"महाभारत वन पर्व अध्याय 55 श्लोक 1-17" के अवतरणों में अंतर

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==त्रिपञ्चाशत्तम (53) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यानपर्व)==
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==पञ्चपञ्चाशत्तम (55) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: त्रिपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक1 9-32 का हिन्दी अनुवाद</div>
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: पञ्चपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
इतने ही में उनकी दृष्टि कुछ हंसोपर पड़ी, जो सुवर्णमय पंखों से विभूषित थे। वे उसी उपवन में विचर रह थे। राजा ने उनमें से एक हंस को पकड़ लिया। तब आकाशचारी हंस ने उस समय नल से कहा-राजन्! आप मुझे न मारें। मैं आपका प्रिय कार्य करूंगा। ‘निषधनरेश ! मैं दमयन्ती के निकट आपकी ऐसी प्रशंसा करूंगा, जिससे वह आपके सिवा दूसरे किसी पुरूष को मन में कभी स्थान न देगी’। हंस के ऐसा कहने पर राजा नल ने उसे छोड़ दिया। फिर वे हंस वहां से उड़कर विदर्भ देश में गये। तब विदर्भनगरी में जाकर वे सभी हंस दमयन्ती के निकट उतरे। दमयन्ती ने भी उन अद्भुत पक्षियों को देखा। सखियों से घिरी हुई राजकुमारी दमयन्ती उन अपूर्व पक्षियों को देखकर बहुत प्रसन्न हुई और तुरन्त ही उन्हें पकड़ने की चेष्टा करने लगी। तब हंस उस प्रमदावन में सब ओर विचरण करने लगे। उस समय सभी राजकन्याओं ने एक-एक करके उन सभी हंसों का पीछा किया। दमयन्ती जिस हंस के निकट दौड़ रही थी, उसने उससे मानवी वाणी में कहा- ‘राजकुमारी दमयन्ती ! सुनो, निषधदेश में नल नामसे प्रसिद्ध एक राजा हैं, जो अश्विनीकुमारों के समान सुन्दर हैं। मनुष्यांे में तो कोई उनके समान है ही नहीं। ‘सुन्दरि ! रूप दृष्टि से तो वे मानों स्वयं मूर्तिमान् कामदेव-से ही प्रतीत होते हैं। सुमध्यमे ! यदि तुम उनकी पत्नी हो जाओ तो तुम्हारा जन्म और यह मनोहर रूप सफल हो जाय। हमलोगों ने देवता, गन्धर्व, मनुष्य, नाग तथा राक्षसों को भी देखा है; परनतु तुम्हारी दृष्टि मंे अबतक उनके जैसा कोई भी पुरूष पहले कभी नहीं आया है। तुम रमणियों में रत्नस्वरूपा हो और नलपुरूषों के मुकुटमणि हैं। यदि किसी विशिष्ट नारी का विशिष्ट पुरूष के साथ संयोग हो तो वह विशेष गुणकारी होता है। राजन् हंसक इस प्रकार कहने पर दमयन्ती ने उससे कहा-‘पक्षिराज ! तुम नल के निकट भी ऐसी ही बात कहना’। राजन् ! विदर्भराजकुमारी दमयन्ती से ‘तथास्तु’ कहकर वह हंस पुनः निषधदेश में आया और उसने नल से सब बातें निवेदन कीं।
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नल का दूत बनकर राजमहल में जाना और दमयन्ती को देवताओं का संदेश सुनाना
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में हंसदमयन्तीसंवादविषयक तिरपनवां अध्याय पूरा हुआ।</div>
