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राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए वर्ष 2008 में प्रस्तावित बरसर जलविद्युत परियोजना, जिप्सा जलविद्युत परियोजना, ऊझ बहुउद्देश्यीय और द्वितीय रावी-व्यास लिंक परियोजना को शाहपुर कंडी बांध परियोजना के साथ राष्ट्रीय परियोजनाओं की सूची में शामिल किया गया है ताकि संधि के अंतर्गत उपलब्ध जल संसाधन क्षमता का अधिक प्रभावी उपयोग किया जा सके। इन परियोजनाओं के लिए उपयुक्त स्थल की पहचान और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पर काम चल रहा है। | राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए वर्ष 2008 में प्रस्तावित बरसर जलविद्युत परियोजना, जिप्सा जलविद्युत परियोजना, ऊझ बहुउद्देश्यीय और द्वितीय रावी-व्यास लिंक परियोजना को शाहपुर कंडी बांध परियोजना के साथ राष्ट्रीय परियोजनाओं की सूची में शामिल किया गया है ताकि संधि के अंतर्गत उपलब्ध जल संसाधन क्षमता का अधिक प्रभावी उपयोग किया जा सके। इन परियोजनाओं के लिए उपयुक्त स्थल की पहचान और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पर काम चल रहा है। | ||
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अंतरराष्ट्रीय सहयोग भारत-नेपाल सहयोग
जल संसाधन विकास के क्षेत्र में सहयोग के लिए केंद्र सरकार विभिन्न स्तरों पर नेपाल की सरकार के साथ सतत् संपर्क में है। महाकाली नदी के समन्वित विकास पर एक समझौता दोनों देशों की सरकारों के बीच फरवरी, 1996 में हस्ताक्षरित हुआ; जो जून 1997 से प्रभावी हुआ (महाकाली समझौता)। महाकाली नदी (भारत में शारदा नदी) पर पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय परियोजना इस समझौते का केंद्र बिंदु है। पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना की संयुक्त विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए भौतिक और वित्तीय प्रगति पर भारत-नेपाल संयुक्त विशेषज्ञ समूह नजर रख रहा है। सभी संबंधित फील्ड जांच पूरी कर ली गई है और लंबित मुद्दों को सुलझाने के बाद, जिन पर नेपाल के साथ विस्तृत चर्चा चल रही है, परियोजना रिपोर्ट को अंतिम रुप दिया जाएगा। परियोजना से बाढ़ नियंत्रण सहित विद्युत और सिंचाई क लाभ भी प्राप्त होंगे।
पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय परियोजना को प्रारंभ करने उसके विकास और कार्यान्वयन के लिए यथाशीघ्र पंचेश्वर विकास प्राधिकरण के गठन की बात पर आम सहमति जल संसाधन पर गठित भारत-नेपाल की संयुक्त समिति की तीसरी बैठक में लिया गया। यह बैठक 29 सितंबर से 1 अक्टूबर 2008 तक काठमांडू में हुई। इस समिति की चौथी बैठक में पंचेश्वर विकास प्राधिकरण के प्रारूप के संबंध में चर्चा हुई। इस संबंध में और अधिक चर्चा कर उसे अंतिम रूप समिति की अगली बैठक में दिए जाने की सहमति बनी हुई है। चौथी बैठक दिल्ली में 12-13 मार्च, 2009 को हुई।
