"डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन": अवतरणों में अंतर
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डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन भारत के तृतीय राष्ट्रपति। आपका जन्म | डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन भारत के तृतीय राष्ट्रपति। आपका जन्म 8 फरवरी, 1867 को हैदराबद में एक अफ़गान परिवार में हुआ था। आपके पूर्वत अठारहवीं शताब्दी के आरंभ में उत्तरप्रदेश के फर्रखाबाद जिले के एक कस्बे कायमगंज में आ बसे थे। बाद में आपके पिता वकील फिदाहुसेन सपरिवार हैदराबाद चले गए। जब जाकिरहुसेन मात्र नौ वर्ष के थे, इनके पिता का संरक्षण उनसे सदा के लिए छिन गया। उनका परिवार कायमगंज लौट आया। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इटावा के इस्लामिया हाई स्कूल में हुई। इन्होंने अलीगढ़ के एम. ए. ओ. कालेज से अर्थशास्त्र की स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में ही डाक्टरेट किया। अध्ययनकाल में आपकी गणना सदैव सुयोग्य एवं शिष्ट छात्रों में की जाती थी। अपनी साधारण वेशभूषा, सरल स्वभाव एवं सात्विक आचरण के कारण ये विद्यार्थी जीवन में 'मुर्शिद' (आध्यात्मिक नेता) के नाम से विख्यात थे। | ||
==शिक्षा== | ==शिक्षा== | ||
सन् | सन् 1920 में जब जाकिरहुसेन एम. ए. ओ. कालेज में एम. ए. के छात्र थे, महात्मा गांधी अली बंधुओं के साथ अलीगढ़ आए। उन्होंने कालेज के छात्रों एवं अध्यापकों के समक्ष देशभक्ति की भावनाओं से ओतप्रोत ओजस्वी भाषण किया। गांधी जी ने अंग्रेज सरकार द्वारा संचालित अथवा नियंत्रित शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार कर राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने के लिए छात्रों एवं अध्यापकों का आह्वान किया। गांधी जी के भाषण का जाकिरहुसेन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। इन्होंने कालेज त्याग दिया और कतिपय छात्रों एवं अध्यापकों के सहयोग से एक राष्ट्रीय शिक्षणसंस्थान की स्थापना की जो बाद में 'जामिया मिल्लिया इस्लामिया' के नाम से विख्यात हुआ। इन्होंने इस संस्था का पोषण प्राय: 40 वर्षों तक किया। | ||
==अध्यापन== | ==अध्यापन== | ||
डाक्टर हुसेन ने अपना जीवन एक शिक्षक के रूप में आरंभ किया। दो वर्ष पश्चात् ये उच्च अध्ययन हेतु बर्लिन चले गए। वहाँ से अर्थशास्त्र में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त कर लौटने के पश्चात् ये जामिया मिल्लिया के वाइस चांसलर बनाए गए। | डाक्टर हुसेन ने अपना जीवन एक शिक्षक के रूप में आरंभ किया। दो वर्ष पश्चात् ये उच्च अध्ययन हेतु बर्लिन चले गए। वहाँ से अर्थशास्त्र में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त कर लौटने के पश्चात् ये जामिया मिल्लिया के वाइस चांसलर बनाए गए। 29 वर्ष की अल्पायु में इतने गौरवपूर्ण पद पर प्रतिष्ठित होना इनके व्यक्तित्व की महनीयता का द्योतक है। उस्मानिया विश्वविद्यालय के 600 रुपए मासिक के आमंत्रण को अस्वीकार कर पावन कर्तव्य की भावना से प्रेरित होकर इन्होंने जामिया मिल्लिया में केवल 75 रुपए मासिक वेतन पर अध्यापन किया। विषम आर्थिक स्थितियों में भी ये निराश नहीं हुए। ये संस्था की अस्तित्वरक्षा के लिए सतत संघर्ष करते रहे। जामियामिल्लिया इनके त्यागमय जीवन की महान् पूँजी और इनकी 22 वर्षों की मौन साधना