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बृहदश्व मुनि कहते हैं-भारत! देवताओं से उनकी सहायता करने की प्रतिज्ञा करके राजा नलने हाथ जोड़ पास जाकर पूछा-‘आपलोग कौन हैं ? और वह कौन व्यक्ति हैं, जिसके पास जाने के लिये आपने मुझे दूत बनाने की इच्छा की है तथा आपलोगों का वह कौन-सा कार्य है, जो मेरेद्वारा सम्पन्न होने योग्य है, यह ठीक-ठीक बताइये’। निषधराज नल के इस प्रकार पूछने पर इन्द्र ने कहा-‘भूपाल ! तुम हमें देवता समझो, हम दमयन्ती को प्राप्त करने के लिये यहां आये हैं। ‘मैं इन्द्र हूं, ये अग्निदेव हैं, ये जल के स्वामी वरूण और ये प्राणियों के शरीरों का नाश करनेवाले साक्षात् यमराज हैं। आप दमयन्ती के पास जाकर उसे हमारे आगमन की सूचना दे दीजिये और कहिये-महेन्द्र आदि लोकपाल तुम्हें देखने के लिये आ रहे हैं। ‘इन्द्र, अग्नि, वरूण, और यम-ये देवता तुम्हें प्राप्त करना चाहते हैं। तुम उनमें से किसी एक देवता को पति के रूप में चुन लो’। इन्द्र के ऐसा कहने पर नल हाथ जोड़कर बोले-‘देवताओं ! मेरा भी एकमात्र यही प्रयोजन है, जो आप लोगों का है; अतः एक ही प्रयोजन के लिये आये हुए मुझे दूत बनाकर न भेजिये,। ‘देवेश्वरों ! जिसने मन में किसी स्त्री को प्राप्त करने का संकल्प हो गया है, वह पुरूष उसी स्त्री को दूसरे के लिये कैसे छोड़ सकता है ? अतः आपलोग ऐसी बात कहने के लिये मुझे क्षमा करे’। देवताओं ने कहा-निषधनरेश ! तुम पहले हम लोगों से हमारा कार्य सिद्ध करने के लिये प्रतिज्ञा कर चुके हो, फिर तुम उस प्रतिज्ञा का पालन कैसे नहीं करोगे ? इसलिये निषधराज ! तुम शीघ्र जाओ ; देर न करो। बृहदश्व मुनि कहते हैं-राजन् ! उन देवताओं के ऐसा कहने पर निषधनरेश ने पुनः उनके पूछा-विदर्भराज के सभी भवन (पहरेदारों से ) सुरक्षित हैं। मैं उन में कैसे प्रवेश कर सकता हूं। तब इन्द्र ने पुनः उत्तर दिया-‘तुम वहां प्रवेश कर सकोगे।’ तत्पश्चात् राजा नल ‘तथास्तु’ कहकर दमयन्ती के महल में गये। वहां उन्होंने देखा, सखियों से घिरी हुई परम सुन्दरी विदर्भराजकुमारी दमयन्ती अपने सुन्दर शरीर और दिव्य कांति से अत्यन्त उöासित हो रही है। उसके अंग परम सुकुमार हैं, कटि के ऊपर का भाग अत्यन्त पतला है और नेत्र बड़े सुन्दर हैं एवं वह अपने तेज से चन्द्रमा की प्रभा को भी तिरस्कृत कर रही है। उस मनोहर मुसकानवाली राजकुमारी को देखते ही नल के हृदय में कामाग्नि प्रज्वलित हो उठी; तथापि अपनी प्रतिज्ञा को सत्य करने की इच्छा से उन्होंने उस कामदेवना को मन में ही रोक लिया। निषधराज को वहां आये देख अन्तःपुर की सारी सुन्दरी स्त्रियां चकित हो गयीं और उनके तेज से तिरस्कृत हो अपने आसनों से उठकर खड़ी हो गयीं। अत्यन्त प्रसन्न और आश्चर्यचकित होकर उन सबने राजा नल के सौन्दर्य की प्रशंसा की। उन्होंने उनसे वार्तालाप नहीं किया; परन्तु मन-ही-मन उनका बड़ा आदर किया। वे सोचने लगीं-‘अहो ! इनका रूप अद्भुत है, कांति बड़ी मनोहर है तथा इन महात्मा का धैर्य भी अनुठा है। न जाने ये हैं कौन ? सम्भव है देवता, यक्ष अथवा गन्धर्व हों ?
  
