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*भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता। इनकी व्याख्या प्राप्त नहीं है पर अभिनवभारती में उसका उल्लेख है। भरत के रससूत्र की इन्होंने जो व्याख्या की है वह 'अनुमितिवाद' नाम से प्रसिद्ध है। भट्ट लोल्लट के उत्पत्तिवाद का तथा सहृदयों में रसानुभव न माननेवाले सिद्धांत का इन्होंने सर्वप्रथम खंडन किया है। ये नैयायिक थे। इन्होंने विभाव आदि साधनों और रसरूप साध्य में अनुमाप्यअनुमापक भाव की कल्पना की है और रस का आस्वाद अनुमान द्वारा अनुमेय या अनुमितिगम्य बताया है।  
*भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता। इनकी व्याख्या प्राप्त नहीं है पर अभिनवभारती में उसका उल्लेख है। भरत के रससूत्र की इन्होंने जो व्याख्या की है वह 'अनुमितिवाद' नाम से प्रसिद्ध है। भट्ट लोल्लट के उत्पत्तिवाद का तथा सहृदयों में रसानुभव न माननेवाले सिद्धांत का इन्होंने सर्वप्रथम खंडन किया है। ये नैयायिक थे। इन्होंने विभाव आदि साधनों और रसरूप साध्य में अनुमाप्यअनुमापक भाव की कल्पना की है और रस का आस्वाद अनुमान द्वारा अनुमेय या अनुमितिगम्य बताया है।  
*इन्होंने रस की स्थिति सहृदयों या सामाजिकों में मानी है। 'चित्रतुरगादि न्याय' की इनकी विवेचना के अनुसार नट सच्चे राम नहीं हैं, वे चित्र में लिखे अश्व की तरह हैं। जैसे अश्व के चित्र को देखकर उसका अनुभव होता है, वैसे ही नट के अभिनयात्मक रूप को देखकर सहृदयों को अनुभव होता है।  
*इन्होंने रस की स्थिति सहृदयों या सामाजिकों में मानी है। 'चित्रतुरगादि न्याय' की इनकी विवेचना के अनुसार नट सच्चे राम नहीं हैं, वे चित्र में लिखे अश्व की तरह हैं। जैसे अश्व के चित्र को देखकर उसका अनुभव होता है, वैसे ही नट के अभिनयात्मक रूप को देखकर सहृदयों को अनुभव होता है।  
*इस प्रकार शंकुक ने रस की स्थिति सहृदयों या सामाजिकों में मानी है। राजतरंगिणी के उल्लेख के अनुसार शंकुक कश्मीरी विद्वान्‌ थे और अजितापीड़ के शासनकाल में विद्यमान थे। इन्होंने 'भुवनाभ्युदय' नामक महाकाव्य में मम्म और उत्पल के भयंकर युद्ध का वर्णन किया है जिसें मारे गए वीरों के शव से वितस्ता नदी का प्रवाह रुक गया था। राजतरंगिणीकार ने इन्हें 'कवि बुधमन: सिंधुशशांक:' कहा है। शंकुक का समय ई. ८५० के लगभग मान्य है।
*इस प्रकार शंकुक ने रस की स्थिति सहृदयों या सामाजिकों में मानी है। राजतरंगिणी के उल्लेख के अनुसार शंकुक कश्मीरी विद्वान्‌ थे और अजितापीड़ के शासनकाल में विद्यमान थे। इन्होंने 'भुवनाभ्युदय' नामक महाकाव्य में मम्म और उत्पल के भयंकर युद्ध का वर्णन किया है जिसें मारे गए वीरों के शव से वितस्ता नदी का प्रवाह रुक गया था। राजतरंगिणीकार ने इन्हें 'कवि बुधमन: सिंधुशशांक:' कहा है। शंकुक का समय ई. 850 के लगभग मान्य है।
*शाङ्‌र्गधरपद्धति तथा जल्हण की सूक्तिमुक्तावली में शंकुक को मयूर का पुत्र कहा गया है। विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में भी एक शंकु या शंकुक नाम आया है। ये दोनों भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता, रसनिरूपण में अनुमितिवाद के प्रतिष्ठापक एवं भुवनाभ्युदय महाकाव्य के रचयिता शंकुक से संभवत: भिन्न थे।
*शाङ्‌र्गधरपद्धति तथा जल्हण की सूक्तिमुक्तावली में शंकुक को मयूर का पुत्र कहा गया है। विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में भी एक शंकु या शंकुक नाम आया है। ये दोनों भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता, रसनिरूपण में अनुमितिवाद के प्रतिष्ठापक एवं भुवनाभ्युदय महाकाव्य के रचयिता शंकुक से संभवत: भिन्न थे।



१३:४२, २२ जून २०१४ के समय का अवतरण

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  • भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता। इनकी व्याख्या प्राप्त नहीं है पर अभिनवभारती में उसका उल्लेख है। भरत के रससूत्र की इन्होंने जो व्याख्या की है वह 'अनुमितिवाद' नाम से प्रसिद्ध है। भट्ट लोल्लट के उत्पत्तिवाद का तथा सहृदयों में रसानुभव न माननेवाले सिद्धांत का इन्होंने सर्वप्रथम खंडन किया है। ये नैयायिक थे। इन्होंने विभाव आदि साधनों और रसरूप साध्य में अनुमाप्यअनुमापक भाव की कल्पना की है और रस का आस्वाद अनुमान द्वारा अनुमेय या अनुमितिगम्य बताया है।
  • इन्होंने रस की स्थिति सहृदयों या सामाजिकों में मानी है। 'चित्रतुरगादि न्याय' की इनकी विवेचना के अनुसार नट सच्चे राम नहीं हैं, वे चित्र में लिखे अश्व की तरह हैं। जैसे अश्व के चित्र को देखकर उसका अनुभव होता है, वैसे ही नट के अभिनयात्मक रूप को देखकर सहृदयों को अनुभव होता है।
  • इस प्रकार शंकुक ने रस की स्थिति सहृदयों या सामाजिकों में मानी है। राजतरंगिणी के उल्लेख के अनुसार शंकुक कश्मीरी विद्वान्‌ थे और अजितापीड़ के शासनकाल में विद्यमान थे। इन्होंने 'भुवनाभ्युदय' नामक महाकाव्य में मम्म और उत्पल के भयंकर युद्ध का वर्णन किया है जिसें मारे गए वीरों के शव से वितस्ता नदी का प्रवाह रुक गया था। राजतरंगिणीकार ने इन्हें 'कवि बुधमन: सिंधुशशांक:' कहा है। शंकुक का समय ई. 850 के लगभग मान्य है।
  • शाङ्‌र्गधरपद्धति तथा जल्हण की सूक्तिमुक्तावली में शंकुक को मयूर का पुत्र कहा गया है। विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में भी एक शंकु या शंकुक नाम आया है। ये दोनों भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता, रसनिरूपण में अनुमितिवाद के प्रतिष्ठापक एवं भुवनाभ्युदय महाकाव्य के रचयिता शंकुक से संभवत: भिन्न थे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