"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 171 श्लोक 44-54": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: एकसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 44-54 का हिन्दी अनुवाद</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: एकसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 44-54 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
भरतश्रेष्ठ! रणभूमि में आपके योद्धाओं को जीतकर प्रसन्नता से भरे हुए | भरतश्रेष्ठ! रणभूमि में आपके योद्धाओं को जीतकर प्रसन्नता से भरे हुए भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन अपना-अपना शंख बजाने लगे। महाराज! उधर धृष्टद्युम्न ने तीन बाणों से द्रोणाचार्य को बींधकर तुरंत ही तीखे बाण से उनके धनुष की प्रत्यन्चा काट डाली। तब क्षत्रियमर्दन शूरवीर द्रोणाचार्य ने उस धनुष को भूमि पर रखकर दूसरा अत्यन्त प्रबल और वेगशाली धनुष हाथ में लिया। राजन्! तत्पश्चात् द्रोण ने युद्धस्थल में धृष्टद्युम्न को सात बाणों से बींधकर उनके सारथि को पाँच बाणों से घायल कर दिया। महारथी धृष्टद्युम्न ने तुरंत ही अपने बाणों द्वारा द्रोणाचार्य को रोककर कौरव सेना का उसी प्रकार विनाश आरम्भ किया, जैसे इन्द्र आसुरी सेना का संहार करते हैं। माननीय नरेश! इस प्रकार जब आपके पुत्र की उस सेना का वध होने लगा, तब वहाँ रक्तराशि के प्रवाह से तरंगित होने वाली एक भयंकर नदी बह चली। राजन्! दोनों सेनाओं के बीच में बहने वाली वह नदी मनुष्यों, घोड़ों और हाथियों को भी बहाये लिये जाती थी, मानो वैतरणी नदी यमराजपुरी की ओर जारही हो। उस सेना को भगाकर प्रतापी धृष्टद्युम्न देवताओं के समूह में तेजस्वी इन्द्र के समान सुशोभित होने लगे। तदनन्तर धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, नकुल, सहदेव, सात्यकि तथा पाण्डुपुत्र भीमसेन ने भी अपने महान् शंख को बजाया।। प्रजानाथ! विजय से उल्लसि होने वाले रणोन्मत्त पाण्डव महारथीआपके पुत्र दुर्योधन, कर्ण, द्रोणाचार्य तथा शूरवीर अश्वत्थामा के देखते-देखते आपकी सेना के सहस्त्रों रथियों को परास्त करके सिंहनाद करने लगे। | ||
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गतघटोत्कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंगमें संकुल युद्ध विषयक एक सौ एकहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ। | इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गतघटोत्कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंगमें संकुल युद्ध विषयक एक सौ एकहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ। |
१२:१४, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
एकसप्तत्यधिकशततम (171) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
भरतश्रेष्ठ! रणभूमि में आपके योद्धाओं को जीतकर प्रसन्नता से भरे हुए भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन अपना-अपना शंख बजाने लगे। महाराज! उधर धृष्टद्युम्न ने तीन बाणों से द्रोणाचार्य को बींधकर तुरंत ही तीखे बाण से उनके धनुष की प्रत्यन्चा काट डाली। तब क्षत्रियमर्दन शूरवीर द्रोणाचार्य ने उस धनुष को भूमि पर रखकर दूसरा अत्यन्त प्रबल और वेगशाली धनुष हाथ में लिया। राजन्! तत्पश्चात् द्रोण ने युद्धस्थल में धृष्टद्युम्न को सात बाणों से बींधकर उनके सारथि को पाँच बाणों से घायल कर दिया। महारथी धृष्टद्युम्न ने तुरंत ही अपने बाणों द्वारा द्रोणाचार्य को रोककर कौरव सेना का उसी प्रकार विनाश आरम्भ किया, जैसे इन्द्र आसुरी सेना का संहार करते हैं। माननीय नरेश! इस प्रकार जब आपके पुत्र की उस सेना का वध होने लगा, तब वहाँ रक्तराशि के प्रवाह से तरंगित होने वाली एक भयंकर नदी बह चली। राजन्! दोनों सेनाओं के बीच में बहने वाली वह नदी मनुष्यों, घोड़ों और हाथियों को भी बहाये लिये जाती थी, मानो वैतरणी नदी यमराजपुरी की ओर जारही हो। उस सेना को भगाकर प्रतापी धृष्टद्युम्न देवताओं के समूह में तेजस्वी इन्द्र के समान सुशोभित होने लगे। तदनन्तर धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, नकुल, सहदेव, सात्यकि तथा पाण्डुपुत्र भीमसेन ने भी अपने महान् शंख को बजाया।। प्रजानाथ! विजय से उल्लसि होने वाले रणोन्मत्त पाण्डव महारथीआपके पुत्र दुर्योधन, कर्ण, द्रोणाचार्य तथा शूरवीर अश्वत्थामा के देखते-देखते आपकी सेना के सहस्त्रों रथियों को परास्त करके सिंहनाद करने लगे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गतघटोत्कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंगमें संकुल युद्ध विषयक एक सौ एकहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।
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