"महाभारत आदि पर्व अध्याय 155 श्लोक 15-19" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति १: पंक्ति १:
==पञ्चपञ्चाशदधिकशततम (155) अध्‍याय: आदि पर्व (हिडिम्‍ब पर्व)==
+
==पञ्चपञ्चाशदधिकशततम (155) अध्‍याय: आदि पर्व (हिडिम्बवध पर्व)==
  
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: पञ्चपञ्चाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 15-19 का हिन्दी अनुवाद</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: पञ्चपञ्चाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 15-19 का हिन्दी अनुवाद</div>
पंक्ति ५: पंक्ति ५:
 
पुरुषों में सिंह के समान बलवान् पाण्‍डव इस पृथ्‍वी को जीतकर प्रचुर दक्षिणा से सम्‍पन्‍न राजसूय तथा अश्‍वमेघ आदि यज्ञों द्वारा भगवान् का यजन करेंगे। वैशपाम्‍यनजी कहते हैं-जनमेजय ! यों कहकर महर्षि द्वैपायन ने इन सबको एक ब्राह्मण के घर में ठहरा दिया और पाण्‍डव श्रेष्‍ठ युधिष्ठिर से कहा- ‘तुम लोग यहां एक मास तक मेरी प्रतीक्षा  करो। मैं पुन: आउंगा। देश और काल का विचार करके ही कोई कार्य करना चाहिये; इससे तुम्‍हें बड़ा सुख मिलेगा ‘। राजन् ! उस समय सबने हाथ जोड़कर उनकी आशा स्‍वीकार की। तदनन्‍तर शक्तिशाली महर्षि भगवान् व्‍यास जैसे आये थें, वैसे ही चले गये।
 
पुरुषों में सिंह के समान बलवान् पाण्‍डव इस पृथ्‍वी को जीतकर प्रचुर दक्षिणा से सम्‍पन्‍न राजसूय तथा अश्‍वमेघ आदि यज्ञों द्वारा भगवान् का यजन करेंगे। वैशपाम्‍यनजी कहते हैं-जनमेजय ! यों कहकर महर्षि द्वैपायन ने इन सबको एक ब्राह्मण के घर में ठहरा दिया और पाण्‍डव श्रेष्‍ठ युधिष्ठिर से कहा- ‘तुम लोग यहां एक मास तक मेरी प्रतीक्षा  करो। मैं पुन: आउंगा। देश और काल का विचार करके ही कोई कार्य करना चाहिये; इससे तुम्‍हें बड़ा सुख मिलेगा ‘। राजन् ! उस समय सबने हाथ जोड़कर उनकी आशा स्‍वीकार की। तदनन्‍तर शक्तिशाली महर्षि भगवान् व्‍यास जैसे आये थें, वैसे ही चले गये।
  
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत हिडिम्‍ब पर्व में पाण्‍डवों का एकचक्रानगरी में प्रवेश और व्‍यासजी का दर्शनीय विषयक एक सौ पचपनवां अध्‍याय पूरा हुआ।
+
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत हिडिम्‍ब पर्व में पाण्‍डवों का एकचक्रानगरी में प्रवेश और व्‍यासजी का दर्शनीय विषयक एक सौ पचपनवां अध्‍याय पूरा हुआ।</div>
  
 
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 155 श्लोक 1-14|अगला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 156 श्लोक 1-14}}
 
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 155 श्लोक 1-14|अगला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 156 श्लोक 1-14}}

०७:४९, १० अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

पञ्चपञ्चाशदधिकशततम (155) अध्‍याय: आदि पर्व (हिडिम्बवध पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: पञ्चपञ्चाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 15-19 का हिन्दी अनुवाद

पुरुषों में सिंह के समान बलवान् पाण्‍डव इस पृथ्‍वी को जीतकर प्रचुर दक्षिणा से सम्‍पन्‍न राजसूय तथा अश्‍वमेघ आदि यज्ञों द्वारा भगवान् का यजन करेंगे। वैशपाम्‍यनजी कहते हैं-जनमेजय ! यों कहकर महर्षि द्वैपायन ने इन सबको एक ब्राह्मण के घर में ठहरा दिया और पाण्‍डव श्रेष्‍ठ युधिष्ठिर से कहा- ‘तुम लोग यहां एक मास तक मेरी प्रतीक्षा करो। मैं पुन: आउंगा। देश और काल का विचार करके ही कोई कार्य करना चाहिये; इससे तुम्‍हें बड़ा सुख मिलेगा ‘। राजन् ! उस समय सबने हाथ जोड़कर उनकी आशा स्‍वीकार की। तदनन्‍तर शक्तिशाली महर्षि भगवान् व्‍यास जैसे आये थें, वैसे ही चले गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत हिडिम्‍ब पर्व में पाण्‍डवों का एकचक्रानगरी में प्रवेश और व्‍यासजी का दर्शनीय विषयक एक सौ पचपनवां अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।