सप्त कोसी उच्च बांध बहुउद्देशीय परियोजना और सुन कोसी भंडारण सह अपवर्तन योजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने, संयुक्त फील्ड जांचों, अध्ययनों को शुरू करने के लिए भी नेपाल के साथ एक संधि की गई है। इस कार्य के लिए अगस्त 2004 में नेपाल में एक संयुक्त परियोजना कार्यालय खोला गया। फील्ड जांचों का कार्य प्रगति पर है। जांच के कार्य फरवरी, 2007 तक पूरे कर लिए जाने थे लेकिन नेपाल के हालातों के चलते वस्तुस्थिति की जांच के काम में देरी हो गई। सुरक्षा कारणों से कोसी बांध निर्माण स्थल पर मई, 2007 से निर्माण कार्य बंद है।
संयुक्त समिति की तीसरी बैठक काठमांडू में आयोजित हुई बैठक में नेपाली पक्ष ने समिति को आश्वस्त किया है कि जांच स्थलों पर अधिकारियों और दल के सदस्यों को पूरी सुरक्षा मुहैया करवाई जाएगी। तीसरी बैठक के बाद जेपीओ-एसकेएसकेआई का कार्यकाल, फील्ड जांच तथा डीपीआर की तैयारी के लिए, जून 2010 तक बढ़ा दिया गया है।
दिल्ली में आयोजित संयुक्त समिति की चौथी बैठक में भारतीय पक्ष ने सभी निर्माण स्थलों पर सुरक्षा उपलब्ध करवाने की बात कही है ताकि जांच का काम फिर से चालू किया जा सके और कार्य जून 2010 तक पूरा किया जा सके। नेपाली दल ने सप्तकोसी परियोजना क्षेत्र में यथाशीघ्र कार्य प्रारंभ करवाने के लिए हर संभव कदम उठाने की बात कही है।
तकनीकी समितियों की संख्या को तार्किक बनाने तथा एक प्रभावी संयुक्त व्यवस्था के निर्माण के लिए त्रिस्तरीय प्रणाली की व्यवस्था की गई है – जिसमें भारत और नेपाल के मंत्रियों का जल संसाधन पर संयुक्त मंत्रिस्तरीय आयोग; भारत और नेपाल के सचिवों की सचिव स्तरीय जल संसाधन संयुक्त समिति तथा संयुक्त स्टैंडिंग तकनीकी समिति जिसमें गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग, पटना के अध्यक्ष के स्तर के सदस्य होंगे। संयुक्त समिति की चौथी बैठक में जल संसाधन पर मंत्रिस्तरीय समिति के संदर्भ की शर्तों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। भारत-भूटान सहयोग
भारत और भूटान में बहने वाली नदियों पर जल-मौसम विज्ञान और बाढ़ पूर्व सूचना नेटवर्क की स्थापना के लिए 'समग्र स्कीम' नामक एक योजना संचालन में है। इस नेटवर्क में भूटान में स्थिति 35 जल-मौसम वैज्ञानिक/मौसम विज्ञान केंद्र शामिल हैं जिन्हें भारत के वित्त पोषण से भूटान सरकार द्वारा चलाया जा रहा है। इन केंद्रों से प्राप्त आंकड़े भारत में केंद्रीय जल आयोग द्वारा बाढ़ पूर्व सूचना के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। दोनों देशों के सरकारी अधिकारियों वाला एक संयुक्त विशेषज्ञ दल इस योजना की प्रगति और अन्य आवश्यकताओं पर लगातार नजर रखता है।
भूटान से निकलकर भारत में आने वाली नदियों में आने वाली बाढ़ों की समस्या पर भूटान सरकार से चर्चा की गई। बार-बार आने वाली बाढ़ों और भूटान के दक्षिणी तलहटी क्षेत्रों और भारत के साथ लगे मैदानों में क्षरण के संभावित कारणों और प्रभावों के मूल्यांकन और उन पर चर्चा के लिए भारत और भूटान के बीच बाढ़ प्रबंधन पर एक संयुक्त विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया जो दोनों सरकारों को उपयुक्त और स्वीकार्य उपाय सुझाएगा।
