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|स्रोत=एल. आई डवलिन, ए. जे. लोटका और एम. स्पीगलमैन: लेंग्थ ऑव लाइफ़ ( | |स्रोत=एल. आई डवलिन, ए. जे. लोटका और एम. स्पीगलमैन: लेंग्थ ऑव लाइफ़ (1949); एम. ए. मैंकेजी और एन. ई. शेपर्ड : ऐन इंट्रोडकूशन टु दि थ्योरी ऑव लाइफ़ कंटिंजंसीज़ (टोरोंटो 1931); ई. एफ. स्पर्जन : लाइफ़ कंटिजेंसीज़ (लंदन, 1932); नैशनल ऑफ़िस ऑव वाइटल स्टैटिस्टिक्स, यू. एस. पब्लिक हेल्थ सर्विस से प्रकाशित, श्रृंखला वाइटल स्टैंटिस्टिक्स स्पेशल रिपोर्ट्रस का खंड 9 सन् 54; जर्नल ऑव दि इंस्टिटयूट ऑव ऐक्चुअरीज़ (लंदन), ट्रैज़ैक्शंस ऑव दि फैकंल्टी ऑव ऐक्चुअरीज़ (स्काटलैंड), ट्रैज़ैक्शंस ऑव दि सोसायटी ऑव ऐक्युअरीज़ (यू. एस. ऐंड कैनाडा)। | ||
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जीवनसारणी की रचना मनुष्य जीवन की आयु<ref>अर्थात् संभावी अवधि</ref> की गणना के हेतु की जाती है। जीवन सारणियों में, जिन्हें आयुसारणी कहना अधिक उपयुक्त है प्रत्येक क्रमिक वय पर उन जीवित प्राणियों की संख्या दी रहती है जो किसी स्थिर संख्या के<ref>सामान्यतया 1, | जीवनसारणी की रचना मनुष्य जीवन की आयु<ref>अर्थात् संभावी अवधि</ref> की गणना के हेतु की जाती है। जीवन सारणियों में, जिन्हें आयुसारणी कहना अधिक उपयुक्त है प्रत्येक क्रमिक वय पर उन जीवित प्राणियों की संख्या दी रहती है जो किसी स्थिर संख्या के<ref>सामान्यतया 1,00,000</ref> सजीवजात प्राणियों में से विभिन्न वयों पर, निर्दिष्ट मृत्यु दरों के अनुसार, प्रत्याशित हैं। उदाहरणत: इंग्लैंड के पुरूषों की आयुसारणी 'दि इंगलिश लाइफ़ टेबिल्स नंo 10 फॉर मेल्स' के अनुसार प्रति 1 लाख सजीवजात पुरुष शिशुओं में से क्रमानुसार 1, 2, 20, 45, 70, 95 वर्ष के वय तक उत्तरजीवितों (survivors) की संख्याएं 92,814; 91, 394; 87, 245; 78, 375; 43, 361 और 232 हैं। सामान्यतया आयुसारणी में ऐसे अन्य आँकड़े भी दिए रहते हैं जो उत्तरजीवितों की संख्याओं से गणना द्वारा प्राप्त किए जाते हैं, जैसे प्रत्येक वय पर मृतकों की संख्या, प्रत्येक जन्म दिवस पर अवशिष्ट औसत जीवन-अवधि<ref>अर्थात् शेष जीवन-प्रत्याशा</ref> और अगले जन्म दिवस तक जीवित रहने की संभावना। जैसा कि साधारणतया समझा जाता है, आयुसारणी में आयु-प्रत्याशा (expectationof life) कोई भविष्य वाणी नहीं होती, यह तो भूतकाल के अनुभव के आधार पर किया गया अनुमान है। केवल बीमाकृत जीवनों के आँकड़ों पर आधारित विशेष प्रकार की आयुसारणी का प्रयोग बीमा कंपनियों द्वारा बीमा-किस्त<ref>प्रीमियम</ref>, वार्षिकी आदि के निर्धारण के लिये किया जाता है। आयुसारणी किसी देश, जाति, लिंग तथा समुदाय-विशेष के लिये भी बनाई जाती है और अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, जनस्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं द्वारा विविध कार्यों में प्रयुक्त की जाती है। औसत आयु और विभिन्न वयों तक जीवित रहने की दरों की तुलना करके विभिन्न देशों की आपेक्षिक दीर्घजीविता और सामान्य स्वास्थ्य की दशाओं का अनुमान लगाया