"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 177 श्लोक 41-47": अवतरणों में अंतर
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भयानक शब्द करने वाली उस विशाल गदा को आती देख भयंकर राक्षस अलायुध ने अपनी गदा से उस पर आघात किया और बडे़ जोर से गर्जना की। राक्षसराज अलायुध के उस भयदायक घोर कर्म को देखकर भीमसेन का हृदय हर्ष और उत्साह से भर गया और उन्होंने शीघ्र ही गदा हाथ में ले ली। फिर गदाओं के टकराने की आवाज से भूतल को अत्यन्त कम्पित करते हुए उन दोनों मनुष्य और राक्षसों में वहाँ भयंकर युद्ध होने लगा। गदा से छूटते ही वे दोनों फिर एक दूसरे से गुथ गये और वज्रपात की सी आवाज करने वाले मुक्कों से एक दूसरे को मारने लगे। तत्पश्चात् अमर्ष में भरकर वे दोनों रथ के पहियों, जूओं, धुरों, बैठकों और अन्य उपकरणों से तथा जो भी वस्तु समीप मिल जाती, उसी को लेकर एक दूसरे पर चोट करने लगे। वे मदस्त्रावी मतवाले गजराजों के समान अपने अंगों से रूधिर की धारा बहाते हुए एक दूसरे से भिड़कर बारंबार खींचातानी करने लजगे। पाण्डवों के हित में तत्पर रहने वाले | भयानक शब्द करने वाली उस विशाल गदा को आती देख भयंकर राक्षस अलायुध ने अपनी गदा से उस पर आघात किया और बडे़ जोर से गर्जना की। राक्षसराज अलायुध के उस भयदायक घोर कर्म को देखकर भीमसेन का हृदय हर्ष और उत्साह से भर गया और उन्होंने शीघ्र ही गदा हाथ में ले ली। फिर गदाओं के टकराने की आवाज से भूतल को अत्यन्त कम्पित करते हुए उन दोनों मनुष्य और राक्षसों में वहाँ भयंकर युद्ध होने लगा। गदा से छूटते ही वे दोनों फिर एक दूसरे से गुथ गये और वज्रपात की सी आवाज करने वाले मुक्कों से एक दूसरे को मारने लगे। तत्पश्चात् अमर्ष में भरकर वे दोनों रथ के पहियों, जूओं, धुरों, बैठकों और अन्य उपकरणों से तथा जो भी वस्तु समीप मिल जाती, उसी को लेकर एक दूसरे पर चोट करने लगे। वे मदस्त्रावी मतवाले गजराजों के समान अपने अंगों से रूधिर की धारा बहाते हुए एक दूसरे से भिड़कर बारंबार खींचातानी करने लजगे। पाण्डवों के हित में तत्पर रहने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने जब वह युद्ध देखा, तब भीमसेन की रक्षा के लिये हिडिम्बा कुमार घटोत्कच को भेजा। | ||
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गतघटोत्कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंग में अलायुधयुद्ध विषयक एक सौ सतहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ। | इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गतघटोत्कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंग में अलायुधयुद्ध विषयक एक सौ सतहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ। | ||
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१२:१४, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
सप्तसप्तत्यधिकशततम (177) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
भयानक शब्द करने वाली उस विशाल गदा को आती देख भयंकर राक्षस अलायुध ने अपनी गदा से उस पर आघात किया और बडे़ जोर से गर्जना की। राक्षसराज अलायुध के उस भयदायक घोर कर्म को देखकर भीमसेन का हृदय हर्ष और उत्साह से भर गया और उन्होंने शीघ्र ही गदा हाथ में ले ली। फिर गदाओं के टकराने की आवाज से भूतल को अत्यन्त कम्पित करते हुए उन दोनों मनुष्य और राक्षसों में वहाँ भयंकर युद्ध होने लगा। गदा से छूटते ही वे दोनों फिर एक दूसरे से गुथ गये और वज्रपात की सी आवाज करने वाले मुक्कों से एक दूसरे को मारने लगे। तत्पश्चात् अमर्ष में भरकर वे दोनों रथ के पहियों, जूओं, धुरों, बैठकों और अन्य उपकरणों से तथा जो भी वस्तु समीप मिल जाती, उसी को लेकर एक दूसरे पर चोट करने लगे। वे मदस्त्रावी मतवाले गजराजों के समान अपने अंगों से रूधिर की धारा बहाते हुए एक दूसरे से भिड़कर बारंबार खींचातानी करने लजगे। पाण्डवों के हित में तत्पर रहने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने जब वह युद्ध देखा, तब भीमसेन की रक्षा के लिये हिडिम्बा कुमार घटोत्कच को भेजा।
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गतघटोत्कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंग में अलायुधयुद्ध विषयक एक सौ सतहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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