"गंधकुटी": अवतरणों में अंतर
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'''गंधकुटी''' बुद्ध, केवली या भगवान् के विराजने का स्थान। मोह का क्षय होने से कैवल्य (पूर्ण ज्ञान) की प्राप्ति होती है। तीर्थकर केवली के लिए इंद्र विशाल जंगन सभा (समवसरण) का निर्माण करता है। समवसरण के केंद्र में उच्च स्थान पर भगवान् के लिए कुटी होती है। इसमें सदैव मलयचंदन, कालागरू आदि जलते रहते हैं अतएव इसे गंधकुटी कहते हैं। साधारण केवलियों के लिए केवल गंधकुटी बनती है। समवसरण के प्रतीक जिन मंदिरों में गंधकुटी के स्थान पर गर्भगृह होता है तथा | '''गंधकुटी''' बुद्ध, केवली या भगवान् के विराजने का स्थान। मोह का क्षय होने से कैवल्य (पूर्ण ज्ञान) की प्राप्ति होती है। तीर्थकर केवली के लिए [[इंद्र]] विशाल जंगन सभा (समवसरण) का निर्माण करता है। समवसरण के केंद्र में उच्च स्थान पर भगवान् के लिए कुटी होती है। इसमें सदैव मलयचंदन, कालागरू आदि जलते रहते हैं अतएव इसे गंधकुटी कहते हैं। साधारण केवलियों के लिए केवल गंधकुटी बनती है। समवसरण के प्रतीक जिन मंदिरों में गंधकुटी के स्थान पर गर्भगृह होता है तथा मूर्तिया इसी में रहती हैं। महात्मा [[बुद्ध]] के बैठने के स्थान को भी दिव्यावदान आदि में गंधकुटी नाम से ही अभिहित किया गया है। त्रिलोकप्रज्ञप्ति (गाथा 887-892) में गंधकुटी का वर्णन है। [[ऋषभदेव]] की गंधकुटी की लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई क्रमश: 600, 600 और 900 दंड थी। इसके बाद [[नेमिनाथ]] पर्यंत तीनों में 25, 25 और साढे 37।। दंड घटते गए। [[पार्श्वनाथ]] की गंधकुटीर साढे 62।। लंबाई, चौड़ाई और साढे 93।। ऊँची थी [[महावीर स्वामी]] की 50, 50 और 75 दंड लंबाई .चौड़ाई . ऊँचाई थी। [[सारनाथ]] में बुद्ध की भी गंध कुटी अथवा मूलगंधकुटी थी। | ||
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११:२३, ३१ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
गंधकुटी बुद्ध, केवली या भगवान् के विराजने का स्थान। मोह का क्षय होने से कैवल्य (पूर्ण ज्ञान) की प्राप्ति होती है। तीर्थकर केवली के लिए इंद्र विशाल जंगन सभा (समवसरण) का निर्माण करता है। समवसरण के केंद्र में उच्च स्थान पर भगवान् के लिए कुटी होती है। इसमें सदैव मलयचंदन, कालागरू आदि जलते रहते हैं अतएव इसे गंधकुटी कहते हैं। साधारण केवलियों के लिए केवल गंधकुटी बनती है। समवसरण के प्रतीक जिन मंदिरों में गंधकुटी के स्थान पर गर्भगृह होता है तथा मूर्तिया इसी में रहती हैं। महात्मा बुद्ध के बैठने के स्थान को भी दिव्यावदान आदि में गंधकुटी नाम से ही अभिहित किया गया है। त्रिलोकप्रज्ञप्ति (गाथा 887-892) में गंधकुटी का वर्णन है। ऋषभदेव की गंधकुटी की लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई क्रमश: 600, 600 और 900 दंड थी। इसके बाद नेमिनाथ पर्यंत तीनों में 25, 25 और साढे 37।। दंड घटते गए। पार्श्वनाथ की गंधकुटीर साढे 62।। लंबाई, चौड़ाई और साढे 93।। ऊँची थी महावीर स्वामी की 50, 50 और 75 दंड लंबाई .चौड़ाई . ऊँचाई थी। सारनाथ में बुद्ध की भी गंध कुटी अथवा मूलगंधकुटी थी।
टीका टिप्पणी और संदर्भ