इस समूह की पहली बैठक भूटान में 1 से 5 नवंबर, 2004 को हुई। संयुक्त विशेषज्ञ समूह ने चर्चाओं के कई दौर किए और कुल प्रभावित क्षेत्रों का दौरा भी किया, जिनमें भूस्खलन प्रवण इलाके और डोलामाइट खनन क्षेत्र शामिल थे। चर्चाओं के आधार पर समूह ने महसूस किया कि अधिक विस्तृत तकनीकी परीक्षा की आवश्यकता है और तदनुसार उत्तरी बंगाल बाढ़ नियंत्रण आयोग के सदस्य (पीआईडी) की अध्यक्षता में एक संयुक्त तकनीकी दल का गठन किया गया जिसने पहली बैठक अप्रैल, 2005 में की।
इस दल ने तलछट भार के कुछ स्रोतों और भूस्खलन की प्रकृति का अध्ययन किया और संभावित उपायों पर फैसला लेने के लिए अधिक अध्ययन किया और मानचित्रण का सुझाव दिया। संयुक्त तकनीकी दल की प्राथमिक रिपोर्ट (जनवरी 2006) जल संसाधन मंत्रालय में फरवरी 2006 के दौरान प्राप्त हुई।
विशेषज्ञ समूह की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार पांच सदस्यीय भारतीय दल ने रायल भूटानी सरकार के अधिकारियों के साथ सातिचू झील का दौरा 18-23 दिसंबर, 2006 के दौरान किया। इस दल का गठन सातिचू नदी के दाहिने तट पर हुए भारी भूस्खलन के बाद किया गया था।
संयुक्त दौरे के दौरान यह बात देखी गई की झील में पानी का स्तर बहुत कम है तथा इसके बहाव वाले इलाकों में बाढ़ का खतरा, जिसमें भारतीय इलाके भी शामिल हैं, बहुत ही कम है। फिर भी इस बात की अनुशंसा की गई कि झील की लगातार निगरानी करने की जरूरत है ताकि भूस्खलन, जिसके कारण जल बहाव का रास्ता अवरुद्ध हो सकता है, या झील के जलस्तर की निगरानी की जा सके, खासतौर पर मानसून के समय में।
संयुक्त विशेषज्ञ समूह की दूसरी बैठक नई दिल्ली में 26-27 फरवरी को आयोजित हुई। बैठक के दौरान संयुक्त तकनीकी दल की प्राथमिक रिपोर्ट (जनवरी 2006), भूटान में त्सातिचू झील पर भारत-भूटान विशेषज्ञ दल के संयुक्त दौरे (दिसंबर 2006) की रिपोर्ट और माथनगुड़ी के निकट मानस नदी पर बुलहेड्स के निर्माण के लिए भूटान सरकार की अनुमति पर चर्चा की गई।
संयुक्त विशेषज्ञ दल की दूसरी बैठक के दौरान संयुक्त तकनीकी दल का पुर्नगठन किया गया और पुर्नगठित दल के कार्यक्रम में भूटान से बहकर आसाम में आने वाली कुछ ऐसी नदियों/धाराओं को अध्ययन/अनुशंसाओं के लिए शामिल करने का फैसला किया गया जिनकी पहचान फील्ड दौरों के आधार पर संयुक्त तकनीकी दल द्वारा की जाएगी। यह भी तय किया गया कि भारत और भूटान के विशेषज्ञों के दल 2008 में भूस्खलन बांध स्थल का एक और संयुक्त दौरा करेंगे।
विदेश मंत्रालय ने 10-04-2008 के अपने पत्र के जरिए डिफ्लेक्टरों के निर्माण के लिए भूटान सरकार की स्वीकृति की जानकारी दी है। यह स्वीकृति असम सरकार के जल संसाधन सचिव को इस अनुरोध के साथ भेज दी है कि वह भूटान के ज़ेमगांग जिले के पानवांग ब्लॉक के स्थानीय प्रशासन से जल संसाधन मंत्रालय के पत्र दिनांक 22-04-2008 के अनुसार डिफ्लेक्टरों के निर्माण के लिए कहें। भारत-बांग्लादेश सहयोग
