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स्कंदगुप्त (455- | स्कंदगुप्त (455-467 ई.) गुप्त सम्राट् कुमारगुप्त प्रथम महेंद्रादित्य का पुत्र था। अपने पिता के शासनकाल में ही इसने प्रबल पुष्यमित्रों को पराजित करके अपनी अद्भत प्रतिभा और वीरता का परिचय दे दिया था। यह कुमारगुप्त की पट्टमहिषी महादेवी अनंत देवी का पुत्र नहीं था। यह उनकी दूसरी रानी से था। पुष्यमित्रों का विद्रोह इतना प्रबल था कि गुप्त शासन के पाए हिल गए थे, किंतु इसने अपने निस्सीम धैर्य और अप्रतिम वीरता से शत्रुओं का सामूहिक संहार करके फिर से शांति स्थापित की। यद्यपि कुमारगुप्त का ज्येष्ठ पुत्र पुरुगुप्त था, तथापि इसके शौर्यगुण के कारण राजलक्ष्मी ने स्वयं इसका वरण किया था। | ||
इसे राज्यकाल में हूणों ने कंबाज जनपद को विजित कर गांधार में प्रवेश किया। हूण बड़े ही भीषण योद्धा थे, जिन्होंने पश्चिम में रोमन साम्राज्य को तहस नहस कर डाला था। हूणराज एरिला का नाम सुनकर यूरोपीय लोग काँप उठते थे। कंबोज, कंधार आदि जनपद गुप्तसाम्राज्य के अंग थे। शिलालेखों में कहा गया है कि गांधार में स्कंदगुप्त का हूणों के साथ इतना भयंकर संग्राम हुआ कि संपूर्ण पृथ्वी काँप उठी। इस महासंग्राम में विजयश्री ने स्कंदगुप्त का वरण किया। इसका शुभ्र यश कन्याकुमारी अंतरीप तक छा गया। बौद्ध ग्रंथ 'चंद्रगर्भपरिपृच्छा' में वर्णित है कि हूणों की सैन्यसंख्या तीन लाख थी और गुप्त सैन्यसंख्या दो लाख थी, किंतु विजयी हुआ गुप्त सैन्य। इस महान् विजय के कारण गुप्तवंश में स्कंदगुप्त 'एकवीर' की उपाधि से विभूषित हुआ। इसने अपने बाहुबल से हूण सेना को गांधार के पीछे ढकेल दिया। | इसे राज्यकाल में हूणों ने कंबाज जनपद को विजित कर गांधार में प्रवेश किया। हूण बड़े ही भीषण योद्धा थे, जिन्होंने पश्चिम में रोमन साम्राज्य को तहस नहस कर डाला था। हूणराज एरिला का नाम सुनकर यूरोपीय लोग काँप उठते थे। कंबोज, कंधार आदि जनपद गुप्तसाम्राज्य के अंग थे। शिलालेखों में कहा गया है कि गांधार में स्कंदगुप्त का हूणों के साथ इतना भयंकर संग्राम हुआ कि संपूर्ण पृथ्वी काँप उठी। इस महासंग्राम में विजयश्री ने स्कंदगुप्त का वरण किया। इसका शुभ्र यश कन्याकुमारी अंतरीप तक छा गया। बौद्ध ग्रंथ 'चंद्रगर्भपरिपृच्छा' में वर्णित है कि हूणों की सैन्यसंख्या तीन लाख थी और गुप्त सैन्यसंख्या दो लाख थी, किंतु विजयी हुआ गुप्त सैन्य। इस महान् विजय के कारण गुप्तवंश में स्कंदगुप्त 'एकवीर' की उपाधि से विभूषित हुआ। इसने अपने बाहुबल से हूण सेना को गांधार के पीछे ढकेल दिया। |
०८:३२, १८ अगस्त २०११ के समय का अवतरण
स्कंदगुप्त (455-467 ई.) गुप्त सम्राट् कुमारगुप्त प्रथम महेंद्रादित्य का पुत्र था। अपने पिता के शासनकाल में ही इसने प्रबल पुष्यमित्रों को पराजित करके अपनी अद्भत प्रतिभा और वीरता का परिचय दे दिया था। यह कुमारगुप्त की पट्टमहिषी महादेवी अनंत देवी का पुत्र नहीं था। यह उनकी दूसरी रानी से था। पुष्यमित्रों का विद्रोह इतना प्रबल था कि गुप्त शासन के पाए हिल गए थे, किंतु इसने अपने निस्सीम धैर्य और अप्रतिम वीरता से शत्रुओं का सामूहिक संहार करके फिर से शांति स्थापित की। यद्यपि कुमारगुप्त का ज्येष्ठ पुत्र पुरुगुप्त था, तथापि इसके शौर्यगुण के कारण राजलक्ष्मी ने स्वयं इसका वरण किया था।
इसे राज्यकाल में हूणों ने कंबाज जनपद को विजित कर गांधार में प्रवेश किया। हूण बड़े ही भीषण योद्धा थे, जिन्होंने पश्चिम में रोमन साम्राज्य को तहस नहस कर डाला था। हूणराज एरिला का नाम सुनकर यूरोपीय लोग काँप उठते थे। कंबोज, कंधार आदि जनपद गुप्तसाम्राज्य के अंग थे। शिलालेखों में कहा गया है कि गांधार में स्कंदगुप्त का हूणों के साथ इतना भयंकर संग्राम हुआ कि संपूर्ण पृथ्वी काँप उठी। इस महासंग्राम में विजयश्री ने स्कंदगुप्त का वरण किया। इसका शुभ्र यश कन्याकुमारी अंतरीप तक छा गया। बौद्ध ग्रंथ 'चंद्रगर्भपरिपृच्छा' में वर्णित है कि हूणों की सैन्यसंख्या तीन लाख थी और गुप्त सैन्यसंख्या दो लाख थी, किंतु विजयी हुआ गुप्त सैन्य। इस महान् विजय के कारण गुप्तवंश में स्कंदगुप्त 'एकवीर' की उपाधि से विभूषित हुआ। इसने अपने बाहुबल से हूण सेना को गांधार के पीछे ढकेल दिया।
स्कंदगुप्त के समय में गुप्तसाम्राज्य अखंड रहा। इसके समय की कुछ स्वर्णमुद्राएँ मिली हैं, जिनमें स्वर्ण की मात्रा पहले के सिक्कों की अपेक्षा कम है। इससे प्रतीत होता है कि हूणयुद्ध के कारण राजकोश पर गंभीर प्रभाव पड़ा था इसने प्रजाजनों की सुख सुविधा पर भी पूरा पूरा ध्यान दिया। सौराष्ट्र की सुदर्शन झील की दशा इसके शासनकाल के आरंभ में खराब हो गई थी और उससे निकली नहरों में पानी नहीं रह गया था। स्कंदगुप्त ने सौराष्ट्र के तत्कालीन शासक पर्णदत्त को आदेश देकर झील का पुनरुद्धार कराया। बाँध दृढ़ता से बाँधे गए, जिससे प्रजाजनों का अपार सुख मिला। पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित ने इसी समय उस झील के तट पर विशाल विष्णुमंदिर का निर्माण कराया था।
इसने राज्य की आभ्यंतर अशांति को दूर किया और हूण जैसे प्रबल शत्रु का मानमर्दन करके 'आसमुद्रक्षितीश' पद की गौरवरक्षा करते हुए साम्राज्य में चर्तुदिक् शांति स्थापित की। स्कंदगुप्त की कोई संतान नहीं थी। अत: इसकी मृत्यु के पश्चात् पुरुगुप्त सम्राट् बना।