"महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 231 श्लोक 1-16" के अवतरणों में अंतर

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युधिष्ठिर ने पूछा – कुरूनन्दकन ! अब मैं यह जानना चाहता हॅू कि सम्पू र्ण भूतों की उत्पदत्ति किससे होती हैं ? उनका अन्त  कहाँहोता है ? परमार्थ की प्राप्ति के लिये किसका ध्यातन और किस कर्म का अनुष्ठाउन करना चाहिये ? काल का क्याी स्व रूप है ? तथा भिन्न -भिन्नह युगों में मनुष्यों  की कितनी आयु होती है ? । मैं लोक का तत्वल पूर्णरूप से जानना चाहता हॅू । प्राणियों के आवागमन और सृष्टि प्रलय किससे होते हैं ? । सत्पुिरूषों में श्रेष्ठर पितामह ! यदि आपका हम लोगों पर अनुग्रह करने का विचार है तो मैं यही बात आपसे पूछता हॅू । आप मुझे बताइये । पहले ब्रह्रार्षि भरद्वाज के प्रति भृगुजी का जो उत्तइम उपदेश हुआ था, उसे आपके मॅुह से सुनकर मुझे उत्त म बुद्धि प्राप्तह हुई थी । मेरी बुद्धि परम धर्मिष्ठझ एवं दिव्यब स्थिति में स्थित हो गयी थी; इसीलिये फिर पूछता हॅू । आप इस विषय का वर्णन करने की कृपा करें । भीष्मय जी ने कहा – युधिष्ठिर ! इस विषय में भगवान् व्याॅस ने अपने पुत्र के पूछने पर जो उपदेश दिया था, वही प्राचीन इतिहास में दुहराऊँगा । अंगो और उपनिषदों सहित सम्पूमर्ण वेदों का अध्यपयन करके व्यारसपुत्र शुकदेव ने नैष्ठिक कर्मको जानने की इच्छाअ से अपने पिता श्रीकृष्ण द्वैपायन व्या सकी धर्माज्ञानविषयक निपुणता देखकर उनसे अपने मन का संदेह पूछा । उन्हेंच यह विश्वािस था कि पिताजी के उपदेश से मेरा धर्म और अर्थविषयक सारा संशय दूर हो जायगा ।
 
युधिष्ठिर ने पूछा – कुरूनन्दकन ! अब मैं यह जानना चाहता हॅू कि सम्पू र्ण भूतों की उत्पदत्ति किससे होती हैं ? उनका अन्त  कहाँहोता है ? परमार्थ की प्राप्ति के लिये किसका ध्यातन और किस कर्म का अनुष्ठाउन करना चाहिये ? काल का क्याी स्व रूप है ? तथा भिन्न -भिन्नह युगों में मनुष्यों  की कितनी आयु होती है ? । मैं लोक का तत्वल पूर्णरूप से जानना चाहता हॅू । प्राणियों के आवागमन और सृष्टि प्रलय किससे होते हैं ? । सत्पुिरूषों में श्रेष्ठर पितामह ! यदि आपका हम लोगों पर अनुग्रह करने का विचार है तो मैं यही बात आपसे पूछता हॅू । आप मुझे बताइये । पहले ब्रह्रार्षि भरद्वाज के प्रति भृगुजी का जो उत्तइम उपदेश हुआ था, उसे आपके मॅुह से सुनकर मुझे उत्त म बुद्धि प्राप्तह हुई थी । मेरी बुद्धि परम धर्मिष्ठझ एवं दिव्यब स्थिति में स्थित हो गयी थी; इसीलिये फिर पूछता हॅू । आप इस विषय का वर्णन करने की कृपा करें । भीष्मय जी ने कहा – युधिष्ठिर ! इस विषय में भगवान् व्याॅस ने अपने पुत्र के पूछने पर जो उपदेश दिया था, वही प्राचीन इतिहास में दुहराऊँगा । अंगो और उपनिषदों सहित सम्पूमर्ण वेदों का अध्यपयन करके व्यारसपुत्र शुकदेव ने नैष्ठिक कर्मको जानने की इच्छाअ से अपने पिता श्रीकृष्ण द्वैपायन व्या सकी धर्माज्ञानविषयक निपुणता देखकर उनसे अपने मन का संदेह पूछा । उन्हेंच यह विश्वािस था कि पिताजी के उपदेश से मेरा धर्म और अर्थविषयक सारा संशय दूर हो जायगा ।
 