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत वन पर्व अध्याय 53 श्लोक 1-18|अगला=महाभारत महाभारत वन पर्व अध्याय 54 श्लोक 1-18}}
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{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत वन पर्व अध्याय 54 श्लोक 19-31|अगला=महाभारत महाभारत वन पर्व अध्याय 55 श्लोक 18-25}}
  
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

०६:०६, १४ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

पञ्चपञ्चाशत्तम (55) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

महाभारत: वन पर्व: पञ्चपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

नल का दूत बनकर राजमहल में जाना और दमयन्ती को देवताओं का संदेश सुनाना

बृहदश्व मुनि कहते हैं-भारत! देवताओं से उनकी सहायता करने की प्रतिज्ञा करके राजा नलने हाथ जोड़ पास जाकर पूछा-‘आपलोग कौन हैं ? और वह कौन व्यक्ति हैं, जिसके पास जाने के लिये आपने मुझे दूत बनाने की इच्छा की है तथा आपलोगों का वह कौन-सा कार्य है, जो मेरेद्वारा सम्पन्न होने योग्य है, यह ठीक-ठीक बताइये’। निषधराज नल के इस प्रकार पूछने पर इन्द्र ने कहा-‘भूपाल ! तुम हमें देवता समझो, हम दमयन्ती को प्राप्त करने के लिये यहां आये हैं। ‘मैं इन्द्र हूं, ये अग्निदेव हैं, ये जल के स्वामी वरूण और ये प्राणियों के शरीरों का नाश करनेवाले साक्षात् यमराज हैं। आप दमयन्ती के पास जाकर उसे हमारे आगमन की सूचना दे दीजिये और कहिये-महेन्द्र आदि लोकपाल तुम्हें देखने के लिये आ रहे हैं। ‘इन्द्र, अग्नि, वरूण, और यम-ये देवता तुम्हें प्राप्त करना चाहते हैं। तुम उनमें से किसी एक देवता को पति के रूप में चुन लो’। इन्द्र के ऐसा कहने पर नल हाथ जोड़कर बोले-‘देवताओं ! मेरा भी एकमात्र यही प्रयोजन है, जो आप लोगों का है; अतः एक ही प्रयोजन के लिये आये हुए मुझे दूत बनाकर न भेजिये,। ‘देवेश्वरों ! जिसने मन में किसी स्त्री को प्राप्त करने का संकल्प हो गया है, वह पुरूष उसी स्त्री को दूसरे के लिये कैसे छोड़ सकता है ? अतः आपलोग ऐसी बात कहने के लिये मुझे क्षमा करे’। देवताओं ने कहा-निषधनरेश ! तुम पहले हम लोगों से हमारा कार्य सिद्ध करने के लिये प्रतिज्ञा कर चुके हो, फिर तुम उस प्रतिज्ञा का पालन कैसे नहीं करोगे ? इसलिये निषधराज ! तुम शीघ्र जाओ ; देर न करो। बृहदश्व मुनि कहते हैं-राजन् ! उन देवताओं के ऐसा कहने पर निषधनरेश ने पुनः उनके पूछा-विदर्भराज के सभी भवन (पहरेदारों से ) सुरक्षित हैं। मैं उन में कैसे प्रवेश कर सकता हूं। तब इन्द्र ने पुनः उत्तर दिया-‘तुम वहां प्रवेश कर सकोगे।’ तत्पश्चात् राजा नल ‘तथास्तु’ कहकर दमयन्ती के महल में गये। वहां उन्होंने देखा, सखियों से घिरी हुई परम सुन्दरी विदर्भराजकुमारी दमयन्ती अपने सुन्दर शरीर और दिव्य कांति से अत्यन्त उöासित हो रही है। उसके अंग परम सुकुमार हैं, कटि के ऊपर का भाग अत्यन्त पतला है और नेत्र बड़े सुन्दर हैं एवं वह अपने तेज से चन्द्रमा की प्रभा को भी तिरस्कृत कर रही है। उस मनोहर मुसकानवाली राजकुमारी को देखते ही नल के हृदय में कामाग्नि प्रज्वलित हो उठी; तथापि अपनी प्रतिज्ञा को सत्य करने की इच्छा से उन्होंने उस कामदेवना को मन में ही रोक लिया। निषधराज को वहां आये देख अन्तःपुर की सारी सुन्दरी स्त्रियां चकित हो गयीं और उनके तेज से तिरस्कृत हो अपने आसनों से उठकर खड़ी हो गयीं। अत्यन्त प्रसन्न और आश्चर्यचकित होकर उन सबने राजा नल के सौन्दर्य की प्रशंसा की। उन्होंने उनसे वार्तालाप नहीं किया; परन्तु मन-ही-मन उनका बड़ा आदर किया। वे सोचने लगीं-‘अहो ! इनका रूप अद्भुत है, कांति बड़ी मनोहर है तथा इन महात्मा का धैर्य भी अनुठा है। न जाने ये हैं कौन ? सम्भव है देवता, यक्ष अथवा गन्धर्व हों ?


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