"अंग प्रतिरोपण": अवतरणों में अंतर

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'''अंग प्रतिरोपण''' चिकित्सा विज्ञान की वह शल्यक्रिया है जिसके अंतर्गत मनुष्य के विकृत अथवा रोगग्रस्त अंगों को बदल दिया जाता है। इससे मनुष्य स्वस्थ हो जाता है और उसकी कार्यक्षमता में कोई कमी भी नहीं आती है। रोगग्रस्त अंगों का प्रतिरोपण रोगी के किसी निकट संबंधी अथवा किसी मृतक द्वारा किए गए अंगदान पर निर्भर करता है।  मनुष्य के 18 अंगों एवं ऊतकों का प्रतिरोपण किया जा चुका है। कुछ अंग तो ऐसे हैं जिनके उपचार की मानक विधि अब अंग प्रतिरोपण ही है। भारतीयों को इसका ज्ञान पहले से ही था। 6000 वर्ष पूर्व वेदों में अंग प्रतिरोपण का वर्णन मधुविद्या के नाम से हुआ है।
'''अंग प्रतिरोपण''' चिकित्सा विज्ञान की वह शल्यक्रिया है जिसके अंतर्गत मनुष्य के विकृत अथवा रोगग्रस्त अंगों को बदल दिया जाता है। इससे मनुष्य स्वस्थ हो जाता है और उसकी कार्यक्षमता में कोई कमी भी नहीं आती है। रोगग्रस्त अंगों का प्रतिरोपण रोगी के किसी निकट संबंधी अथवा किसी मृतक द्वारा किए गए अंगदान पर निर्भर करता है।  मनुष्य के 18 अंगों एवं ऊतकों का प्रतिरोपण किया जा चुका है। कुछ अंग तो ऐसे हैं जिनके उपचार की मानक विधि अब अंग प्रतिरोपण ही है। भारतीयों को इसका ज्ञान पहले से ही था। 6000 वर्ष पूर्व वेदों में अंग प्रतिरोपण का वर्णन मधुविद्या के नाम से हुआ है।
 
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अमेरिकन कॉलेज ऑफ सर्जनस तथा अमेरिका के ही नैशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ के अंग प्रतिरोपण रजिस्ट्री (आर्गन ट्रांसप्लांट रजिस्ट्री) के प्रमुख डॉ. जान जे. वर्गेन सारे संसार में होने वाले अंग प्रतिरोपणों का लेखा-जोखा रखते हैं। डॉ. वर्गेन का कहना है कि सन्‌ 1953 से लेकर 1 जनवरी, 1973 तक संसार भर में 8256 गुर्दे (वृक्क) के प्रतिरोपण हुए और इनमें से लगभग 4000 अब भी काम कर रहे हैं।
अमेरिकन कॉलेज ऑफ सर्जनस तथा अमेरिका के ही नैशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ के अंग प्रतिरोपण रजिस्ट्री (आर्गन ट्रांसप्लांट रजिस्ट्री) के प्रमुख डॉ. जान जे. वर्गेन सारे संसार में होने वाले अंग प्रतिरोपणों का लेखा-जोखा रखते हैं। डॉ. वर्गेन का कहना है कि सन्‌ 1953 से लेकर 1 जनवरी, 1973 तक संसार भर में 8256 गुर्दे (वृक्क) के प्रतिरोपण हुए और इनमें से लगभग 4000 अब भी काम कर रहे हैं।