श्रीशुकदेव जी बोले – पिताजी ! समस्ता प्राणि-समुदाय को उत्पशन्नल करनेवाला कौन है ?काल के ज्ञान के विषय में आपका क्याव निश्चनय है ? और ब्राह्राण का क्या  कर्तव्य  है ? ये सब बातें आप बताने की कृपा करें । भीष्मर जी कहते है-राजन् ! भूत और भविष्य। के ज्ञाता तथा सम्पू र्ण धर्मों को जाननेवाले सर्वज्ञ विद्वान् पिता व्याऔस ने अपने पुत्र के पूछनेपर उसे उन सब बातों का इस प्रकार उपदेश किया । व्याससजी बोले-बेटा ! सृष्टि के आरम्भर में अनादि, अनन्तप, अजन्माप, दिव्ये, अजर-अमर, ध्रुव, अविकारी, अतर्क्यन और ज्ञानातीत ब्रह्रा ही रहता है । (अब काल का विभाग इस प्रकार समझना चाहिये) पंद्रह निमेष की एक काष्ठाइ और तीस काष्ठा  की एक कला गिननी चाहिये । तीस कला का एक मुहूर्त होता है । उसके साथ कला का दसवॉ भाग और सम्मिलित होता है अर्थात् तीस कला और तीन काष्ठा  का एक मुहूर्त होता है । तीस मुहूर्त का एक दिन रात होता है । महर्षियों ने दिन और रात्रि के मुहूर्तों की संख्यात उतनी ही बतायी है । तीस रात-दिन का एक मास और बारह मासों का एक संवत्सबर बताया गया है । विद्वान् पुरूष दो अयनों को मिलाकर एक संवत्सयर कहते हैं । वे दो अयन हैं – उत्तरायण और दक्षिणायन । मनुष्ययलोक के दिन-रात का विभाग सूर्यदेव करते हैं । रात प्राणियों के सोने के लिये है और दिन काम करने के लिये । मनुष्योंक के एक मास में पितरों का एक दिन-रात होता है । शुक्लोपक्ष उनके काम-काज करने के लिये दिन है और कृष्ण।पक्ष उनके विश्राम के लिये रात है ।
 
श्रीशुकदेव जी बोले – पिताजी ! समस्ता प्राणि-समुदाय को उत्पशन्नल करनेवाला कौन है ?काल के ज्ञान के विषय में आपका क्याव निश्चनय है ? और ब्राह्राण का क्या  कर्तव्य  है ? ये सब बातें आप बताने की कृपा करें । भीष्मर जी कहते है-राजन् ! भूत और भविष्य। के ज्ञाता तथा सम्पू र्ण धर्मों को जाननेवाले सर्वज्ञ विद्वान् पिता व्याऔस ने अपने पुत्र के पूछनेपर उसे उन सब बातों का इस प्रकार उपदेश किया । व्याससजी बोले-बेटा ! सृष्टि के आरम्भर में अनादि, अनन्तप, अजन्माप, दिव्ये, अजर-अमर, ध्रुव, अविकारी, अतर्क्यन और ज्ञानातीत ब्रह्रा ही रहता है । (अब काल का विभाग इस प्रकार समझना चाहिये) पंद्रह निमेष की एक काष्ठाइ और तीस काष्ठा  की एक कला गिननी चाहिये । तीस कला का एक मुहूर्त होता है । उसके साथ कला का दसवॉ भाग और सम्मिलित होता है अर्थात् तीस कला और तीन काष्ठा  का एक मुहूर्त होता है । तीस मुहूर्त का एक दिन रात होता है । महर्षियों ने दिन और रात्रि के मुहूर्तों की संख्यात उतनी ही बतायी है । तीस रात-दिन का एक मास और बारह मासों का एक संवत्सबर बताया गया है । विद्वान् पुरूष दो अयनों को मिलाकर एक संवत्सयर कहते हैं । वे दो अयन हैं – उत्तरायण और दक्षिणायन । मनुष्ययलोक के दिन-रात का विभाग सूर्यदेव करते हैं । रात प्राणियों के सोने के लिये है और दिन काम करने के लिये । मनुष्योंक के एक मास में पितरों का एक दिन-रात होता है । शुक्लोपक्ष उनके काम-काज करने के लिये दिन है और कृष्ण।पक्ष उनके विश्राम के लिये रात है ।
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०८:२६, ३ अगस्त २०१५ का अवतरण

एकत्रिंशदधिद्विशततम (231) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: एकत्रिंशदधिद्विशततम श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


