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०५:४८, ३ जून २०१८ के समय का अवतरण
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अलहंब्रा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 256 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. अवनींद्रकुमार विद्यालंकार |
अलहंब्रा दुर्ग और राजप्रासाद मूरी ग्रानडा (स्पेन) में पश्चिमी इस्लामी स्थापत्य और वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना। शहर की सीमा पर डारौ नदी के किनारे पहाड़ी पर यह राजभवन बना हुआ है। इस 'कालअत अल हमरा' अर्थात् लाल किले को यूसफ़ (1354) और मोहम्मद पंचम (1334-1391) ने बनवाया था। अब इस समय पुराने दुर्ग की भारी दीवारें और बुर्जे ही बच रही हैं। इसके परे 'अलहंब्रा आल्ता' (दरबारियों का निवासस्थान) है। दीवारें लाल ईटों की बनी हैं और उनपर ऊँची ऊँची बुर्जियाँ हैं। महल के चारों ओर परकोटा दौड़ता है। चार्ल्स पंचम ने अपना राजभवन बनाने के विचार से मूर नरेशों का राजमहल नष्ट कर दिया था, किंतु उसका राजभवन कभी बन न सका। इसकी सजावट कें गाढ़े और भड़कीले रंगों का उपयोग किया गया है। इसक सौंदर्य विशेषकर उस समय प्रकट होता है जब सूर्यरश्मियां मूरी स्तंभों और मेहराबों से छन छनकर दीवारों पर पड़ती हैं।
इसके आकर्षण के केंद्र दो आयताकार आंगन हैं। यसुफ़ का बनवाया हुआ 134'74 फुट बड़ा अलबोको मत्स्यपूर्ण तड़ाग है। इसके एक ओर एँबाज़ादोरेज़ (दूतभवन) है जहाँ 30 वर्ग फुट ऊँचा सिंहासन बना हुआ है। इसका गुंबज 50 फुट ऊँचा है। दूसरा आंगन केसरी गृह के नाम से प्रसिद्ध है। इसे मोहम्म्द पंचम ने बनवाया था। इसमें एक 15´66 फुट ऊँचा फव्वारा सिंह के मुख से बहता रहता है। यह आंगन के मध्य बारह श्वेत सिंहों के सहारे टिका हुआ अस्वस्तम का पात्र है। इनकी दीवारों पर नीचे से पाँच फुट ऊँचे तक पीले रंग की विभिझ प्रकार की टाइलें लगी हुई हैं। फर्श संगमरमर का है। इसके एक ओर स्थित 'अमेंसेर्राजेस' नामक एक वर्गाकार कमरे की ऊँची गुंबज नीली, लाल, सुनहरी और भूरे रंग की है। इसके सामने 'साला-लास-रोस हरमानस' (दो बहनों का हाल) है। इसमें भी सुंदर फव्वारा और गुंबज है।
1812 में नेपोलियन के समय जब फ्रांस की सेना ने स्पेन पर आक्रमण किया, इसकी बुर्जे उड़ा दी गई। 1821 के भूकंप से भी इसको भारी हानि पहुँची। 1828 में इसके पुननिर्माण का कार्य प्रांरभ हुआ और इटली के प्रसिद्ध शिल्पी कानट्रेरास, उसके पुत्र राफेल पौत्रे और प्रपौत्र मरिआए ने तीन पीढ़ियों में पूरा किया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