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जो लोग ठीक सुन नहीं पाते, प्रतिरोपण से उनकी श्रवणेंद्रियाँ भी ठीक की जा सकती हैं। आँख बैंकों के समान कान बैंक भी बन चुके हैं। मृत व्यक्तियों से लिए गए कान के पर्दों, यहाँ तक कि मध्य कान की अति लघु हड्डियों तक का प्रतिरोपण हो चुका है। हास्टन (अमेरिका) के एम.डी. ऐंडरसन हास्पिटल ऐंड ट्यूमर इंस्टिट्यूट में दस वर्षीय अस्थि प्रतिरोपण कार्यक्रम शुरू किया गया है। <br />
जो लोग ठीक सुन नहीं पाते, प्रतिरोपण से उनकी श्रवणेंद्रियाँ भी ठीक की जा सकती हैं। आँख बैंकों के समान कान बैंक भी बन चुके हैं। मृत व्यक्तियों से लिए गए कान के पर्दों, यहाँ तक कि मध्य कान की अति लघु हड्डियों तक का प्रतिरोपण हो चुका है। हास्टन (अमेरिका) के एम.डी. ऐंडरसन हास्पिटल ऐंड ट्यूमर इंस्टिट्यूट में दस वर्षीय अस्थि प्रतिरोपण कार्यक्रम शुरू किया गया है। <br />
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इसके दौरान उपर्युक्त प्रतिरोपण सफल रहे हैं। कहीं-कहीं तो कैंसर से पीड़ित लोगों की हड्डियों के बड़े भाग को काटकर निकाल देना पड़ा। ऐसे लोगों में मुर्दों की अस्थियाँ प्रतिरोपण की गई जिनका शरीर ने बहिष्कार नहीं किया।
इसके दौरान उपर्युक्त प्रतिरोपण सफल रहे हैं। <br />
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कहीं-कहीं तो कैंसर से पीड़ित लोगों की हड्डियों के बड़े भाग को काटकर निकाल देना पड़ा। ऐसे लोगों में मुर्दों की अस्थियाँ प्रतिरोपण की गई जिनका शरीर ने बहिष्कार नहीं किया।


== दोहरा प्रतिरोपण ==
== दोहरा प्रतिरोपण ==
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== फुफ्फुस (फेफड़ा) प्रतिरोपण ==
== फुफ्फुस (फेफड़ा) प्रतिरोपण ==
अग्न्याशय के प्रतिरोपण से भी अधिक महत्व फेफड़े के प्रतिरोपण का है। फेफड़े का पहला प्रतिरोपण 11 जून, 1963 को डॉ. जेम्स हार्डी के शल्यचिकित्सा दल ने जैक्सन (मिसीरी, सं. रा. अमरीका) में किया।
अग्न्याशय के प्रतिरोपण से भी अधिक महत्व फेफड़े के प्रतिरोपण का है। <br />
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फेफड़े का पहला प्रतिरोपण 11 जून, 1963 को डॉ. जेम्स हार्डी के शल्यचिकित्सा दल ने जैक्सन (मिसीरी, सं. रा. अमरीका) में किया।


== यकृत (जिगर) प्रतिरोपण ==
== यकृत (जिगर) प्रतिरोपण ==
जिगर शरीर का सबसे पेचीदा और बड़ा अंग है। इसके अधिकांश विकारों का उपचार एक मात्र प्रतिरोपण ही है।
जिगर शरीर का सबसे पेचीदा और बड़ा अंग है। इसके अधिकांश विकारों का उपचार एक मात्र प्रतिरोपण ही है।
 
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1963 में डेनवर के डॉ. थामस ई. स्टार्ल्ज ने सर्वप्रथम एक मृतक व्यक्ति का जिगर निकालकर एक अन्य रोगी में प्रतिरोपित किया था। 1 जनवरी, 1972 तक जिगर के कुल 155 प्रतिरोपण हो चुके हैं।
1963 में डेनवर के डॉ. थामस ई. स्टार्ल्ज ने सर्वप्रथम एक मृतक व्यक्ति का जिगर निकालकर एक अन्य रोगी में प्रतिरोपित किया था। 1 जनवरी, 1972 तक जिगर के कुल 155 प्रतिरोपण हो चुके हैं।


== थाइमस और अस्थिमज्जा ==
== थाइमस और अस्थिमज्जा ==
इसके प्रतिरोपण कई दृष्टि से एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। इन दोनों के प्रतिरोपण में इनके ऊतकों के टुकड़ों का रोगी में इंजेक्शन दिया जाता है।
इसके प्रतिरोपण कई दृष्टि से एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। [[चित्र:Bonemarrowtransplantation.j2pg.jpg]]इन दोनों के प्रतिरोपण में इनके ऊतकों के टुकड़ों का रोगी में इंजेक्शन दिया जाता है।