और घोर तपस्या का ज्वलंत उदाहरण है। ये देश की अनेक शिक्षणसमितियों से संबद्ध रहे। डा. हुसेन महात्मा गांधी द्वारा विकसित की गई बुनियादी शिक्षा अभियान के सूत्रधार थे। इन्होंने शिक्षा के सुधार और मूल्यांकन से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की। ये हिंदुस्तानी तालीमी संघ, सेवाग्राम, विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग आदि अनेक शिक्षण समितियों के सदस्य तथा सभापति रहे। सन् 1937 में जब प्रांतों को कुछ सीमा तक स्वायत्तता मिली और गाँधी जी ने जनप्रिय प्रांतीय सरकारों से बुनियादी शिक्षा के प्रसार पर बल देने का अनुरोध किया तब गांधी जी के आमंत्रण पर डा. जाकिरहुसेन ने बुनियादी शिक्षासंबंधी राष्ट्रीय समिति की अध्यक्षता स्वीकार की। विभाजन के पश्चात् तत्कालीन शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के अनुरोध पर इन्होंन अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर का कार्य सँभाला। उस समय यह विश्वविद्यालय पृथक्तावादी मुसलमानों के षड््यत्रं का केंद्र था। ऐसी स्थिति में इन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन का गंभीर उत्तरदायित्व ग्रहण किया और आठ वर्षों तक कुशलतापूर्वक उसका निर्वाह किया। इन्होंने कई बार यूनेस्को में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। | ||
==राजनैतिक पद== | ==राजनैतिक पद== | ||
डाक्टर जाकिर हुसेन सन् | डाक्टर जाकिर हुसेन सन् 1952 में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किए गए। विद्वत्ता एवं राष्ट्रीय सेवाओं के लिए इन्हें सन् 1954 में 'पद्यविभूषण' की उपाधि दी गई। सन् 1957 में ये बिहार के राज्यपाल नियुक्त हुए। सन् 1962 में भारत के उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए। राज्यसभा के अध्यक्ष पद पर इन्होंने जिस निष्पक्षता और योग्यता का परिचय दिया वह इनके उत्तराधिकारियों के लिए अनुकरणीय थी। भारत के सर्वोच्च आदर्शों के ताने बाने में बुने इनके बहुमुखी व्यक्तित्व तथा इनके द्वारा संपन्न शालीन सेवाओं के लिए इन्हें सन् 1963 में भारत का सर्वोच्च अलंकरण 'भारतरत्न' प्रदान किया गया। | ||
==भारत के राष्ट्रपति== | ==भारत के राष्ट्रपति== | ||
सन् | सन् 1967 में डा. हुसेन भारत के तृतीय राष्ट्रपति निर्वाचित हुए और मृत्युपर्यत इस पद पर बने रहे। अपने कार्यकाल की अल्प अवधि में इन्होंने अपने पद की गरिमा बढ़ाई। 3 मई, सन् 1969 को सहसा हृदय की गति बंद हो जाने से इनका असामयिक निधन हो गया। | ||
==लेखक== | ==लेखक== | ||
डाक्टर जाकिरहुसेन सफल लेखक भी थे। इनकी कृतियों में जहाँ एक ओर ज्ञान विज्ञान की गुरु गंभीर धारा प्रवाहित होती है वहीं दूसरी ओर 'अबू की बकरी' जैसी लोकप्रिय बालोपयोगी रचनाओं की प्रचुरता है। इन्होंन प्लेटो द्वारा रचित पुस्तक 'रिपब्लिक' का उर्दू में अनुवाद किया। शिक्षा से संबंधित अनेक ग्रंथों एवं कहानियों के अतिरिक्त इन्होंने अर्थशास्त्र पर भी एक ग्रंथ की रचना की। 