"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 37 श्लोक 16-30": अवतरणों में अंतर
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==सप्तत्रिंश (37) | ==सप्तत्रिंश (37) अध्याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)== | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योग पर्व: सप्तत्रिंश | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योग पर्व: सप्तत्रिंश अध्याय: श्लोक 16-30 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
जो धर्म का आश्रय लेकर तथा स्वामी को प्रिय लगेगा या अप्रिय-इसका विचार छोड़कर अप्रिय होने पर भी हित की बात कहता है, उसी से राजा को सच्ची सहायता मिलती है। कुल की रक्षा के लिये एक मनुष्य का, ग्राम की रक्षा के लिये कुल का, देश की रक्षा के लिये गांव का और आत्मा के कल्याण के लिये सारी पृथ्वी का त्याग कर देना चाहिये। आपत्ति के लिये धन की रक्षा करे, धन के द्वारा भी स्त्री की रक्षा करे और स्त्री एवं धन दोनों के द्वारा सदा अपनी रक्षा करे। पूर्वकाल में जूआ खेलना मनुष्यों में वैर डालने का कारण देखा गया है; अत: बुद्धिमान् मनुष्य हंसी के लिये भी जूआ न खेले। प्रतीपनंदन! विचित्रवीर्यकुमार ! राजन्! मैंनेजूए का खेल आरम्भ होते समय भी कहा था कि यह ठीक नहीं है, किंतु रोगी को जैसे दवा और पथ्य अच्छे नहीं लगते, उसी तरह मेरी यह बात भी आपको अच्छी नहीं लगी। नरेन्द्र! आप कौओ के समान अपने पुत्रों के द्वारा विचित्र पंखवाले मोरों के सदृश पाण्डवों को पराजित करने का प्रयत्न कर रहे हैं; सिंहों को छोड़कर सियारों की रक्षा कर रहे है; समय आनेपर आपको इसके लिये पश्र्चाताप करना पड़ेगा। <br /> | जो धर्म का आश्रय लेकर तथा स्वामी को प्रिय लगेगा या अप्रिय-इसका विचार छोड़कर अप्रिय होने पर भी हित की बात कहता है, उसी से राजा को सच्ची सहायता मिलती है। कुल की रक्षा के लिये एक मनुष्य का, ग्राम की रक्षा के लिये कुल का, देश की रक्षा के लिये गांव का और आत्मा के कल्याण के लिये सारी पृथ्वी का त्याग कर देना चाहिये। आपत्ति के लिये धन की रक्षा करे, धन के द्वारा भी स्त्री की रक्षा करे और स्त्री एवं धन दोनों के द्वारा सदा अपनी रक्षा करे। पूर्वकाल में जूआ खेलना मनुष्यों में वैर डालने का कारण देखा गया है; अत: बुद्धिमान् मनुष्य हंसी के लिये भी जूआ न खेले। प्रतीपनंदन! विचित्रवीर्यकुमार ! राजन्! मैंनेजूए का खेल आरम्भ होते समय भी कहा था कि यह ठीक नहीं है, किंतु रोगी को जैसे दवा और पथ्य अच्छे नहीं लगते, उसी तरह मेरी यह बात भी आपको अच्छी नहीं लगी। नरेन्द्र! आप कौओ के समान अपने पुत्रों के द्वारा विचित्र पंखवाले मोरों के सदृश पाण्डवों को पराजित करने का प्रयत्न कर रहे हैं; सिंहों को छोड़कर सियारों की रक्षा कर रहे है; समय आनेपर आपको इसके लिये पश्र्चाताप करना पड़ेगा। <br /> | ||
तात! जो स्वामी सदा हितसाधन में लगे रहनेवाले अपने भक्त सेवकपर कभी क्रोध नहीं करता, उसपर भृत्यगण विश्र्वास करते हैं और उसे आपत्ति के समय भी नहीं छोड़ते। सेवकों की जीविका बंद करके दूसरों के राज्य और धन के अपहरण का प्रयत्न नहीं करना चाहिये; क्योंकि अपनी जीविका छिन जाने से भोगों से वञ्चित होकर पहले के प्रेमी मंत्री भी उस समय विरोधी बन जाते हैं और राजा का परित्याग कर देते हैं। पहले कर्तव्य एवं आय-व्यय और उचित वेतन आदि का निश्र्चय करके फिर सुयोग्य सहायकों का संग्रह