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महाभारतमाहात्म्य 3

महाभारतमाहात्म्य 3 का हिन्दी अनुवाद

अठारह पुराणों की श्रवण से जो फल होता है, वही फल महाभारत के श्रवण से वैष्‍णवों को प्राप्‍त होता है- इसमें सन्‍देह नहीं है । स्‍त्री और पुरूष महाभारत के श्रवण से वैष्‍णव पद का प्राप्‍त कर सकते है। पुत्र की इच्‍छा वाली स्त्रियों को तो भगवान विष्‍णु की कीर्तिरूप महाभारत अवश्‍य सुनना चाहिये। धर्म की कामना वाली मनुष्‍य को यह सम्‍पूर्ण इतिहास सुनना चाहिये,इसे सिद्धि की प्राप्ति होती है। जो मनुष्‍य श्रद्धा युक्‍त और पुण्‍य स्‍वभाव होकर इस अद्भुत इतिहास का श्रवण करता है या कराता है, वह राजसूय और अश्‍वमेध यज्ञका फल प्राप्‍त करता है। शक्तिशाली श्रीकृष्‍ण द्वैपायन व्‍यासदेव पवित्रता के साथ वर्ष लगातार लगे रहकर इसकी प्रारम्‍भ से रचना करके पूर्ण मनोरथ हुए थे। महर्षि व्‍यास ने तप और नियम धारण करके इसकी रचना की थी। अवएव ब्राह्मणो को भी नियमयुक्‍त होकर ही इसका श्रवण-कीर्तन करना चाहिये। इस इतिहास के सुनने से राजा पृथ्‍वी पर विजय प्राप्‍त करता तथा शत्रुओं को पराजित करता है। उसे श्रेष्‍ठ पुत्र की प्राप्ति और महान कल्‍याण होता है। यह इतिहास राजरानियों को अपने युवराज के साथ बार-बार सुनना चाहिये।इससे वीर पुत्र का जन्‍म होता है अथवा राज्‍य भागिनी कन्‍या होती है। जो विद्वान पुरूष सदा प्रत्‍येक पर्वपर इसका श्रवण कराता है, वह पाप रहित और स्‍वर्ग विजयी होकर ब्रह्म को प्राप्‍त होता है। जो पुरूष श्राद्व के अवसर पर ब्राह्मणों को इसका एक पाद भी श्रवण कराता है, उसके पितृगण अक्षय अन्‍न पानको प्राप्‍त करते हैं । हे शौनक ! जो मनुष्‍य व्‍यास जी के द्वारा कथित महान अर्थ मय और वेद तुल्‍य इस पवित्र इतिहास का श्रेष्‍ठ ब्राह्मण के द्वारा श्रवण करता है, वह इस लोक में सब मनोरथों को और कीर्ति को प्राप्‍त करता है और अन्‍त में परम सिद्वि मोक्ष को प्राप्‍त होता है, इसमें संदेह नहीं है। जो मनुष्‍य श्राद्ध के अन्‍त में इसका कम-से-कम एक पाद भी ब्राह्मणों सुनाता है, उसका श्राद्ध उसका श्राद्ध उसके पितृगण को अक्षय होकर प्राप्‍त होता है। महाभारत परम पुण्‍यदायक है, इसमें विविध क‍थाएं है, देवता भी महाभारत का सेवन करते है; क्‍योंकि महाभारत से परम-पद की प्राप्ति होती है। हे भरत श्रेष्‍ठ ! मैं तुमसे सत्‍य कहता हूं कि महाभारत सभी शास्‍त्रों में उत्‍तम है, और उसके श्रवण कीर्तन से मोक्ष की प्राप्ति होती है- यह मैं तुमसे यथार्थ कहता हूं । हे महाराज ! मैंने जो कुछ कहा है, वह ऐसा ही है; यहां कोई विचार वितर्क नहीं करना है। मेरे गुरू ने भी मुझसे यही कहा है कि महाभारत पर मनुष्‍य को श्रद्धावान होना चाहिये। हे भरतर्षभ ! वेद, रामायण और पवित्र महाभारत-इन सब में आदि, मध्‍य और अन्‍त में सर्वत्र श्री हरि का ही कीर्तन किया गया है । अत: हे नृपश्रेष्‍ठ ! उत्‍तम श्रेय-मोक्ष की इच्‍छा रखने वाले प्रत्‍येक पुरूष को महाभारत का श्रवण और पारायण करने में सदा प्रयत्‍नवान रहना चाहिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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