जा सकता है। आयुसारणी से सामाजिक बीमा-योजनाओं के भावी व्ययों की गणना की जा सकती है। जीवन और प्र्व्राजन (migration) के आँकड़ों से आयुसारणी द्वारा जनसंख्या की भावी वृद्धि का और जनसंख्या में विभिन्न वयों पर पुरुषों और स्त्रियों के अनुपात में भावी परिवर्तनों आदि का भी पूर्वानुमान किया जा सकता है। आयुसारणी का उपयोग विधि-न्यायालयों में संपत्ति संबंधी विवादों में दायादों की वार्षिक वृत्ति आदि के निर्धारण में किया जाता है। जब कोई संपदा जीवनकाल में एक दायाद की और उसकी मृत्यु के बाद दूसरे दायाद की हो जाती है तो उसके मूल्य का विभाजन निर्धारित करने के लिये आयुसारणी का प्रयोग किया जाता है। | ||
आयुसारणी का इतिहास - प्रथम सन्निकटत: यथार्थ आयुसारणी का प्रकाशन प्रसिद्ध ज्योतिषी एडमंड हैली (Edmund Halley) ने | आयुसारणी का इतिहास - प्रथम सन्निकटत: यथार्थ आयुसारणी का प्रकाशन प्रसिद्ध ज्योतिषी एडमंड हैली (Edmund Halley) ने 1663 ई. में किया। किंतु वयानुसार मृत्यु और जनगणना दोनों के आँकड़ों का प्रयोग कर वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित कार्लाइल (Carlisle) की सारणी 1815 ई. में प्रकाशित हुई। इंग्लैंड और वेल्स में 1837 ई. से जन्म, मृत्यु और विवाह का पंजीकरण अनिवार्य हो गया और 1843 ई. से हर दस वार्षिक जनगणना के आधार पर 'इंग्लिश लाइफ़ टेबुल्स' बनने लगे; ऐसी श्रृंखला की दसवीं सारणी 1936 ई. में प्रकाशित हुई। जीवन बीमा कंपनियों के अनुभव के आधार पर प्रथम मृत्युसारणी 1834 ई. में बनी। तब से कई एक ऐसी सारणियाँ बन चुकी हैं। ऐसा ही इतिहास संयुक्त राज्य, अमरीका, की मृत्यु-सारणियों का है। भारत में रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय से समय-समय पर मृत्य दर, आयु प्रत्याशा आदि के आँकड़े प्रकाशित होते रहते हैं, किंतु ये केवल प्रतिदर्शी (sample) पर आधारित होते हैं। संपूर्ण जनसंख्या के आधार पर आँकड़े प्राप्त करने में कई कठिनाइयाँ हैं। इनमें साधनों की कमी और जनता में शिक्षा और इस विषय में रुचि की कमी प्रमुख बाधाएँ हैं। | ||
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| व (X) || उव (Ix) || मृव (dx) || सव (px) || हव (qx) || प्रंव (ex) | | व (X) || उव (Ix) || मृव (dx) || सव (px) || हव (qx) || प्रंव (ex) | ||
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[ dx = 1 - 1+ , px = 1+ , qx = 1 - px = dx ¸ ix] | [ dx = 1 - 1+ , px = 1+ , qx = 1 - px = dx ¸ ix] | ||
और प्रं = (1/ | और प्रं = (1/2 उव उव+ 1 उव+ 2 + .......) | ||
[ ex = (1/ | [ ex = (1/2 1x+ 1 1x+ 2 + ......) 1x] | ||
आयु सारणी की रचनाविधि तथा आयुप्रत्याशा में भौगोलिक विचलन पर संदर्भ ग्रंथों को देखें। | आयु सारणी की रचनाविधि तथा आयुप्रत्याशा में भौगोलिक विचलन पर संदर्भ ग्रंथों को देखें। |
१२:०१, १८ अगस्त २०११ के समय का अवतरण
जीवनसारणी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 6-7 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