== आंत्र प्रतिरोपण ==
== आंत्र प्रतिरोपण ==
जब किसी की अँतड़ियों का कैंसर हो जाता है तो आँतों के टुक़ड़े निकालना जरूरी हो जाता है। ऐसी दशा में प्रतिरोपण ही इसका एक मात्र इलाज रह जाता है। अनेक विफलताओं के बावजूद छोटी आँतों के प्रतिरोपण को सफल बनाने के यत्न किए जा रहे हैं।
जब किसी की अँतड़ियों का कैंसर हो जाता है तो आँतों के टुक़ड़े निकालना जरूरी हो जाता है। [[चित्र:Int transplant.1 jpg.jpg|right|]]ऐसी दशा में प्रतिरोपण ही इसका एक मात्र इलाज रह जाता है। अनेक विफलताओं के बावजूद छोटी आँतों के प्रतिरोपण को सफल बनाने के यत्न किए जा रहे हैं।


== स्वरयंत्र (लैरिंग्स) ==
== स्वरयंत्र (लैरिंग्स) ==
बेल्जियम में इसका प्रतिरोपण किया जा चुका है। प्रतिरोपण के बाद रोगी खाने और बोलने लगा था लेकिन कुछ ही समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।
बेल्जियम में इसका प्रतिरोपण किया जा चुका है। [[चित्र:ILarings transplant.jpg]] प्रतिरोपण के बाद रोगी खाने और बोलने लगा था लेकिन कुछ ही समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।


== विलक्षण प्रतिरोपण ==
== विलक्षण प्रतिरोपण ==
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== केश प्रतिरोपण ==
== केश प्रतिरोपण ==
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मनुष्य के गंजेपन को दूर करने के लिए शरीर के अधिक बालों वाले हिस्सों से बाल लेकर गंजे स्थलों पर लगाए जा सकते हैं।
मनुष्य के गंजेपन को दूर करने के लिए शरीर के अधिक बालों वाले हिस्सों से बाल लेकर गंजे स्थलों पर लगाए जा सकते हैं।


== हृदय प्रतिरोपण ==
== हृदय प्रतिरोपण ==
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केपटाउन (दक्षिण अफ्रीका) में 3 दिसंबर, 1967 को डॉ. क्रिश्चियन बर्नार्ड ने फिलिस ब्लैबर्ग के एक रोगी के हृदय को निकाला और उसके स्थान पर एक मृत नीग्रो महिला का हृदय लगाकर हृदय प्रतिरोपण का सिलसिला प्रारंभ किया। अब तो ऐसे प्रतिरोपणों की बाढ़-सी आ गई है। 1 जनवरी, 1970 तक 150 प्रतिरोपण हुए थे जिनमें से उस दिन तक २३ व्यक्ति जीवित थे। 1970 के आसपास बंबई के कुछ डॉक्टरों ने भी हृदय प्रतिरोपण किया था पर वे सफल नहीं हो सके।  
केपटाउन (दक्षिण अफ्रीका) में 3 दिसंबर, 1967 को डॉ. क्रिश्चियन बर्नार्ड ने फिलिस ब्लैबर्ग के एक रोगी के हृदय को निकाला और उसके स्थान पर एक मृत नीग्रो महिला का हृदय लगाकर हृदय प्रतिरोपण का सिलसिला प्रारंभ किया। अब तो ऐसे प्रतिरोपणों की बाढ़-सी आ गई है। 1 जनवरी, 1970 तक 150 प्रतिरोपण हुए थे जिनमें से उस दिन तक २३ व्यक्ति जीवित थे। 1970 के आसपास बंबई के कुछ डॉक्टरों ने भी हृदय प्रतिरोपण किया था पर वे सफल नहीं हो सके।  


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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११:०३, २८ जनवरी २०१४ के समय का अवतरण

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लेख सूचना
अंग प्रतिरोपण
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 08-09
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक निरंकार सिंह्