'एलिमेंट्स ऑव एकानामिक्स' तथा अर्थशास्त्र की अनेक महत्वपूर्ण कृतियों का उर्दू में अनुवाद किया। सुंदर हस्तलिपि में अपनी प्रगाढ़ रुचि का उपयोग इन्होंने गालिब की कविताओं के अत्यंत मनोहर प्रकाशन में किया। ये उर्दू के शीर्षस्य संस्मरणलेखक भी थे। इन्होंने कार्ल मार्क्स के दर्शन का अनुशीलन भी किया | डाक्टर जाकिरहुसेन सफल लेखक भी थे। इनकी कृतियों में जहाँ एक ओर ज्ञान विज्ञान की गुरु गंभीर धारा प्रवाहित होती है वहीं दूसरी ओर 'अबू की बकरी' जैसी लोकप्रिय बालोपयोगी रचनाओं की प्रचुरता है। इन्होंन प्लेटो द्वारा रचित पुस्तक 'रिपब्लिक' का उर्दू में अनुवाद किया। शिक्षा से संबंधित अनेक ग्रंथों एवं कहानियों के अतिरिक्त इन्होंने अर्थशास्त्र पर भी एक ग्रंथ की रचना की। 'एलिमेंट्स ऑव एकानामिक्स' तथा अर्थशास्त्र की अनेक महत्वपूर्ण कृतियों का उर्दू में अनुवाद किया। सुंदर हस्तलिपि में अपनी प्रगाढ़ रुचि का उपयोग इन्होंने गालिब की कविताओं के अत्यंत मनोहर प्रकाशन में किया। ये उर्दू के शीर्षस्य संस्मरणलेखक भी थे। इन्होंने कार्ल मार्क्स के दर्शन का अनुशीलन भी किया |
१२:०१, १८ अगस्त २०११ के समय का अवतरण
डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन भारत के तृतीय राष्ट्रपति। आपका जन्म 8 फरवरी, 1867 को हैदराबद में एक अफ़गान परिवार में हुआ था। आपके पूर्वत अठारहवीं शताब्दी के आरंभ में उत्तरप्रदेश के फर्रखाबाद जिले के एक कस्बे कायमगंज में आ बसे थे। बाद में आपके पिता वकील फिदाहुसेन सपरिवार हैदराबाद चले गए। जब जाकिरहुसेन मात्र नौ वर्ष के थे, इनके पिता का संरक्षण उनसे सदा के लिए छिन गया। उनका परिवार कायमगंज लौट आया। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इटावा के इस्लामिया हाई स्कूल में हुई। इन्होंने अलीगढ़ के एम. ए. ओ. कालेज से अर्थशास्त्र की स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में ही डाक्टरेट किया। अध्ययनकाल में आपकी गणना सदैव सुयोग्य एवं शिष्ट छात्रों में की जाती थी। अपनी साधारण वेशभूषा, सरल स्वभाव एवं सात्विक आचरण के कारण ये विद्यार्थी जीवन में 'मुर्शिद' (आध्यात्मिक नेता) के नाम से विख्यात थे।
शिक्षा
सन् 1920 में जब जाकिरहुसेन एम. ए. ओ. कालेज में एम. ए. के छात्र थे, महात्मा गांधी अली बंधुओं के साथ अलीगढ़ आए। उन्होंने कालेज के छात्रों एवं अध्यापकों के समक्ष देशभक्ति की भावनाओं से ओतप्रोत ओजस्वी भाषण किया। गांधी जी ने अंग्रेज सरकार द्वारा संचालित अथवा नियंत्रित शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार कर राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने के लिए छात्रों एवं अध्यापकों का आह्वान किया। गांधी जी के भाषण का जाकिरहुसेन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। इन्होंने कालेज त्याग दिया और कतिपय छात्रों एवं अध्यापकों के सहयोग से एक राष्ट्रीय शिक्षणसंस्थान की स्थापना की जो बाद में 'जामिया मिल्लिया इस्लामिया' के नाम से विख्यात हुआ। इन्होंने इस संस्था का पोषण प्राय: 40 वर्षों तक किया।
अध्यापन
डाक्टर हुसेन ने अपना जीवन एक शिक्षक के रूप में आरंभ किया। दो वर्ष पश्चात् ये उच्च अध्ययन हेतु बर्लिन चले गए। वहाँ से अर्थशास्त्र में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त कर लौटने के पश्चात् ये जामिया मिल्लिया के वाइस चांसलर बनाए गए। 