सम्पूर्णतः लोहे के बने हुए दस पैने बाणों से उन्हें घायल कर दिया। तब शिवि ने तीस तीखे सायको से बेधकर बदला चुकाया और मुस्कुराते हुए उन्होंने एक भल्ल से उनके सारथि को मार गिराया। यह देख द्रोणाचार्य ने भी महामना शिवि के घोडों को मारकर सारथि का भी वध कर दिया। फिर उनके शिरस्त्राण-सहित मस्तक को धडसे काट लिया। तत्पश्चात् दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को शीघ्र ही दूसरा सारथि दे दिया। जब उस नये सारथि ने उनके घोडों की बागडोर संभाली, तब उन्होंने पुनः शत्रुओं पर धावा किया।
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