करे,क्योंकि कठिनसे कठिन कार्य भी सहायकों द्वारा साध्य होते हैं। जो सेवक स्वामी के अभिप्राय को समझकर आलस्यरहित हो समस्त कार्यों को पूरा करता है, जो हित की बात कहने-वाला, स्वामिभक्त, सज्जन और राजा की शक्ति को जाननेवाला है, उसे अपने समान समझकर उस पर कृपा करना चाहिये। जो सेवक स्वामी के आज्ञा देने पर उनकी बात का आदर नहीं करता,किसीकाम में लगाये जाने पर अस्वीकार कर देता है, अपनी बुद्धिपर गर्व करने ओर प्रतिकुल बोलनेवाले उस भ्रृत्य को शीघ्र ही त्याग देना चाहिये। अहंकाररहित, कायरताशून्य, शीघ्र काम पूरा करनेवाला, दयालु, शुद्धहृदय, दूसरों के बहकावें में न आनेवाला, नीरोग और उदार वचनवाला-इन आठ गुणों से युक्त मनुष्य को ‘दूत’ बनाने योग्य बताया गया है। सावधान मनुष्य विश्र्वास करके असमय में कभी किसी दूसरे के घर न जाय,रात में छिपरक चौराहेपर न खड़ा हो ओर राजा जिस स्त्री को चाहता हो, उसे प्राप्त करने का यत्न न करे । दुष्ट सहायकों वाला राजा जब बहुत लोगों के साथ मन्त्रणा-समिति में बैठकर सलाह ले रहा हो, उस समय उस-की बात का खण्डन न करे; ‘मैं तुमपर विश्र्वास नहीं करता’ ऐसा भी न कहे, अपितु कोई युक्तिसंगत बहाना बनाकर वहां से हट जाय। अधिक दयालु राजा, व्याभिचारिणी स्त्री, राजकर्मचारी पुत्र, छोटै बच्चोंवाली विधवा, सैनिक और जिसका अधिकार छिन लिया गया हो, वह पुरूष-इन सबके साथ लेने-देन का व्यावहार न करे। | तात! जो स्वामी सदा हितसाधन में लगे रहनेवाले अपने भक्त सेवकपर कभी क्रोध नहीं करता, उसपर भृत्यगण विश्र्वास करते हैं और उसे आपत्ति के समय भी नहीं छोड़ते। सेवकों की जीविका बंद करके दूसरों के राज्य और धन के अपहरण का प्रयत्न नहीं करना चाहिये; क्योंकि अपनी जीविका छिन जाने से भोगों से वञ्चित होकर पहले के प्रेमी मंत्री भी उस समय विरोधी बन जाते हैं और राजा का परित्याग कर देते हैं। पहले कर्तव्य एवं आय-व्यय और उचित वेतन आदि का निश्र्चय करके फिर सुयोग्य सहायकों का संग्रह करे,क्योंकि कठिनसे कठिन कार्य भी सहायकों द्वारा साध्य होते हैं। जो सेवक स्वामी के अभिप्राय को समझकर आलस्यरहित हो समस्त कार्यों को पूरा करता है, जो हित की बात कहने-वाला, स्वामिभक्त, सज्जन और राजा की शक्ति को जाननेवाला है, उसे अपने समान समझकर उस पर कृपा करना चाहिये। जो सेवक स्वामी के आज्ञा देने पर उनकी बात का आदर नहीं करता,किसीकाम में लगाये जाने पर अस्वीकार कर देता है, अपनी बुद्धिपर गर्व करने ओर प्रतिकुल बोलनेवाले उस भ्रृत्य को शीघ्र ही त्याग देना चाहिये। अहंकाररहित, कायरताशून्य, शीघ्र काम पूरा करनेवाला, दयालु, शुद्धहृदय, दूसरों के बहकावें में न आनेवाला, नीरोग और उदार वचनवाला-इन आठ गुणों से युक्त मनुष्य को ‘दूत’ बनाने योग्य बताया गया है। सावधान मनुष्य विश्र्वास करके असमय में कभी किसी दूसरे के घर न जाय,रात में छिपरक चौराहेपर न खड़ा हो ओर राजा जिस स्त्री को चाहता हो, उसे प्राप्त करने का यत्न न करे । दुष्ट सहायकों वाला राजा जब बहुत लोगों के साथ मन्त्रणा-समिति में बैठकर सलाह ले रहा हो, उस समय उस-की बात का खण्डन न करे; ‘मैं तुमपर विश्र्वास नहीं करता’ ऐसा भी न कहे, अपितु कोई युक्तिसंगत बहाना बनाकर वहां से हट जाय। अधिक दयालु राजा, व्याभिचारिणी स्त्री, राजकर्मचारी पुत्र, छोटै बच्चोंवाली विधवा, सैनिक और जिसका अधिकार छिन लिया गया हो, वह पुरूष-इन सबके साथ लेने-देन का व्यावहार न करे। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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०७:५२, १७ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण
