"अजित केशकम्बल": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के २ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
{{भारतकोश पर बने लेख}}
{{लेख सूचना
{{लेख सूचना
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पंक्ति २२: पंक्ति २३:
|अद्यतन सूचना=
|अद्यतन सूचना=
}}
}}
'''अजित केशकंबली''' भगवान बुद्ध के समकालीन एवं तरह-तरह के मतों का प्रतिपादन करने वाले जो कई धर्माचार्य मंडलियों के साथ घूमा करते थे उनमें अजित केशकंबली भी एक प्रधान आचार्य थे। इनका नाम था अजित और केश का बना कंबल धारण करने के कारण वह केशकंबली नाम से विख्यात हुए। उनका सिद्धांत घोर उच्छेदवाद का था। भौतिक सत्ता के परे वह किसी तत्व में विश्वास नहीं करते थे। उनके मत में न तो कोई कर्म पुण्य था और न पाप। मृत्यु के बाद शरीर जला दिए जाने पर उसका कुछ शेष नहीं रहता, चार महाभूत अपने तत्व में मिल जाते हैं और उसका सर्वथा अंत हो जाता है- यही उनकी शिक्षा थी।
'''अजित केशकम्बल''' भगवान बुद्ध के समकालीन एवं तरह-तरह के मतों का प्रतिपादन करने वाले जो कई धर्माचार्य मंडलियों के साथ घूमा करते थे उनमें अजित केशकम्बल भी एक प्रधान आचार्य थे। इनका नाम था अजित और केश का बना कंबल धारण करने के कारण वह केशकम्बल नाम से विख्यात हुए। उनका सिद्धांत घोर [[उच्छेदवाद]] का था। भौतिक सत्ता के परे वह किसी तत्व में विश्वास नहीं करते थे। उनके मत में न तो कोई कर्म पुण्य था और न पाप। मृत्यु के बाद शरीर जला दिए जाने पर उसका कुछ शेष नहीं रहता, चार महाभूत अपने तत्व में मिल जाते हैं और उसका सर्वथा अंत हो जाता है- यही उनकी शिक्षा थी।
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
<!-- कृपया इस संदेश से ऊपर की ओर ही सम्पादन कार्य करें। ऊपर आप अपनी इच्छानुसार शीर्षक और सामग्री डाल सकते हैं -->
<!-- यदि आप सम्पादन में नये हैं तो कृपया इस संदेश से नीचे सम्पादन कार्य न करें -->
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

१२:२०, १२ अगस्त २०१४ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
अजित केशकम्बल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 84
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भिक्षु जगदीश कश्यप ।

अजित केशकम्बल भगवान बुद्ध के समकालीन एवं तरह-तरह के मतों का प्रतिपादन करने वाले जो कई धर्माचार्य मंडलियों के साथ घूमा करते थे उनमें अजित केशकम्बल भी एक प्रधान आचार्य थे। इनका नाम था अजित और केश का बना कंबल धारण करने के कारण वह केशकम्बल नाम से विख्यात हुए। उनका सिद्धांत घोर उच्छेदवाद का था। भौतिक सत्ता के परे वह किसी तत्व में विश्वास नहीं करते थे। उनके मत में न तो कोई कर्म पुण्य था और न पाप। मृत्यु के बाद शरीर जला दिए जाने पर उसका कुछ शेष नहीं रहता, चार महाभूत अपने तत्व में मिल जाते हैं और उसका सर्वथा अंत हो जाता है- यही उनकी शिक्षा थी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