"महाभारत वन पर्व अध्याय 70 श्लोक 18-27": अवतरणों में अंतर

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०५:१९, १५ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

सप्ततितम (70) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

महाभारत: वन पर्व: सप्ततितम अध्याय: श्लोक 18-27 का हिन्दी अनुवाद

इतने ही में विप्रवर पर्णाद जब विश्राम कर चुके, तब विदर्भराजकुमारी दमयन्ती ने बहुत धन देकर उनका सत्कार किया और यह भी कहा-‘यमराज नल के यहां पधारने पर मैं आपकों और भी धन दूंगी। ‘विप्रवर ! आपने मेरा बहुत बड़ा उपकार किया, जो दूसरा नहीं कर सकता; क्योंकि अब मैं अपने स्वामी से शीघ्र ही मिल सकूंगी’। दमयन्ती के ऐसा कहने पर अत्यन्त उदार हृदयवाले पर्णाद अपने परम मंगलमय आशीर्वादों द्वारा उसे आश्वासन दे कृतार्थ हो अपने घर चले गये। युधिष्ठिर ! तदनन्तर दमयन्ती ने सुदेव ब्राह्मण को बुलाकर अपनी माता के समीप दुःख शोक से पीडि़त होकर कहा-‘सुदेवजी ! आप इच्छानुसार चलनेवाले द्रुतग्रामी पक्षी की भांति शीघ्रतापूर्वक अयोध्या नगरी में जाकर वहां के निवासी राजा ऋतुपर्ण से कहिये- ‘भीमकुमारी दमयन्ती पुनः स्वयंवर करेगी। वहां बहुत से राजा राजकुमार सब ओर से जा रहे हैं। ‘उसके लिये समय नियत हो चुका है। कल ही स्वयंवर होगा। शत्रुदमन ! यदि आपका वहां पहुंचना सम्भव हो तो शीघ्र जाइये। ‘कल सूर्योदय होने के बाद वह दूसरे पति का वरण कर लेगी; क्योंकि वीरनल जीवित हैं या नहीं, इसका कुछ पता नहीं लगता है’। महाराज ! दमयन्ती के इस प्रकार बताने पर सुदेव ब्राह्मण ने राजा ऋतुपर्ण के पास जाकर वही बात कही।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में दमयन्ती के पुनः स्वयंवर की चर्चा से सम्बन्ध रखनेवाला सत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।

 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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