अंग प्रतिरोपण चिकित्सा विज्ञान की वह शल्यक्रिया है जिसके अंतर्गत मनुष्य के विकृत अथवा रोगग्रस्त अंगों को बदल दिया जाता है। इससे मनुष्य स्वस्थ हो जाता है और उसकी कार्यक्षमता में कोई कमी भी नहीं आती है। रोगग्रस्त अंगों का प्रतिरोपण रोगी के किसी निकट संबंधी अथवा किसी मृतक द्वारा किए गए अंगदान पर निर्भर करता है। मनुष्य के 18 अंगों एवं ऊतकों का प्रतिरोपण किया जा चुका है। कुछ अंग तो ऐसे हैं जिनके उपचार की मानक विधि अब अंग प्रतिरोपण ही है। भारतीयों को इसका ज्ञान पहले से ही था। 6000 वर्ष पूर्व वेदों में अंग प्रतिरोपण का वर्णन मधुविद्या के नाम से हुआ है।

चित्र:Body parts.jpg

अमेरिकन कॉलेज ऑफ सर्जनस तथा अमेरिका के ही नैशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ के अंग प्रतिरोपण रजिस्ट्री (आर्गन ट्रांसप्लांट रजिस्ट्री) के प्रमुख डॉ. जान जे. वर्गेन सारे संसार में होने वाले अंग प्रतिरोपणों का लेखा-जोखा रखते हैं। डॉ. वर्गेन का कहना है कि सन्‌ 1953 से लेकर 1 जनवरी, 1973 तक संसार भर में 8256 गुर्दे (वृक्क) के प्रतिरोपण हुए और इनमें से लगभग 4000 अब भी काम कर रहे हैं।

प्रथम प्रतिरोपण (रुधिर आधान)

पहला सफल प्रतिरोपण 15 जून, 1667 को हुआ था जब कि फ्रांस के शाह लुई चौदहवें के चिकित्सक तथा पेरिस में दर्शन और गणित के प्रोफेसर ज्याँ बाप्तिस्त देनिस ने पहली बार मानव के भेड़ के बच्चे के रुधिर का आधान किया।
चित्र:Blod transplant.jpg रुधिराधान के बाद रोगी जीवित रहा। देनिस ने दो और रोगियों में रुधिराधान किया लेकिन कड़ी आलोचना के कारण बाद में उन्होंने इसे दोहराया नहीं। रुधिराधान दिए जाने पर रुधिर का कभी-कभी बहिष्कार होता है। यदि रुधिर समूह सही न हो अथवा अन्य किसी कारण से दाता और ग्राहक के रुधिर में विसंगति हो तो भी रुधिराधा के उपरांत उसका बहिष्कार हो जाएगा।

रुधिर की तरह कई और भी ऊतक हैं जिनका आधान किया जा सकता है जैसे कार्निया। किसी मृतक की कार्निया (आँख का एक भाग) उसके मरने के कई घंटे बाद भी निकाली और लगाई जा सकती है, यहाँ तक कि यह काफी दूर-दूर तक भेजी भी जा सकती है। चक्षु बैंक कोई तीन वर्ष पूर्व आरंभ हुए थे। अब तो जनता और चिकित्सक वर्ग, दोनों में यह सर्वथा मान्य है।

कान बैंक और अस्थि प्रतिरोपण

जो लोग ठीक सुन नहीं पाते, प्रतिरोपण से उनकी श्रवणेंद्रियाँ भी ठीक की जा सकती हैं। आँख बैंकों के समान कान बैंक भी बन चुके हैं। मृत व्यक्तियों से लिए गए कान के पर्दों, यहाँ तक कि मध्य कान की अति लघु हड्डियों तक का प्रतिरोपण हो चुका है। हास्टन (अमेरिका) के एम.डी. ऐंडरसन हास्पिटल ऐंड ट्यूमर इंस्टिट्यूट में दस वर्षीय अस्थि प्रतिरोपण कार्यक्रम शुरू किया गया है।
चित्र:Ear transplant.jpg इसके दौरान उपर्युक्त प्रतिरोपण सफल रहे हैं।
चित्र:Bone transplantation.j1 pg.jpg कहीं-कहीं तो कैंसर से पीड़ित लोगों की हड्डियों के बड़े भाग को काटकर निकाल देना पड़ा। ऐसे लोगों में मुर्दों की अस्थियाँ प्रतिरोपण की गई जिनका शरीर ने बहिष्कार नहीं किया।