साझी नदी प्रणालियों से अधिकतम लाभ लेने के लिए सर्वाधिक प्रभावी संयुक्त प्रयास सुनिश्चित करने के लिए आपसी संबंध बनाये रखने की दृष्टि से भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग 1972 से काम कर रहा है, जिसकी अध्यक्षता दोनों देशों के जल संसाधन मंत्री करते हैं। भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्रियों के द्वारा 12 दिसंबर, 1996 को गंगा नदी जल बंटवारे के लिए एक समझौते पर दस्त्खत किए गए। समझौता तीस साल तक अस्तित्व में रहेगा जिसे बाद में आपसी सहमति के आधार पर आगे बढ़ाया जा सकता है। भारत के फरक्का में तथा बांग्लादेश के हार्डिंग पुल पर सूखे मौसम के लिए (जनवरी से मई तक) बंटवारे की व्यवस्था के अनुपालन, जांच और निगरानी के लिए एक संयुक्त समिति का गठन किया गया है।
आयोग की छत्तीसवीं बैठक 19 से 21 सितंबर 2005 को ढाका में हुई जिसमें जल संसाधन क्षेत्र में सहयोग के विभिन्न मसलों जैसे तिपाईमुख बांध परियोजना, नदियों को जोड़ने, दोनों देशों में बहने वाली नदियों के पानी के बंटवारे, नदी तटबंधों की सुरक्षा तथा बाढ़ की अग्रिम सूचना देने जैसे मसलों पर चर्चा हुई।
यहां लिए गए निर्णयों के अनुसरण में दोनों देशों के जल संसाधन मंत्रियों ने अपने प्रतिनिधि मंडलों सहित 13 से 21 सितंबर, 2006 के दौरान संबद्ध साझी/सीमावर्ती नदियों के आस-पास नदी किनारे के संरक्षण स्थलों, लघु लिफ्ट सिंचाई और पेय जल स्कीमों का दौरा किया। इसमें इच्छामति नदी का वो भाग भी शामिल था जो भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा का काम करता है, और हालात का मौके पर जायजा लिया। स्थलीय दौरे और चर्चाओं के दौरान दोनों पक्षों में अच्छी आपसी समझ दिखाई दी और मतभेद कम करने में मदद मिली। कई मुद्दों पर बेहतर समझ और अधिकाधिक स्पष्टता पायी गई। हालांकि अधिक तकनीकी विवरणों की आवश्यकता के चलते कोई समझौता नहीं हो पाया।
भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग ने तीस्ता सहित छः अन्य उभयनिष्ठ नदियों के साथ ही फेनी नदी के पानी के भी दीर्घकालिक बंटवारे की बात कही है। तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे की बात को वरीयता दी गई है। संयुक्त नदी आयोग ने इस बात की पहचान कर ली है कि सूखे समय में नदी किसी भी देश की जल आवश्यकता को पूरा नही कर पाएगी। ऐसे समय में दोनों देश आपसी सहमति से बंटवारे का स्वरूप तय करेंगे। इस मामले में आगे की चर्चा संयुक्त नदी आयोग की अगली बैठक में की जाएगी, जो भारत में होनी प्रस्तावित है।
