"महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 55 श्लोक 30-37" के अवतरणों में अंतर

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‘आपने चाण्डाल रूपधारी भगवान इन्द्र को ठुकाराया है, यह आपका महान् अपराध है। अच्छा, आपकी इच्छा पूर्ण करने के लिये मैं पुन: जो कुछ कर सकता हूँ, करूँगा।
 
‘आपने चाण्डाल रूपधारी भगवान इन्द्र को ठुकाराया है, यह आपका महान् अपराध है। अच्छा, आपकी इच्छा पूर्ण करने के लिये मैं पुन: जो कुछ कर सकता हूँ, करूँगा।
 
‘ब्रह्मन! आपकी तीव्र पिपासा को मैं अवश्य सफल करूँगा। जिन दिनों आपको जल पीने की इच्छा होगी, उन्हीं दिनों मरुप्रदेश में जल से भरे हुए मेघ प्रकट होंगे। भृबुनन्दन! वे आपको सरस जल प्रदान करेंगे और इस पृविी पर उत्तंक मेघ के नास से विख्यात होंगे’।
 
‘ब्रह्मन! आपकी तीव्र पिपासा को मैं अवश्य सफल करूँगा। जिन दिनों आपको जल पीने की इच्छा होगी, उन्हीं दिनों मरुप्रदेश में जल से भरे हुए मेघ प्रकट होंगे। भृबुनन्दन! वे आपको सरस जल प्रदान करेंगे और इस पृविी पर उत्तंक मेघ के नास से विख्यात होंगे’।
भारत! भगवान् श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर विप्रवर उत्तंक मुनि बड़े प्रसन्न हुए। इस समय भी मरुभूमि में उत्तंक मेघ प्रकट होकर जल की वर्षा करते हैं।
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भारत! भगवान  श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर विप्रवर उत्तंक मुनि बड़े प्रसन्न हुए। इस समय भी मरुभूमि में उत्तंक मेघ प्रकट होकर जल की वर्षा करते हैं।
  
 
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में उत्तंकोपाख्यान में कृष्णवाक्यविषयक पचपनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
 
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में उत्तंकोपाख्यान में कृष्णवाक्यविषयक पचपनवाँ अध्याय पूरा हुआ।

१२:१०, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

पंचपंचाशत्तम (55) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: पंचपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 30-37 का हिन्दी अनुवाद

‘तब देवराज इन्द्र मुझे प्रसन्न करके बोले- ‘सर्वव्यापी महामते! यदि भृगुनन्दन महात्मा उत्तंक को अमृत अवश्य देना है तो मैं चाण्डाल का रूप धारण करके उन्हें अमृत प्रदान करूँगा। यदि इस प्रकार आज भृगुवंशी उत्तंक अमृत लेना स्वीकार करेंगे तो मैं उन्हें वर देने के लिये अभी जा रहा हूँ और यदि वे अस्वीकार कर देंगे तो मैं किसी तरह उन्हें अमृत नहीं दूँगा’। ‘इस तरह की शर्त करके साक्षात् इन्द्र चाण्डाल के रूप में यहाँ उपस्थित हुए थे और आपको अमृत दे रहे थे, परंतु आपने उन्हें ठुकरा दिया। ‘आपने चाण्डाल रूपधारी भगवान इन्द्र को ठुकाराया है, यह आपका महान् अपराध है। अच्छा, आपकी इच्छा पूर्ण करने के लिये मैं पुन: जो कुछ कर सकता हूँ, करूँगा। ‘ब्रह्मन! आपकी तीव्र पिपासा को मैं अवश्य सफल करूँगा। जिन दिनों आपको जल पीने की इच्छा होगी, उन्हीं दिनों मरुप्रदेश में जल से भरे हुए मेघ प्रकट होंगे। भृबुनन्दन! वे आपको सरस जल प्रदान करेंगे और इस पृविी पर उत्तंक मेघ के नास से विख्यात होंगे’। भारत! भगवान श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर विप्रवर उत्तंक मुनि बड़े प्रसन्न हुए। इस समय भी मरुभूमि में उत्तंक मेघ प्रकट होकर जल की वर्षा करते हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में उत्तंकोपाख्यान में कृष्णवाक्यविषयक पचपनवाँ अध्याय पूरा हुआ।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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