दोहरा प्रतिरोपण

1971 में ही हुआ है जिसमें लंबे समय से मधुमेह से पीड़ित एक स्त्री का गुर्दा और अग्न्याशय (पैकियाज) बदलकर उसे अंधा और अपंग होने से बचा लिया गया। इस तरह के प्रतिरोपण मधुमेह पीड़ितों के लिए वरदान हैं। 1 जनवरी, 1972 तक अग्न्याशय के केवल २४ प्रतिरोपण हो चुके थे।

फुफ्फुस (फेफड़ा) प्रतिरोपण

अग्न्याशय के प्रतिरोपण से भी अधिक महत्व फेफड़े के प्रतिरोपण का है।
चित्र:Luncs transplant.jpg फेफड़े का पहला प्रतिरोपण 11 जून, 1963 को डॉ. जेम्स हार्डी के शल्यचिकित्सा दल ने जैक्सन (मिसीरी, सं. रा. अमरीका) में किया।

यकृत (जिगर) प्रतिरोपण

जिगर शरीर का सबसे पेचीदा और बड़ा अंग है। इसके अधिकांश विकारों का उपचार एक मात्र प्रतिरोपण ही है। चित्र:Liver transplant.1jpg.jpg 1963 में डेनवर के डॉ. थामस ई. स्टार्ल्ज ने सर्वप्रथम एक मृतक व्यक्ति का जिगर निकालकर एक अन्य रोगी में प्रतिरोपित किया था। 1 जनवरी, 1972 तक जिगर के कुल 155 प्रतिरोपण हो चुके हैं।

थाइमस और अस्थिमज्जा

इसके प्रतिरोपण कई दृष्टि से एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। चित्र:Bonemarrowtransplantation.j2pg.jpgइन दोनों के प्रतिरोपण में इनके ऊतकों के टुकड़ों का रोगी में इंजेक्शन दिया जाता है।

आंत्र प्रतिरोपण

जब किसी की अँतड़ियों का कैंसर हो जाता है तो आँतों के टुक़ड़े निकालना जरूरी हो जाता है।

चित्र:Int transplant.1 jpg.jpg

ऐसी दशा में प्रतिरोपण ही इसका एक मात्र इलाज रह जाता है। अनेक विफलताओं के बावजूद छोटी आँतों के प्रतिरोपण को सफल बनाने के यत्न किए जा रहे हैं।

स्वरयंत्र (लैरिंग्स)

बेल्जियम में इसका प्रतिरोपण किया जा चुका है। चित्र:ILarings transplant.jpg प्रतिरोपण के बाद रोगी खाने और बोलने लगा था लेकिन कुछ ही समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।

विलक्षण प्रतिरोपण

इटली के एक प्रसूतिविज्ञानी ने एक स्त्री के शरीर से आधा अंडाशय निकाल एक अन्य स्त्री के शरीर में प्रतिरोपित किया। इटली के स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऐसे प्रतिरोपणों पर रोक लगा दी है क्योंकि इस तरह के प्रतिरोपण के बाद स्त्री द्वारा उत्पन्न की गई संतान के माता-पिता के अनिश्चय को लेकर मुकदमे शुरु हो सकते हैं।

केश प्रतिरोपण

चित्र:Haire transplant1.jpg मनुष्य के गंजेपन को दूर करने के लिए शरीर के अधिक बालों वाले हिस्सों से बाल लेकर गंजे स्थलों पर लगाए जा सकते हैं।

हृदय प्रतिरोपण

चित्र:Heart transplant.1 jpg.jpg केपटाउन (दक्षिण अफ्रीका) में 3 दिसंबर, 1967 को डॉ. क्रिश्चियन बर्नार्ड ने फिलिस ब्लैबर्ग के एक रोगी के हृदय को निकाला और उसके स्थान पर एक मृत नीग्रो महिला का हृदय लगाकर हृदय प्रतिरोपण का सिलसिला प्रारंभ किया। अब तो ऐसे प्रतिरोपणों की बाढ़-सी आ गई है। 1 जनवरी, 1970 तक 150 प्रतिरोपण हुए थे जिनमें से उस दिन तक २३ व्यक्ति जीवित थे। 1970 के आसपास बंबई के कुछ डॉक्टरों ने भी हृदय प्रतिरोपण किया था पर वे सफल नहीं हो सके।


टीका टिप्पणी और संदर्भ