लेखक | एल. आई डवलिन, ए. जे. लोटका और एम. स्पीगलमैन, एम. ए. मैंकेजी और एन. ई. शेपर्ड, ई. एफ. स्पर्जन |
संपादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
स्रोत | एल. आई डवलिन, ए. जे. लोटका और एम. स्पीगलमैन: लेंग्थ ऑव लाइफ़ (1949); एम. ए. मैंकेजी और एन. ई. शेपर्ड : ऐन इंट्रोडकूशन टु दि थ्योरी ऑव लाइफ़ कंटिंजंसीज़ (टोरोंटो 1931); ई. एफ. स्पर्जन : लाइफ़ कंटिजेंसीज़ (लंदन, 1932); नैशनल ऑफ़िस ऑव वाइटल स्टैटिस्टिक्स, यू. एस. पब्लिक हेल्थ सर्विस से प्रकाशित, श्रृंखला वाइटल स्टैंटिस्टिक्स स्पेशल रिपोर्ट्रस का खंड 9 सन् 54; जर्नल ऑव दि इंस्टिटयूट ऑव ऐक्चुअरीज़ (लंदन), ट्रैज़ैक्शंस ऑव दि फैकंल्टी ऑव ऐक्चुअरीज़ (स्काटलैंड), ट्रैज़ैक्शंस ऑव दि सोसायटी ऑव ऐक्युअरीज़ (यू. एस. ऐंड कैनाडा)। |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | हरि चंद्र गुप्त |
जीवनसारणी की रचना मनुष्य जीवन की आयु[१] की गणना के हेतु की जाती है। जीवन सारणियों में, जिन्हें आयुसारणी कहना अधिक उपयुक्त है प्रत्येक क्रमिक वय पर उन जीवित प्राणियों की संख्या दी रहती है जो किसी स्थिर संख्या के[२] सजीवजात प्राणियों में से विभिन्न वयों पर, निर्दिष्ट मृत्यु दरों के अनुसार, प्रत्याशित हैं। उदाहरणत: इंग्लैंड के पुरूषों की आयुसारणी 'दि इंगलिश लाइफ़ टेबिल्स नंo 10 फॉर मेल्स' के अनुसार प्रति 1 लाख सजीवजात पुरुष शिशुओं में से क्रमानुसार 1, 2, 20, 45, 70, 95 वर्ष के वय तक उत्तरजीवितों (survivors) की संख्याएं 92,814; 91, 394; 87, 245; 78, 375; 43, 361 और 232 हैं। सामान्यतया आयुसारणी में ऐसे अन्य आँकड़े भी दिए रहते हैं जो उत्तरजीवितों की संख्याओं से गणना द्वारा प्राप्त किए जाते हैं, जैसे प्रत्येक वय पर मृतकों की संख्या, प्रत्येक जन्म दिवस पर अवशिष्ट औसत जीवन-अवधि[३] और अगले जन्म दिवस तक जीवित रहने की संभावना। जैसा कि साधारणतया समझा जाता है, आयुसारणी में आयु-प्रत्याशा (expectationof life) कोई भविष्य वाणी नहीं होती, यह तो भूतकाल के अनुभव के आधार पर किया गया अनुमान है। केवल बीमाकृत जीवनों के आँकड़ों पर आधारित विशेष प्रकार की आयुसारणी का प्रयोग बीमा कंपनियों द्वारा बीमा-किस्त[४], वार्षिकी आदि के निर्धारण के लिये किया जाता है। आयुसारणी किसी देश, जाति, लिंग तथा समुदाय-विशेष के लिये भी बनाई जाती है और अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, जनस्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं द्वारा विविध कार्यों में प्रयुक्त की जाती है। औसत आयु और विभिन्न वयों तक जीवित रहने की दरों की तुलना करके विभिन्न देशों की आपेक्षिक दीर्घजीविता और सामान्य स्वास्थ्य की दशाओं का अनुमान लगाया जा सकता है। आयुसारणी से सामाजिक बीमा-योजनाओं के भावी व्ययों की गणना की जा सकती है। जीवन और प्र्व्राजन (migration) के आँकड़ों से आयुसारणी द्वारा जनसंख्या की भावी वृद्धि का और जनसंख्या में विभिन्न वयों पर पुरुषों और स्त्रियों के अनुपात में भावी परिवर्तनों आदि का भी पूर्वानुमान किया जा सकता है। आयुसारणी का उपयोग विधि-न्यायालयों में संपत्ति संबंधी विवादों में दायादों की वार्षिक वृत्ति आदि के निर्धारण में किया जाता है। जब कोई संपदा जीवनकाल में एक दायाद की और उसकी मृत्यु के बाद दूसरे दायाद की हो जाती है तो उसके मूल्य का विभाजन निर्धारित करने के लिये आयुसारणी का प्रयोग किया जाता है।
