"महाभारत आदि पर्व अध्याय 145 श्लोक 20-31": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
('==पञ्चचत्‍वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: आदि पर्व (जतुगृ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

११:४०, १५ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

पञ्चचत्‍वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: आदि पर्व (जतुगृहपर्व))

महाभारत: आदि पर्व: >पञ्चचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 20-31 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन बोले- भैया ! यदि आप यह मानते हो कि इस घर का निर्माण अग्नि को उद्दीप्त करने वाली वस्‍तुओं से हुआ है तो हम लोग जहां पहले रहते थे, कुशलपूर्वक पुन: उसी घर में क्‍यों न लौट चलें? । युधिष्ठिर बोले- भाई ! हम लोगों को यहां अपनी ब्राह्य चेष्टाओं से मन की बात प्रकट न करते हुए यहां से भाग छूटने के लिये मनोअनुकूल निश्‍चित मार्ग का पता लगाते हुए पूरी सावधानी के साथ यहीं रहना चाहिये । मुझे ऐसा करना ही अच्‍छा लगता है । यदि पुरोचन हमारी किसी भी चेष्टा से हमारे भीतर ही मनोभाव को ताड़ लेगा तो वह शीघ्रतापूर्वक अपना काम बनाने के लिये उद्यत हो हमें किसी न किसी हेतु से भी जला सकता है । यह मूढ पुरोचन निन्‍दा अथवा अधर्म से नहीं डरता एवं दुर्योधन के वश में होकर उसकी आज्ञा के अनुसार आचरण करता है । यदि यहां हमारे जल जाने पर पितामह भीष्‍म कौरवों पर क्रोध भी करें तो वह अनावश्‍यक है; क्‍योंकि फि‍र किस प्रयोजन की सिद्धि के लिये वे कौरवों को कुपित करेंगे । अथवा संभव है कि यहां हम लोगों के जल जाने पर हमारे पितामह भीष्‍म तथा कुरुकुल के दूसरे श्रेष्ठ पुरुष धर्म समझकर ही उन आततायियों पर क्रोध करें। (परंतु वह क्रोध हमारे किस काम का होगा?) । यदि हम जलने के भय से डरकर भाग चलें तो भी राज्‍य लोभी दुर्योधन हम सब को अपने गुप्तचरों द्वारा मरवा सकता है । इस समय वह अधिकार पूर्ण पद पर प्रतिष्ठित है और हम उससे वंचित हैं। वह सहायकों के साथ है और हम असहाय हैं। उसके पास बहुत बड़ा खजाना है और हमारे पास उसका सर्वथा अभाव है। अत: निश्चय ही वह अनेक प्रकार के उपायों द्वारा हमारी हत्‍या करा सकता है । इसलिये इस पापात्‍मा पुरोचन तथा पापी दुर्योधन को भी धोखे में रखते हुए हमें यहीं कहीं किसी गुप्त स्‍थान में निवास करना चाहिये । हम सब मृगया में रत रहकर यहां की भूमि पर सब ओर विचरें, इससे भाग निकलने के लिये हमें बहुत से मार्ग ज्ञात हो जायेंगे । इसके सिवा आज से ही हम जमीन में एक सुरंग तैयार करें, जो ऊपर से अच्‍छी तरह ढ़की हो। वहां हमारी सांस तक छिपी रहेगी (फि‍र हमारे कार्यों की को बात ही क्‍या है)। उस सुरंग में घुस जाने पर आग हमें नहीं जला सकेगी । हमें आलस्‍य छोड़कर इस प्रकार कार्य करना चाहिये, जिससे यहां रहते हुए भी हमारे सम्‍बन्‍ध में पुरोचन को कुछ भी ज्ञात न हो सके और किसी पुरवासी को भी हमारी कानों-कान खवर न हो ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।