29 वर्ष की अल्पायु में इतने गौरवपूर्ण पद पर प्रतिष्ठित होना इनके व्यक्तित्व की महनीयता का द्योतक है। उस्मानिया विश्वविद्यालय के 600 रुपए मासिक के आमंत्रण को अस्वीकार कर पावन कर्तव्य की भावना से प्रेरित होकर इन्होंने जामिया मिल्लिया में केवल 75 रुपए मासिक वेतन पर अध्यापन किया। विषम आर्थिक स्थितियों में भी ये निराश नहीं हुए। ये संस्था की अस्तित्वरक्षा के लिए सतत संघर्ष करते रहे। जामियामिल्लिया इनके त्यागमय जीवन की महान् पूँजी और इनकी 22 वर्षों की मौन साधना और घोर तपस्या का ज्वलंत उदाहरण है। ये देश की अनेक शिक्षणसमितियों से संबद्ध रहे। डा. हुसेन महात्मा गांधी द्वारा विकसित की गई बुनियादी शिक्षा अभियान के सूत्रधार थे। इन्होंने शिक्षा के सुधार और मूल्यांकन से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की। ये हिंदुस्तानी तालीमी संघ, सेवाग्राम, विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग आदि अनेक शिक्षण समितियों के सदस्य तथा सभापति रहे। सन् 1937 में जब प्रांतों को कुछ सीमा तक स्वायत्तता मिली और गाँधी जी ने जनप्रिय प्रांतीय सरकारों से बुनियादी शिक्षा के प्रसार पर बल देने का अनुरोध किया तब गांधी जी के आमंत्रण पर डा. जाकिरहुसेन ने बुनियादी शिक्षासंबंधी राष्ट्रीय समिति की अध्यक्षता स्वीकार की। विभाजन के पश्चात् तत्कालीन शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के अनुरोध पर इन्होंन अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर का कार्य सँभाला। उस समय यह विश्वविद्यालय पृथक्तावादी मुसलमानों के षड््यत्रं का केंद्र था। ऐसी स्थिति में इन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन का गंभीर उत्तरदायित्व ग्रहण किया और आठ वर्षों तक कुशलतापूर्वक उसका निर्वाह किया। इन्होंने कई बार यूनेस्को में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया।
राजनैतिक पद
डाक्टर जाकिर हुसेन सन् 1952 में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किए गए। विद्वत्ता एवं राष्ट्रीय सेवाओं के लिए इन्हें सन् 1954 में 'पद्यविभूषण' की उपाधि दी गई। सन् 1957 में ये बिहार के राज्यपाल नियुक्त हुए। सन् 1962 में भारत के उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए। राज्यसभा के अध्यक्ष पद पर इन्होंने जिस निष्पक्षता और योग्यता का परिचय दिया वह इनके उत्तराधिकारियों के लिए अनुकरणीय थी। भारत के सर्वोच्च आदर्शों के ताने बाने में बुने इनके बहुमुखी व्यक्तित्व तथा इनके द्वारा संपन्न शालीन सेवाओं के लिए इन्हें सन् 1963 में भारत का सर्वोच्च अलंकरण 'भारतरत्न' प्रदान किया गया।
भारत के राष्ट्रपति
सन् 1967 में डा. हुसेन भारत के तृतीय राष्ट्रपति निर्वाचित हुए और मृत्युपर्यत इस पद पर बने रहे। अपने कार्यकाल की अल्प अवधि में इन्होंने अपने पद की गरिमा बढ़ाई। 3 मई, सन् 1969 को सहसा हृदय की गति बंद हो जाने से इनका असामयिक निधन हो गया।
लेखक
डाक्टर जाकिरहुसेन सफल लेखक भी थे। इनकी कृतियों में जहाँ एक ओर ज्ञान विज्ञान की गुरु गंभीर धारा प्रवाहित होती है वहीं दूसरी ओर 'अबू की बकरी' जैसी लोकप्रिय बालोपयोगी रचनाओं की प्रचुरता है। इन्होंन प्लेटो द्वारा रचित पुस्तक 'रिपब्लिक' का उर्दू में अनुवाद किया। शिक्षा से संबंधित अनेक ग्रंथों एवं कहानियों के अतिरिक्त इन्होंने अर्थशास्त्र पर भी एक ग्रंथ की रचना की। 'एलिमेंट्स ऑव एकानामिक्स' तथा अर्थशास्त्र की अनेक महत्वपूर्ण कृतियों का उर्दू में अनुवाद किया। सुंदर हस्तलिपि में अपनी प्रगाढ़ रुचि का उपयोग इन्होंने गालिब की कविताओं के अत्यंत मनोहर प्रकाशन में किया। ये उर्दू के शीर्षस्य संस्मरणलेखक भी थे। इन्होंने कार्ल मार्क्स के दर्शन का अनुशीलन भी किया
टीका टिप्पणी और संदर्भ