आयुसारणी का इतिहास - प्रथम सन्निकटत: यथार्थ आयुसारणी का प्रकाशन प्रसिद्ध ज्योतिषी एडमंड हैली (Edmund Halley) ने 1663 ई. में किया। किंतु वयानुसार मृत्यु और जनगणना दोनों के आँकड़ों का प्रयोग कर वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित कार्लाइल (Carlisle) की सारणी 1815 ई. में प्रकाशित हुई। इंग्लैंड और वेल्स में 1837 ई. से जन्म, मृत्यु और विवाह का पंजीकरण अनिवार्य हो गया और 1843 ई. से हर दस वार्षिक जनगणना के आधार पर 'इंग्लिश लाइफ़ टेबुल्स' बनने लगे; ऐसी श्रृंखला की दसवीं सारणी 1936 ई. में प्रकाशित हुई। जीवन बीमा कंपनियों के अनुभव के आधार पर प्रथम मृत्युसारणी 1834 ई. में बनी। तब से कई एक ऐसी सारणियाँ बन चुकी हैं। ऐसा ही इतिहास संयुक्त राज्य, अमरीका, की मृत्यु-सारणियों का है। भारत में रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय से समय-समय पर मृत्य दर, आयु प्रत्याशा आदि के आँकड़े प्रकाशित होते रहते हैं, किंतु ये केवल प्रतिदर्शी (sample) पर आधारित होते हैं। संपूर्ण जनसंख्या के आधार पर आँकड़े प्राप्त करने में कई कठिनाइयाँ हैं। इनमें साधनों की कमी और जनता में शिक्षा और इस विषय में रुचि की कमी प्रमुख बाधाएँ हैं।
आयुसारणी के स्तंभ
उदाहरण के लिये एक वास्तविक आयुसारणी की तीन पंक्तियाँ यहाँ दी जाती है:
वय | उत्तरजीवियों की संख्या | मृतकों की संख्या | उत्तरजीवियों का अनुपात | मृतकों का अनुपात | शेष जीवनप्रत्याशा |
---|---|---|---|---|---|
व (X) | उव (Ix) | मृव (dx) | सव (px) | हव (qx) | प्रंव (ex) |
0 | 1,00,000 | 7,186 | .92814 | .07186 | 58.74 |
1 | 92,814 | 1,420 | .98474 | .01530 | 62.25 |
2 | 91,394 | 600 | .99343 | .00657 | 62.21 |
उपर्युक्त पाँच आयुसारणी फलनों की परिभाषाएँ ये हैं:
उव (lx) = यथार्थ वय व (x) पर जीवित व्यक्तियों की संख्या, मृव (dx) = वय व (x) पर जीवित उव (lx) व्यक्तियों में से वय व (x) से व + 1 (x + 1) वाले वर्ष में मरने वालों की संख्या, सव (px) = वय व (x) पर जीवित व्यक्तियों में से उन व्यक्तियों का अनुपात जो 1 वर्ष और वय व +1 (x +1) पर भी जीवित रहते हैं, हव (qx) = वय व (x) पर जीवित व्यक्तियों में से उन व्यक्तियों का अनुपात जो 1 वर्ष के भीतर, अर्थात् यथार्थ वय व + 1 (x + 1) प्राप्त करने से पहले, मर जाते हैं, प्रंव (ex) = वह अवधि जो यथार्थ वय व (x) वाले व्यक्तियों के भविष्य में जीवित रहने का औसत है। इन फलनों में आपस में ये संबंध है:
मृव = उव - उ + , सव = उव+ ,¸ उ, हव = 1 - सव = मृव ¸ उव
[ dx = 1 - 1+ , px = 1+ , qx = 1 - px = dx ¸ ix]
और प्रं = (1/2 उव उव+ 1 उव+ 2 + .......)
[ ex = (1/2 1x+ 1 1x+ 2 + ......) 1x]
आयु सारणी की रचनाविधि तथा आयुप्रत्याशा में भौगोलिक विचलन पर संदर्भ ग्रंथों को देखें।