"महाभारत आदि पर्व अध्याय 152 श्लोक 1-16": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('==द्विपञ्चाशदधिकशततम (152) अध्‍याय: आदि पर्व (जतुगृह पर...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति १: पंक्ति १:
==द्विपञ्चाशदधिकशततम (152) अध्‍याय: आदि पर्व (जतुगृह पर्व)==
==द्विपञ्चाशदधिकशततम (152) अध्‍याय: आदि पर्व (हिडिम्‍बवध पर्व)==


<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: द्विपञ्चाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: द्विपञ्चाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद</div>

०९:४७, ५ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

द्विपञ्चाशदधिकशततम (152) अध्‍याय: आदि पर्व (हिडिम्‍बवध पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: द्विपञ्चाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

हिडिम्‍ब का आना, हिडिम्‍बा का उससे भयभीत होना और भीम तथा हिडिम्‍बा का युद्ध

वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! तब यह सोचकर कि मेरी बहिन को गये बहुत देर हो गयी, राक्षसराज हिडिम्‍ब उस वृक्ष से उतरा और शीघ्र ही पाण्‍डवों के पास आ गया। उसकी आंखे क्रोध से लाल हो रही थीं, भुजाएं बड़ी-बड़ी थीं, केश उपर को उठे हुए थे और विशाल मुख था। उसके शरीर का रंग काला था, मानों मेघों की काली घटा छा रही हो। तीखे दाढ़ों वाला वह राक्षस बड़ा भयंकर जान पड़ता था। देखने में विकराल उस राक्षस हिडिम्‍ब को आते देखकर ही हिडिम्‍बा भय से थर्रा उठी और भीमसेन से इस प्रकार बोली-जो निर्दोष बड़े भाई के अविवाहित रहते हुए ही अपना विवाह कर लेता हैं, वह ‘परिवेा’कहलाता हैं, शास्‍त्रों में वह निन्‍दनीय माना गया है। ‘(देखिये) यह दुष्‍टात्‍मा नरभक्षी राक्षस क्रोध में भरा हुआ इधर ही आ रहा है, अत: मैं भाइयों सहित आपसे जो कहती हूं, वैसा किजिये। ‘वीर ! मैं इच्‍छानुसार चल सकती हूं, मुझमें राक्षसों का सम्‍पूर्ण बल हैं। आप मेरे इस कटि प्रदेश या पीठ पर बैठ जाइये। मैं आपको आकाश-मार्ग से ले चलूंगी। ‘परतंप ! आप इन सोये हुए भाइयों और माताजी को भी जगा दिजिये। मैं आप सब लोगों को लेकर आकाश-मार्ग से उड़ चलूंगी। भीमसेन बोले-सुन्‍दरी ! तुम डरों मत, मेरे सामने यह राक्षस कुछ भी नहीं है। सुमध्‍यमें ! मैं तुम्‍हारे देखते-देखते इसे मार डालूंगा। भीरु ! यह नीच राक्षस युद्ध में मेरे आक्रमण का वेग सह सके, ऐसा बलवान् नहीं है। ये अथवा सम्‍पूर्ण राक्षस भी मेरा सामना नहीं कर सकते। हाथी की सूंड-जैसी मोटी और सुन्‍दर गोलाकार मेरी इन दोनों भुजाओं की ओर देखो। मेरी ये जांघे परिघ के समान हैं और मेरा विशाल वक्ष:स्‍थल भी सुद्दढ़ एवं सुगठित है। शोभने ! मेरा पराक्रम (भी) इन्‍द्र के समान हैं, जिसे तुम अभी देखोगी। विशाल निम्‍बों वाली राक्षसी ! तुम मुझे मनुष्‍य समझकर वहां मेरा तिरस्‍कार न करो। हिडिम्‍बा ने कहा-नरश्रेष्‍ठ ! आपका स्‍वरुप तो देवताओं के समान है ही। मै आपका तिरस्‍कार नहीं करती। मैं तो इसलिये कहती थी कि मनुष्‍यों पर ही इस राक्षस का प्रभाव मैं (कई बार)देख चुकी हूं। वैशम्‍पायनजी कहते हैं-जनमेजय ! उस नरभक्षी राक्षस हिडिम्‍बा ने क्रोध में भरकर भीमसेन की कही हुई उपर्युक्‍त बातें सुनी। (तत्‍पश्‍चात्) उसे अपनी बहिन के मनुष्‍योंचित रुप की ओर द्दष्टिपात किया। उसने अपनी चोटी में फूलों के गजरे लगा रक्‍खे थे। उसका मुख पूर्ण चन्‍द्रमा के समान मनोहर जान पड़ता था। उसकी भौहें, नासिका, नेत्र और केशान्‍तभाग सभी सुन्‍दर थे। नख और त्‍वचा बहुत ही सुकुमार थी। उसने अपने अंगो को समस्‍त आभूषणों से विभूषित कर रक्‍खा था तथा शरीर पर अत्‍यन्‍त सुन्‍दर महीन साड़ी शोभा पा रही थी। उसे इस प्रकार सुन्‍दर एवं मनोहर मानव-रुप धारण किये देख राक्षस के मन मे यह संदेह हुआ कि हो-न-हो यह पतिरुप में कसी पुरुष का वरण करना चाहती हैं। यह विचार मन मे ही आते ही वह कुपित हो उठा। कुरुश्रेष्‍ठ ! अपनी बहिन पर उस राक्षस का क्रोध बहुत बढ़ गया था। फिर तो उसने बड़ी-बड़ी आंखें फाड़-फाड़कर उसकी ओर देखते हुए कहा।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।