शुकदेवजी का प्रश्नम और व्याासजी का उनके प्रश्नों का उत्तर देते हुए काल का स्वनरूप बताना

युधिष्ठिर ने पूछा – कुरूनन्दकन ! अब मैं यह जानना चाहता हॅू कि सम्पू र्ण भूतों की उत्पदत्ति किससे होती हैं ? उनका अन्त कहाँहोता है ? परमार्थ की प्राप्ति के लिये किसका ध्यातन और किस कर्म का अनुष्ठाउन करना चाहिये ? काल का क्याी स्व रूप है ? तथा भिन्न -भिन्नह युगों में मनुष्यों की कितनी आयु होती है ? । मैं लोक का तत्वल पूर्णरूप से जानना चाहता हॅू । प्राणियों के आवागमन और सृष्टि प्रलय किससे होते हैं ? । सत्पुिरूषों में श्रेष्ठर पितामह ! यदि आपका हम लोगों पर अनुग्रह करने का विचार है तो मैं यही बात आपसे पूछता हॅू । आप मुझे बताइये । पहले ब्रह्रार्षि भरद्वाज के प्रति भृगुजी का जो उत्तइम उपदेश हुआ था, उसे आपके मॅुह से सुनकर मुझे उत्त म बुद्धि प्राप्तह हुई थी । मेरी बुद्धि परम धर्मिष्ठझ एवं दिव्यब स्थिति में स्थित हो गयी थी; इसीलिये फिर पूछता हॅू । आप इस विषय का वर्णन करने की कृपा करें । भीष्मय जी ने कहा – युधिष्ठिर ! इस विषय में भगवान् व्याॅस ने अपने पुत्र के पूछने पर जो उपदेश दिया था, वही प्राचीन इतिहास में दुहराऊँगा । अंगो और उपनिषदों सहित सम्पूमर्ण वेदों का अध्यपयन करके व्यारसपुत्र शुकदेव ने नैष्ठिक कर्मको जानने की इच्छाअ से अपने पिता श्रीकृष्ण द्वैपायन व्या सकी धर्माज्ञानविषयक निपुणता देखकर उनसे अपने मन का संदेह पूछा । उन्हेंच यह विश्वािस था कि पिताजी के उपदेश से मेरा धर्म और अर्थविषयक सारा संशय दूर हो जायगा । श्रीशुकदेव जी बोले – पिताजी ! समस्ता प्राणि-समुदाय को उत्पशन्नल करनेवाला कौन है ?काल के ज्ञान के विषय में आपका क्याव निश्चनय है ? और ब्राह्राण का क्या कर्तव्य है ? ये सब बातें आप बताने की कृपा करें । भीष्मर जी कहते है-राजन् ! भूत और भविष्य। के ज्ञाता तथा सम्पू र्ण धर्मों को जाननेवाले सर्वज्ञ विद्वान् पिता व्याऔस ने अपने पुत्र के पूछनेपर उसे उन सब बातों का इस प्रकार उपदेश किया । व्याससजी बोले-बेटा ! सृष्टि के आरम्भर में अनादि, अनन्तप, अजन्माप, दिव्ये, अजर-अमर, ध्रुव, अविकारी, अतर्क्यन और ज्ञानातीत ब्रह्रा ही रहता है । (अब काल का विभाग इस प्रकार समझना चाहिये) पंद्रह निमेष की एक काष्ठाइ और तीस काष्ठा की एक कला गिननी चाहिये । तीस कला का एक मुहूर्त होता है । उसके साथ कला का दसवॉ भाग और सम्मिलित होता है अर्थात् तीस कला और तीन काष्ठा का एक मुहूर्त होता है । तीस मुहूर्त का एक दिन रात होता है । महर्षियों ने दिन और रात्रि के मुहूर्तों की संख्यात उतनी ही बतायी है । तीस रात-दिन का एक मास और बारह मासों का एक संवत्सबर बताया गया है । विद्वान् पुरूष दो अयनों को मिलाकर एक संवत्सयर कहते हैं । वे दो अयन हैं – उत्तरायण और दक्षिणायन । मनुष्ययलोक के दिन-रात का विभाग सूर्यदेव करते हैं । रात प्राणियों के सोने के लिये है और दिन काम करने के लिये । मनुष्योंक के एक मास में पितरों का एक दिन-रात होता है । शुक्लोपक्ष उनके काम-काज करने के लिये दिन है और कृष्ण।पक्ष उनके विश्राम के लिये रात है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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