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अलक्ष्मी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 253 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. कैलासचंद्र शर्मा |
अलक्ष्मी कालकूट के बाद समुद्रमंथन के समय इसका प्रादुर्भाव हुआ। यह वृद्धा थी और इसके केश पीले, आंखें लाल तथा मुख काला था देवताओं ने इसे वरदान दिया कि जिस घर में कलह हो, वहीं तुम रहो। हड्डी, कोयला, केश तथा भूसी में वास करो। कठोर असत्यवादी, बिना हाथ मुँह धोए और संध्या समय भोजन करने वालों तथा अभक्ष्य भक्षियों को तुम दरिद्र बना दो। लक्ष्मी से पूर्व इसका आविर्भाव हुआ था अत: विष्णु से लक्ष्मी का विवाह होने के पूर्व इसका ज्येष्ठा का विवाह उद्दालक ऋषि से करना पड़ा (पद्मपुराण, ब्रह्मखंड)। लिंगपुराण (2-6) के अनुसार अलक्षमी का विवाह दु:सह नामक ब्राह्मण से हुआ और उसके पाताल चले जाने के बाद यहा अकेली रह गई। सनत्सुजात संहितांतर्गत कार्तिक माहात्म्य में लिखा है कि पति द्वारा परित्यक्त होने पर यह पीपल वृक्ष के नीचे रहने लगी। वहीं हर शनिवार को लक्ष्मी इससे मिलने आती हैं। अत: शनिवार को पीपल लक्ष्मीप्रद तथा अन्य दिन स्पर्श करने पर दारिद्रय देने वाला माना जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