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'''अंबरीष''' इक्ष्वाकु से 28वीं पीढ़ी में हुआ अयोध्या का सूर्यवंशी राजा। वह प्रशुश्रक का पुत्र था। पुराणों में उसे परमवैष्णव कहा गया है। इसी के कारण विष्णु के चक्र ने दुर्वासा का पीछा किया था। | '''अंबरीष''' इक्ष्वाकु से 28वीं पीढ़ी में हुआ अयोध्या का सूर्यवंशी राजा। वह प्रशुश्रक का पुत्र था। पुराणों में उसे परमवैष्णव कहा गया है। इसी के कारण विष्णु के चक्र ने दुर्वासा का पीछा किया था। महाभारत, भागवत और हरिवंश में अंबरीष को नाभाग का पुत्र माना गया है। रामायण की परंपरा उसके विपरीत है। उस कथा के अनुसार जब अंबरीष यज्ञ कर रहे थे तब इंद्र ने बलिपशु चुरा लिया। पुरोहित ने तब बताया कि अब उस प्रनष्ट यज्ञ का प्रायश्चित्त केवल मनुष्यबलि से किया जा सकता है। फिर राजा ने ऋषि ऋषिक को बहुत धन देकर बलि के लिए उसके कनिष्ठ पुत्र शुन:शेष को खरीद लिया। ऋग्वेद में उस बालक की विनती पर विश्वामित्र द्वारा उसके बंधनमोक्ष की कथा सूक्तबद्ध है। अंबरीष की कन्या सुंदरी लक्ष्मी का अवतार थी जिसे देखकर पर्वत और देवर्षि नारद दोनों आसक्त हो गए। दोनों ने विष्णु से एक-दूसरे का मुख बंदर का सा बना देने की प्रार्थना की। विष्णु ने यही किया। सुंदरी इन्हें देखकर भयभीत हो गई और उसने विष्णु के गले में वरमाला डाल दी। ऋषियों ने अंबरीष को अंधकारवृत्त होने का शाप दिया किंतु विष्णु के सुदर्शन चक्र ने अंधकार का विनाश कर दिया। लिंग पुराण (2.5.6) तथा वाल्मीकि रामायण (बालकांड) के अनुसार अंबरीष और हरिश्चंद्र एक ही व्यक्ति के नाम थे। | ||
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१२:०८, १८ मई २०१८ के समय का अवतरण
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अंबरीष
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 61 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भगवतीशरण उपाध्याय,डॉ. कैलास चंद्र शर्मा |
अंबरीष इक्ष्वाकु से 28वीं पीढ़ी में हुआ अयोध्या का सूर्यवंशी राजा। वह प्रशुश्रक का पुत्र था। पुराणों में उसे परमवैष्णव कहा गया है। इसी के कारण विष्णु के चक्र ने दुर्वासा का पीछा किया था। महाभारत, भागवत और हरिवंश में अंबरीष को नाभाग का पुत्र माना गया है। रामायण की परंपरा उसके विपरीत है। उस कथा के अनुसार जब अंबरीष यज्ञ कर रहे थे तब इंद्र ने बलिपशु चुरा लिया। पुरोहित ने तब बताया कि अब उस प्रनष्ट यज्ञ का प्रायश्चित्त केवल मनुष्यबलि से किया जा सकता है। फिर राजा ने ऋषि ऋषिक को बहुत धन देकर बलि के लिए उसके कनिष्ठ पुत्र शुन:शेष को खरीद लिया। ऋग्वेद में उस बालक की विनती पर विश्वामित्र द्वारा उसके बंधनमोक्ष की कथा सूक्तबद्ध है। अंबरीष की कन्या सुंदरी लक्ष्मी का अवतार थी जिसे देखकर पर्वत और देवर्षि नारद दोनों आसक्त हो गए। दोनों ने विष्णु से एक-दूसरे का मुख बंदर का सा बना देने की प्रार्थना की। विष्णु ने यही किया। सुंदरी इन्हें देखकर भयभीत हो गई और उसने विष्णु के गले में वरमाला डाल दी। ऋषियों ने अंबरीष को अंधकारवृत्त होने का शाप दिया किंतु विष्णु के सुदर्शन चक्र ने अंधकार का विनाश कर दिया। लिंग पुराण (2.5.6) तथा वाल्मीकि रामायण (बालकांड) के अनुसार अंबरीष और हरिश्चंद्र एक ही व्यक्ति के नाम थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