सप्तत्रिंश (37) अध्याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)
जो धर्म का आश्रय लेकर तथा स्वामी को प्रिय लगेगा या अप्रिय-इसका विचार छोड़कर अप्रिय होने पर भी हित की बात कहता है, उसी से राजा को सच्ची सहायता मिलती है। कुल की रक्षा के लिये एक मनुष्य का, ग्राम की रक्षा के लिये कुल का, देश की रक्षा के लिये गांव का और आत्मा के कल्याण के लिये सारी पृथ्वी का त्याग कर देना चाहिये। आपत्ति के लिये धन की रक्षा करे, धन के द्वारा भी स्त्री की रक्षा करे और स्त्री एवं धन दोनों के द्वारा सदा अपनी रक्षा करे। पूर्वकाल में जूआ खेलना मनुष्यों में वैर डालने का कारण देखा गया है; अत: बुद्धिमान् मनुष्य हंसी के लिये भी जूआ न खेले। प्रतीपनंदन! विचित्रवीर्यकुमार ! राजन्! मैंनेजूए का खेल आरम्भ होते समय भी कहा था कि यह ठीक नहीं है, किंतु रोगी को जैसे दवा और पथ्य अच्छे नहीं लगते, उसी तरह मेरी यह बात भी आपको अच्छी नहीं लगी। नरेन्द्र! आप कौओ के समान अपने पुत्रों के द्वारा विचित्र पंखवाले मोरों के सदृश पाण्डवों को पराजित करने का प्रयत्न कर रहे हैं; सिंहों को छोड़कर सियारों की रक्षा कर रहे है; समय आनेपर आपको इसके लिये पश्र्चाताप करना पड़ेगा।
तात! जो स्वामी सदा हितसाधन में लगे रहनेवाले अपने भक्त सेवकपर कभी क्रोध नहीं करता, उसपर भृत्यगण विश्र्वास करते हैं और उसे आपत्ति के समय भी नहीं छोड़ते। सेवकों की जीविका बंद करके दूसरों के राज्य और धन के अपहरण का प्रयत्न नहीं करना चाहिये; क्योंकि अपनी जीविका छिन जाने से भोगों से वञ्चित होकर पहले के प्रेमी मंत्री भी उस समय विरोधी बन जाते हैं और राजा का परित्याग कर देते हैं। पहले कर्तव्य एवं आय-व्यय और उचित वेतन आदि का निश्र्चय करके फिर सुयोग्य सहायकों का संग्रह करे,क्योंकि कठिनसे कठिन कार्य भी सहायकों द्वारा साध्य होते हैं। जो सेवक स्वामी के अभिप्राय को समझकर आलस्यरहित हो समस्त कार्यों को पूरा करता है, जो हित की बात कहने-वाला, स्वामिभक्त, सज्जन और राजा की शक्ति को जाननेवाला है, उसे अपने समान समझकर उस पर कृपा करना चाहिये। जो सेवक स्वामी के आज्ञा देने पर उनकी बात का आदर नहीं करता,किसीकाम में लगाये जाने पर अस्वीकार कर देता है, अपनी बुद्धिपर गर्व करने ओर प्रतिकुल बोलनेवाले उस भ्रृत्य को शीघ्र ही त्याग देना चाहिये। अहंकाररहित, कायरताशून्य, शीघ्र काम पूरा करनेवाला, दयालु, शुद्धहृदय, दूसरों के बहकावें में न आनेवाला, नीरोग और उदार वचनवाला-इन आठ गुणों से युक्त मनुष्य को ‘दूत’ बनाने योग्य बताया गया है। सावधान मनुष्य विश्र्वास करके असमय में कभी किसी दूसरे के घर न जाय,रात में छिपरक चौराहेपर न खड़ा हो ओर राजा जिस स्त्री को चाहता हो, उसे प्राप्त करने का यत्न न करे । दुष्ट सहायकों वाला राजा जब बहुत लोगों के साथ मन्त्रणा-समिति में बैठकर सलाह ले रहा हो, उस समय उस-की बात का खण्डन न करे; ‘मैं तुमपर विश्र्वास नहीं करता’ ऐसा भी न कहे, अपितु कोई युक्तिसंगत बहाना बनाकर वहां से हट जाय। अधिक दयालु राजा, व्याभिचारिणी स्त्री, राजकर्मचारी पुत्र, छोटै बच्चोंवाली विधवा, सैनिक और जिसका अधिकार छिन लिया गया हो, वह पुरूष-इन सबके साथ लेने-देन का व्यावहार न करे।
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