"महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 70 श्लोक 49-58": अवतरणों में अंतर
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०५:४२, १८ सितम्बर २०१५ का अवतरण
सप्ततितम (70) अध्याय: कर्ण पर्व
राजन्। आपको तो यह विदित ही है कि गाण्डीवधारी सत्यप्रतिज्ञ अर्जुन ने गाण्डीव धनुष के विषय में कैसी प्रतिज्ञा कर रखी है उनकी वह प्रतिज्ञा प्रसिद्ध है । ‘जो अर्जुन से यह कह दे कि ‘तुम्हें अपना गाण्डीव धनुष दूसरे को दे देना चाहिये’ वह मनुष्य इस जगत् में उनका वध्य है। आपने आज अर्जुन से ऐसी ही बात कह दी है । ‘अत: भूपाल । अर्जुन ने अपनी उस सच्ची प्रतिज्ञा की रक्षा करते हुए मेरी आज्ञा से आपका यह अपमान किया; क्योंकि गुरुजनों का अपमान ही उनका वध कहा जाता है । ‘इसलिये महाबाहो। राजन्। मेरे और अर्जुन दोनों के सत्य की रक्षा के लिये किये गये इस अपराध को आप क्षमा करें । ‘महाराज। हम दोनों आपकी शरण में आये हैं और मैं चरणों में गिरकर आप से क्षमा-याचना करता हूं; आप मेरे अपराध को क्षमा करें । ‘आज पृथ्वी पापी राधापुत्र कर्ण के रक्त का पान करेगी। मैं आप से सच्ची प्रतिज्ञा करके कहता हूं, समझ लीजिये कि अब सूतपुत्र कर्ण मार दिया गया। आप जिसका वध चाहते हैं, उसका जीवन समाप्त हो गया’ । भगवान् श्रीकृष्ण का यह वचन सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने चरणों में पड़े हुए ह्रषीकेश को वेगपूर्वक् उठाकर फिर दोनों हाथ जोड़कर यह बात कही । ‘गोविन्द। आप जैसा कहते हैं, वह ठीक है। वास्तव में मुझ से यह नियम का उल्लघंन हो गया है। माधव। आपने अनुनय द्वारा मुझे संतुष्ट कर दिया और संकट के समुद्र में डूबने से बचा लिया। अच्युत। आज आपके द्वारा हमलोग घोर विपति से बच गये ।
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