भारत-बांग्लादेश संबंधों में 12 दिसंबर, 1996 को एक नए युग का सूत्रपात हुआ जब दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने कम पानी वाले मौसम में फरक्का पर गंगा के पानी बंटवारे पर एक संधि पर हस्ताक्षर किए। इसके अनुसार फरक्का में (जो भारत में गंगा नदी पर अंतिम नियंत्रण बिंदु है) गंगा का पानी कमी वाली अवधि के दौरान पहली जनवरी से 31 मई तक हर वर्ष संधि में दिए गए फार्मूले के अनुसार 10-दैनिक आधार पर बांटा जा रहा है। संधि की अवधि 30 वर्ष है। हालांकि हर पांच वर्ष में इसकी समीक्षा का प्रावधान है, अभी तक किसी ने भी इसकी मांग नहीं की है। संधि के अनुरूप पानी के बंटवारे की निगरानी एक संयुक्त समिति करती है जो दोनों देशों के संयुक्त नदी आयोग के सदस्यों से बनी है। इस संयुक्त समिति की तीन बैठकें हर वर्ष होती है। दोनों देशों की संतुष्टि के अनुसार यह संधि 1997 से कार्यान्वित की जा रही है।
भारत बांग्लादेश को उसकी बाढ़ पूर्व सूचना और चेतावनी व्यवस्था के लिए तीस्ता, मनु, गोमती, जल ढाका और तोरसा आदि नदियों के आंकड़ों के अतिरिक्त गंगा के लिए फरक्का के बाद आंकड़े, ब्रह्मपुत्र के लिए पांडू, ग्वालापाड़ा और धुबरी के बाढ़ आंकड़े और बराक के लिए सिल्चर के बाद आंकड़े मानसून अवधि के दौरान (15 मई से 15 अक्तूबर) उपलब्ध कराता है। मानसून के दौरान भारत से बाढ़ पूर्व सूचना जानकारी के प्रदान से, जो नि:शुल्क उपलब्ध कराई जा रही है, बांग्लादेश के नागरिक और सैनिक अधिकारियों को बाढ़ प्रवाहित इलाकों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने में मदद मिलती है। भारत-चीन सहयोग
वर्ष 2002 में भारत सरकार ने बाढ़ के मौसम में चीन द्वारा भारत को यालूज़ांग्बू/ब्रह्मपुत्र नदी के बारे में जल वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए चीन के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इसके प्रावधानों के अनुसार चीनी पक्ष तीन केंद्रों – नुगेशा, यांग्कुन और नुक्सिया के संबंध में हर वर्ष पहली जून से 15 अक्तूबर तक जल वैज्ञानिक सूचनाएं उपलब्ध करा रहा है, जिसका उपयोग केंद्रीय जल आयोग द्वारा बाढ़ पूर्व सूचना के लिए कर रहा है। इस समझौते की अवधि 2007 में समाप्त हो गई। 4-7 जून, 2008 के माननीय भारतीय विदेश मंत्री के बीजिंग दौर के पर मानूसन के दौरान यालूजांग्बू/ब्रह्मपुत्र की जलस्थिति के बारे में भारत को चीनी पक्ष द्वारा सूचना उपलब्ध कराने के संबंध में एक समझोते पर हस्ताक्षर 5 जून को किए गए। इस समझौते की वैधता पांच वर्ष तक रहेगी।
अप्रैल, 2005 में चीनी शासनप्रमुख की भारत यात्रा के दौरान एक अन्य समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए जिसमें बाढ़ के मौसम में सतलुज (लांग्क्विन ज़ांग्बू) के संबंध में जल वैज्ञानिक सूचनाओं की आपूर्ति का प्रावधान है। चीनी पक्ष वर्ष 2007 के मॉनसून से सतलुज नदी (लांग्क्विन ज़ांग्बू) पर साडा केंद्र से नदी से संबंधित जल विज्ञान सूचना उपलब्ध करा रहा है।
चीन के राष्ट्रपति ने 20 से 23 नवंबर 2006 के दौरान भारत का राजकीय दौरा किया। इस दौरान बाढ़ के मौसम में जल वैज्ञानिक आंकड़ों, आपातकालीन प्रबंधन और सीमाओं के आर-पार की नदियों संबंधी अन्य मसलों पर बातचीत और सहयोग की विशेषज्ञ स्तरीय मशीनरी स्थापित करने का सहमति हुई। तदानुसार दोनों पक्षों ने संयुक्त विशेषज्ञ स्तरीय मशीनरी स्थापित की है। भारतीय पक्ष की ओर से विशेषज्ञ समूह का नेतृत्व जल संसाधन मंत्रालय में आयुक्त कर रहे हैं। चीनी पक्ष का नेतृत्व वहां के जलसंसाधन मंत्रालय के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग व विनिमय केंद्र के निदेशक कर रहे हैं।
