"महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 239 श्लोक 32-34" के अवतरणों में अंतर
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स्थाकवर-जंगम सभी प्राणियों का ईश्वयर स्वा धीन परमात्माव नव द्वारोंवाले शरीर में प्रवेश करके हंस (जीव) रूप से स्थिरतापूर्वक स्थित है । पारदर्शी (तत्व्ज्ञानी) पुरूष परिणाम में हानि, भंग एवं विकल्पी से युक्तद नवीन शरीरों को बारंबार ग्रहण करने के कारण अजन्माी परमात्मार के अंशभूत जीवात्माब को ‘हंस’ कहते हैं । हंस नाम से जिस अविनाशी जीवात्मा् का प्रतिपादन कियागया है, वह कूटस्थस अक्षर ही है, इस प्रकार जो विद्वान् उस अक्षर आत्मा् को यथार्थरूप से जान लेता है, वह प्राण जन्म और मृत्युआ के बन्धयन को सदा के लिये त्या ग देता है । | स्थाकवर-जंगम सभी प्राणियों का ईश्वयर स्वा धीन परमात्माव नव द्वारोंवाले शरीर में प्रवेश करके हंस (जीव) रूप से स्थिरतापूर्वक स्थित है । पारदर्शी (तत्व्ज्ञानी) पुरूष परिणाम में हानि, भंग एवं विकल्पी से युक्तद नवीन शरीरों को बारंबार ग्रहण करने के कारण अजन्माी परमात्मार के अंशभूत जीवात्माब को ‘हंस’ कहते हैं । हंस नाम से जिस अविनाशी जीवात्मा् का प्रतिपादन कियागया है, वह कूटस्थस अक्षर ही है, इस प्रकार जो विद्वान् उस अक्षर आत्मा् को यथार्थरूप से जान लेता है, वह प्राण जन्म और मृत्युआ के बन्धयन को सदा के लिये त्या ग देता है । | ||
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्ततर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुक देव का अनुप्रश्नतविषयक दो सौ उनतालीसवॉ अध्यातय पूरा हुआ । | इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्ततर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुक देव का अनुप्रश्नतविषयक दो सौ उनतालीसवॉ अध्यातय पूरा हुआ । | ||
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०७:३८, ९ अगस्त २०१५ का अवतरण
एकोनचत्वारिंशदधिकद्विशततम (239) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: एकोनचत्वारिंशदधिकद्विशततम श्लोक 32-34 का हिन्दी अनुवाद
स्थाकवर-जंगम सभी प्राणियों का ईश्वयर स्वा धीन परमात्माव नव द्वारोंवाले शरीर में प्रवेश करके हंस (जीव) रूप से स्थिरतापूर्वक स्थित है । पारदर्शी (तत्व्ज्ञानी) पुरूष परिणाम में हानि, भंग एवं विकल्पी से युक्तद नवीन शरीरों को बारंबार ग्रहण करने के कारण अजन्माी परमात्मार के अंशभूत जीवात्माब को ‘हंस’ कहते हैं । हंस नाम से जिस अविनाशी जीवात्मा् का प्रतिपादन कियागया है, वह कूटस्थस अक्षर ही है, इस प्रकार जो विद्वान् उस अक्षर आत्मा् को यथार्थरूप से जान लेता है, वह प्राण जन्म और मृत्युआ के बन्धयन को सदा के लिये त्या ग देता है ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्ततर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुक देव का अनुप्रश्नतविषयक दो सौ उनतालीसवॉ अध्यातय पूरा हुआ ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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