संयुक्त विशेषज्ञ स्तर की पहली बैठक 19-21 सितंबर, 2007 को बीजिंग में हुई। जिसमें दोनों देशों के मध्य जलीय सूचनाओं के आदान-प्रदान में द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा की गई।
सीमापारीय नदियों पर विशेषज्ञ स्तरीय दूसरी बैठक 10-12 अप्रैल, 2008 को हुई। इस बैठक में विशेषज्ञ स्तरीय प्रणाली के कार्य के स्वरूप पर सहमति बनी और इस पर हस्ताक्षर किए गए। बैठक में निर्णय लिया गया कि इस प्रकार की बैठक हर वर्ष बारी-बारी से भारत और चीन में होगी।
संयुक्त विशेषज्ञ स्तर की तीसरी बैठक बीजिंग में 21 से 25 अप्रैल 2009 के दौरान आयोजित की गई। इस बैठक से दोनों देशों के मध्य बाढ़ के मौसम में जल बहाव के आंकड़ों को सरल आदान-प्रदान की प्रक्रिया को समझने में आसानी हुई। सिंधु जल संधि, 1960
सिंधु जल संधि, 1960 के अंतर्गत भारत और पाकिस्तान ने दोनों देशों में सिंधु नदी जल के लिए आयुक्त का एक-एक स्थायी पद सृजित किया है, जो इस संधि से उभरने वाले सभी मामलों के लिए अपनी-अपनी सरकारों के प्रतिनिधि हैं और संधि के कार्यान्वयन में संचार के नियमित साधन की भूमिका निभाते हैं।
दोनों आयुक्त मिलकर स्थायी सिंधु आयोग बनाते हैं जो समय-समय पर बैठकें करता है और भारत-पाकिस्तान में परियोजनाओं/कार्यों के निरीक्षण दौरे भी करता है। स्थाई सिंधु आयोग की 102री बैठक नई दिल्ली में खासतौर पर बगलिहार जलविद्युत परियोजना मसले पर पाकिस्तान द्वारा उठाए गए मुद्दों पर चर्चा के लिए की गई। आयोग की 103री बैठक भी नई दिल्ली में आयोजित की गई जिसमें बगलिहार और किशनगंगा जल विद्युत परियोजनाओं की प्रारंभिक रिपार्ट दाखिल करने पर भी चर्चा हुई। सहयोग की भावना के तहत तीन जांच दौरे आयोग द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर की नीलम घाटी, भारत की बगलिहार परियोजना और पाकिस्तान के मेराला हेडवर्क्स के किए गए।
सद्भावना के तौर पर अग्रिम बाढ़ चेतावनी उपाय करने के 01-07-2009 से चिनाब, सतलुज, तवी और रावी नदियों के बाढ़ संबंधी आंकड़े पाकिस्तान को सम्प्रेषित किए जा रहे हैं ताकि पाकिस्तान समय रहते बाढ़ राहत के प्रयास कर सके।
राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए वर्ष 2008 में प्रस्तावित बरसर जलविद्युत परियोजना, जिप्सा जलविद्युत परियोजना, ऊझ बहुउद्देश्यीय और द्वितीय रावी-व्यास लिंक परियोजना को शाहपुर कंडी बांध परियोजना के साथ राष्ट्रीय परियोजनाओं की सूची में शामिल किया गया है ताकि संधि के अंतर्गत उपलब्ध जल संसाधन क्षमता का अधिक प्रभावी उपयोग किया जा सके। इन परियोजनाओं के लिए उपयुक्त स्थल की पहचान और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पर काम चल रहा है।